बुधवार, 14 जुलाई 2021

hindi kavita/ हमने भी ख़्वाब देखे हैं




हमने भी ख़्वाब देखें हैं,
सपने बेहिसाब देखे हैं।
चेहरों  पर नक़ाब देखे है,
किस पर यकीं करें दोस्तो
जब अपने ही ख़राब देखे है।
बदलते मंजरों का डर है,
ना जाने रास्ता किधर है?
डोलती कश्तियों का सफ़र है,
सांसे तो चलती ही हैं दोस्तो,
मगर ज़िन्दगी की कहां खबर है।
हमने भी ख़्वाब देखें हैं,
सपने बेहिसाब देखे हैं।
कितनी परतों को हटाएं,
किस रूप को किस से छुड़ाएं?
बताओ तो हमें हम कहां जाएं?
उंगली थाम चल रहे हैं जो,
वजूद को उनसे कैसे बचाएं?
बातें लाज़वाब करते हैं,
शब्दों  में मक्खन का स्वाद रखते हैं
खता क्या है,हमारी जो फिसल पड़े
क्योंकि सामने से कभी नहीं दोस्तो
लोग पीठ पर वार करते हैं।
हमने भी ख़्वाब देखें हैं,
सपने बेहिसाब देखे हैं।

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