शनिवार, 31 जुलाई 2021

Hindi कविता/kavita in hindiकितना दूर चल पाओगे?Hindi कविता/kavita in hindi

क्या निभा पाओगे?
बताओ
कितना दूर चल  पाओगे?
साथ मेरे ।
इस रवैये से
इस अंदाज़ से
तुम संवेदनहीन
एक चट्टान की तरह।
कितना दूर चल  पाओगे
साथ मेरे।
न मुस्कुराहट में साथ हो
न आंसुओ में पास।
न दर्द की दवा हो
न सहारे की दुआ हो
कितना दूर चल  पाओगे
साथ मेरे।
अंतर्द्वंद्व में अकेला
झुझता है मन
खुद सवाल करता
 खुद जवाब बनता
कितना दूर चल  पाओगे
साथ मेरे।
तुम बस कहने को
साथ हो।
हकीकत में तुम कहाँ हो?
इतना उदासीन 
बाहरी दुनिया मे विलीन 
शब्द हीन, भाव विहीन
कितना निभा पाओगे
कितना दूर चल  पाओगे?
साथ मेरे ।

बुधवार, 28 जुलाई 2021

motivational hindi kavita// कविता इन हिंदी/हे मनुज क्यों बैठे हो बेकारmotivational hindi kavita

हे मनुज क्यों बैठे हो बेकार
क्यों नही करते कुछ ऐसा विचार।
करे जो नवजीवन संचार 
कण कण में भर दे प्रज्वलित प्राण
जीवन को दे नया आकार
मिले तुम्हें सुख का उपहार 

हे मनुज क्यों बैठे हो बेकार
क्यों नही करते कुछ ऐसा विचार
जो दे तुम्हे उचित सलाह अपार
व्यक्त करो उसका आभार
दुःख को भी सहर्ष करो स्वीकार
अपने सपने करो साकार 

हे मनुज क्यों बैठे हो बेकार
क्यों नही करते कुछ ऐसा विचार 
यूँ जीवन को न मानो हार।
कठिनाइयों को समझो आहार
समझ गए जब लगन का सार
नही पाओगे स्वयं को लाचार
हे मनुज क्यों बैठे हो बेकार
क्यों नही करते कुछ ऐसा विचार

सोमवार, 26 जुलाई 2021

hindi kavita/kavita in hindi/ऐसे व्यक्ति की ईश्वर भी सहायता नही कर सकतेhindi kavita/kavita in hindi/

जिस व्यक्ति में भाव नहीं
भावना नहीं
बात सुनने का धैर्य नहीं
विचारों में कोई समझ नहीं
जो हवा के झोंको की तरह 
 निर्णय बदलता हो।
सुने बिना प्रतिक्रिया देता हो।
हर पल एक नया लक्ष्य
तय करता हो।
ऐसे व्यक्ति की
ईश्वर भी सहायता नही कर सकते।
जो हर  काम  को
अधूरा ही छोड़ देता हो।
आसमान में तीर चलाता हो।
सिर्फ़ डींगे ही, हांकता हो।
अपनी बेहूदी बातों में
दूसरों को उलझाता हो।
कमी बताने पर
मेघों सा गरजता हो
मीठी चिकनी चुपड़ी बाते सुनने को
अपनी हानि तक करवाता हो।
ऐसे व्यक्ति की 
ईश्वर भी सहायता नही कर सकते।

शनिवार, 24 जुलाई 2021

Hindi kavita/kavita in hindi ओह्ह समय के साथHindi kavita/kavita in hindi

ओह्ह समय के साथ
हम कैसे पत्थर से हो गए।
खुशियां आती हैं।
छूती है और चली जाती हैं
हम महसूस नहीं कर पाते
ओह्ह समय के साथ
हम कैसे पत्थर से हो गए।
जो दुवाओ में माँगा
जो हसरतों में चाहा
वो सबकुछ,
जीवन मे पाया।
मगर उस खुशी के लिए
हम सचेत नही रहे।
ओह्ह समय के साथ।
हम कैसे पत्थर से हो गए।
अजीब बात ये है
स्वभाव की
वो सिर्फ दुख के लिए ही
सचेत है।
वो जो महसूस कर पाता है
 वो दुःख ही है दर्द ही है।
खुशी के लिए मन
संवेदन हीन है।
ओह्ह समय के साथ
हम कैसे पत्थर से हो गए।

शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

kavita in hindi/Hindi kavita पल में बोया kavita in hindi/Hindi kavita

पल में बोया
पल में काटा
खुद का ही तूने
किया है घाटा
ईर्ष्या न त्यागी
दंभ न तोड़ा
छल और कपट का
साथ न छोड़ा
पल में बोया
पल में काटा
खुद का ही तूने
किया है घाटा
लोभ को तूने
तन लिपटाया
मन को तेरे
स्वारथ भाया
मानव बन 
धरती पर आया
मोहमाया 
संसार उगाया।
पल में बोया
पल में काटा
खुद का ही तूने
किया है घाटा
फसता गया
भँवर के अन्दर
लील रहा अब
भाव समंदर
जीवन ही सोचा
मृत्यु न सोची
अंत की तस्वीर न सोची
पल में बोया
पल में काटा
खुद का ही तूने
किया है घाटा

बुधवार, 21 जुलाई 2021

hindi poem/kavita in hindi वो कौन सी जगह हैhindi poem/kavita in hindi

मन कहाँ जाना चाहता है
वो कौन सी जगह है
जहाँ सुकून है
चैन है,आनंद है
वो कौन सी जगह है
कभी वो जगह घर होता था
दुनिया भर में भटक कर
आंखिर में हमें घर ही याद आता है
मग़र आज वो जगह 
घर भी नहीं है।
वो कौन सी जगह है
आज घरों में वैमनष्य है
दीवारे चीख़ रही हैं
ज़मीन रो रही है
आबो हवा कह रही है
मुझे दूषित कर दिया
तुम्हारे विचारों ने
तुम्हारे मतभेदों ने
तुम्हारे कलहों ने
फिर अब क्या,
खोजना चाहते हो
मुझ में तुम?
मैं वही तुम्हे दे सकती हूं
जो तुमने मुझमें घोल दिया।
मेरी रग रग को तुमने
नफ़रत से जहरीला कर दिया।
वो कौन सी जगह है
जहाँ सुकून है।
चैन है,आनंद है।

मंगलवार, 20 जुलाई 2021

kavita in hindi/hindi best poem/ये उम्र ढलती नहीं/ पोएम इन हिंदीkavita in hindi/hindi best poem/


 ये उम्र ढलती नहीं
ढल जाता ये शरीर है
खता शरीर की है
मात खा जाती उम्र है।
जिम्मेदारी के थपेडों में
टेढ़े मेंढे मोड़ों में
न जाने कब सिलवटें पड़ी
नाजुक कपोलों के कोरों में
ये उम्र ढलती नहीं
ढल जाता  ये शरीर है

संघर्ष की राहों मे
जीवन को रगड़ते रागड़ते
उम्मीदों की चक्की में पिसते पिसते
न जाने कब उदासी छा गई
अधरों पर भी हँसते हँसते
ये उम्र ढलती नहीं
ढल जाता ये शरीर है

सभी को मनाते जाते
रिश्तों को बचाते जाते
पुराने घाव मिटाते जाते
नए घाव सहलाते जाते
कठोर शब्द दिल में दफ़नाते 
फिर भी  नैन डबडबाए ही पाते।
ये उम्र ढलती नहीं
ढल जाता ये शरीर है

दुनिया की कठिन राहों में
सम्भावनाओ की बाहों में
काल चक्र की निग़ाहों में
तपिश की पनाहों में
ठोकरें खा खा कर भी
मन लगा है असीमित चाहों में
ये उम्र ढलती नहीं
ढल जाता ये शरीर है।


रविवार, 18 जुलाई 2021

kavita in hindi/hindi best poem/आज रिश्ते/हिंदी पोएमkavita in hindi/hindi best poem/

ज़िन्दगी तो बस...
ऐसे लोग घृणा के,
नफ़रत के पात्र नहीं हैं,
ऐसे लोग उपहास 
और आलोचना के पात्र नहीं हैं।
वाकई ऐसे लोग दया के पात्र हैं।
जो भूल चुके हैं अपनो को,
अपने रिश्तों की मिठास को,
साथ के संबल को,
शब्दों की शक्ति को,
जो जी रहे हैं,
 एक खोखली सी ज़िन्दगी,
जो खुद नहीं हंस रहे,
न चाह रहे हैं कोई हँसे।
क्या वाकई वो जी रहे हैं?
जो सीमित करना चाह रहे हैं,
अपना दायरा अपने तक,
और सीमित होते होते वो,
 अपने से ही अलग होते जा रहे हैं।
वो सोच रहे है,
ज़िन्दगी अकेलेपन में है,
ज़िन्दगी एक तय सीमा के भीतर है
क्या ये सच है?
ज़िन्दगी तो बस...
 अपनो से कुछ लम्हों को साझा करने में,
चाय की चुस्की के साथ की गई गपशप,
माँ के हाथ से बने खाने के,
अपनेपन के स्वाद में है।
ज़िन्दगी तो अपनो से गुस्सा 
और छोटी मोटी नोक झोक में है।
ज़िन्दगी तो बस...
इन अनमोल रिश्तों में है
मोल तो केवल,
निर्जीव वस्तुओं का लगा करता है।




शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

त्रासदी/हिंदी ब्लॉग/most burning topic

जैसे जैसे हम ग्लोबलाइजेशन, मॉडर्नाइजेशन, सोशलाइजेशन की गिरफ्त में आए,यकीन मानिए हम अपनी मूल प्रकृति खो बैठे,बहुत बार तो हमने मनुष्य जैसा बर्ताव करना ही छोड़ दिया। कहाँ गए भाव भावना दया प्रेम कहाँ गए?
सबकुछ दिखावे की होड़ तक सिमट कर रह गया।हर रिश्ते में औपचारिकता रह गई। गुड मॉर्निंग गुड इवनिंग गुड नाईट दुआ सलाम सब कुछ कॉपी फॉरवर्ड हो गया, वो दिन अब नही रहे जब हम अपने परिजनों को पत्र भेजते थे कितना सोच समझ कर हर वाक्य लिखते थे पत्र की भाषा मे सामने वाले के सम्मान का पूरा ध्यान रखा जाता था।
मगर आज आपको किसी को ताने देने हैं गुस्सा ज़ाहिर करना है तो व्हाट्सअप मैसेज से अच्छा क्या तरीका होगा कुछ सेकंड में आपकी नफ़रत भरी सोच दूसरे के मोबाइल स्क्रीन पर फ़्लैश हो जाती है चाहे टैग उसमें गुड मॉर्निंग का लगा हो।
हम बार बार क्या कैरी फॉरवर्ड करते हैं? 
इन दिनों बहुत कुछ बदला है,बहुत ही आसानी से पूरा ब्रम्हांड मोबाइल स्क्रीन पर जो आ गया है।रिश्तों में मर्यादा का हनन हो चुका है,कोई भी किसी को भी कुछ भी मैसेज फॉरवर्ड कर देता है,रिश्तों में लिहाज नहीं रहा।
 कौन सा सवाल है अब जिसका जवाब हम नहीं पा सकते,हमारे पास असीमित ज्ञान का भंडार है, हम अपने जीवन को सही दिशा भी दे सकते हैं और हम अपने जीवन की दशा भी बिगाड़ सकते हैं।अपने आस पास आप देख सकते हैं जीवन को दिशा मिल रही है या जीवन की दशा खराब हो रही है।
हर ऐज ग्रुप के लोग अपने अपने इंटरेस्ट मे व्यस्त,किशोरावस्था मोबाइल गेम्स की एडिक्ट हो रही है, अपने दिन का एक बहुत बड़ा हिस्सा वो स्क्रीन पर आंखें टिकाए बिता रहे है,युवाओं और प्रौढ़ों में अश्लिलता बढ़ रही  है।
सब इतना आसानी से उपलब्ध है तो भला लोग भजन कीर्तन क्यों करेंगे,जिसमें मन को ज़बरदस्ती केंद्रित करना पड़े।
जिस काम में उन्हें आनन्द आ रहा हो,जो काम लेटे लेटे  हो जाता हो तो बैठने की तकलीफ़ कौन करे।
सदियों गुलाम रहे हम,तब ग़ुलामी के कारण दूसरे थे आज हम फिर से गुलाम हो गये तब अंग्रेजी हुकूमत के गुलाम थे आज अंग्रेजी तकनीक के गुलाम हैंU,तब शारीरिक तौर पर गुलाम थे आज मानसिक रूप से गुलाम हैं। तब लोगों को कैद भले ही किया हो मगर सोच में उनकी ताकत थी,तभी हम स्वतंत्र हो पाए।
आज सोच हमारी हर दूसरे पल में बदल जाती है,जो देखा जो सुना वही सोच बन गई,जिसमें आनन्द आए वही आदत बन गई,हमारे दिमाग को पूरी तरह से गुलाम बना दिया गया है।
हमारे शरीर को चला रहा है मन और वह मन ही हमारे वश में नहीं तो शरीर खुद ब खुद गुलाम बन गया। मानसिक बीमारियों के लिए हम बहुत ज्यादा संवेदनशील हो गए हैं।
क्योंकि हमारा शरीर आराम कर रहा है दिमाग काम कर रहा है काम भी ऐसे जिससे पल भर की खुशी जीवन भर की त्रासदी है।

बुधवार, 14 जुलाई 2021

hindi kavita/ हमने भी ख़्वाब देखे हैं




हमने भी ख़्वाब देखें हैं,
सपने बेहिसाब देखे हैं।
चेहरों  पर नक़ाब देखे है,
किस पर यकीं करें दोस्तो
जब अपने ही ख़राब देखे है।
बदलते मंजरों का डर है,
ना जाने रास्ता किधर है?
डोलती कश्तियों का सफ़र है,
सांसे तो चलती ही हैं दोस्तो,
मगर ज़िन्दगी की कहां खबर है।
हमने भी ख़्वाब देखें हैं,
सपने बेहिसाब देखे हैं।
कितनी परतों को हटाएं,
किस रूप को किस से छुड़ाएं?
बताओ तो हमें हम कहां जाएं?
उंगली थाम चल रहे हैं जो,
वजूद को उनसे कैसे बचाएं?
बातें लाज़वाब करते हैं,
शब्दों  में मक्खन का स्वाद रखते हैं
खता क्या है,हमारी जो फिसल पड़े
क्योंकि सामने से कभी नहीं दोस्तो
लोग पीठ पर वार करते हैं।
हमने भी ख़्वाब देखें हैं,
सपने बेहिसाब देखे हैं।

मंगलवार, 13 जुलाई 2021

poem/hindi/आँखें




बहुत खूबसूरत थी वो आंखें
जिनका हर दिल पर राज़ था
मनमोहक उन आखों कोL
खुद पर ही नाज़  था
इशारों इशारों में, बहुत 
 कुछ कह देती थी वो 
क्या क्या उपमा नहीं मिली उन्हें
हिरनी सी, गहरी सी 
समन्दर सी, झील सी
जीवन की गहराई में
झांकती सी,आँखे
बहुत खूबसूरत थी वो आंखें
मन को,वशीभूत,
करती सी  आंखे
बहुत खूबसूरत थी वो आंखें
दुःख में ख़ुशी में
छलकती सी आँखे
सपनों की दुनिया मे
झूलती सी आंखे।
यादों में ख्वाबो में
खोई सी आंखे।
बहुत खूबसूरत हैं वो आँखे


सोमवार, 12 जुलाई 2021

hindi/poem/बादल

आसमां में घिरे
काले घने उफ़नते
बादलों को देखकर
मन  मे एक आस सी जगी
एक प्यास सी जगी
हर बार की तरह
इस बार भी वो लुभाने आए
तरसाने आए
आसमां में घिरे
काले घने उफ़नते
बादलों को देखकर 
रिमझिम बरसात की
ठंडी फुहार की
नम ज़मी की
गीली मिट्टी की
सौंधी सी याद सी महकी
आसमां में घिरे
काले घने उफ़नते
बादलों को देखकर
न जाने कौन सी बयार चली
किस दिशा को चली
बादलों के उफान को
बहा ले गई
आसमां में घिरे
काले घने उफ़नते
बादलों को देखकर
मन में एक आस सी जगी
एक प्यास सी जगी।

रविवार, 11 जुलाई 2021

संघर्ष/hindi poem

संघर्ष तो किया ही है
मां के उदर में सांस लेने को
गतिशील रहने को।
स्वतंत्र बाहें पसारने  को
संघर्ष तो किया ही है
निरन्तर वृद्धि करने को
बलिष्ठ होने को
पूर्ण मानव बनने को
संघर्ष तो किया ही है।
अपनो से अपना
 कहे जाने को
अपने विचार 
दूसरों को समझाने को
संघर्ष तो किया ही है
अर्थ-अनर्थ न हो जाने को।
बातों की उलझनों को
बार बार सुलझाने को
संघर्ष तो किया ही है
लक्ष्य के लिए नही
किसी उपलब्धि,
के लिए भी नहीं
शब्दों से संघर्ष किया है
संघर्ष तो किया ही है
किसी बाहर वाले से नहीं
न ही किसी,
बाहरी परिस्थिति से
न ही बाहरी किसी द्वन्द से
संघर्ष तो किया ही है।
अंतर्द्वंद्व से,
अपने ही विचारों से
अपनो के  मतभेदों से
बिगड़ चुकी बातों से।
संघर्ष तो किया ही है।
कुछ पा जाने को नहीं।
अपनी पहचान बनाने, 
को भी नहीं।
संघर्ष तो किया ही है
बहुत संघर्ष किया है।
संघर्ष कुछ पाने का नहीं 
अपनी पहचान बनाने का भी नहीं है।
संघर्ष बस ये ही हैं कि मेरे अपने
मुझे अपना समझ पाए।
बेवजह का बैमनस्य मिटा पाए।
संघर्ष तो किया ही है
जीवन को,
जीवन की तरह नहीं जिया।
विरोधी शब्दो को जहन में ही सी दिया।
शब्दों के हलाहल को पी लिया।
संघर्ष तो किया ही है
हर बार अपने वजूद को बचाने को।
बिखरे रिश्तों को समेट पाने को।
ग़लतफ़हमियों को मिटाने को।
संघर्ष तो किया ही है

सोमवार, 5 जुलाई 2021

viral topic/ग़लतफ़हमी

ग़लतफ़हमी
मैंने बचपन से अब तक ज्यादातर घरों में पति पत्नी के बीच लड़ाई झगड़े ही देखे और सुने हैं मगर ये भी सच है की उन झगड़ो की वज़ह हमेशा बेवजह ही होती थी।
लव मैरिज का तो एक्सपेरिएंस नहीं है तो ठीक ठीक कनक्लूज़न पर पहुंच पाना कठिन है। बात अरेंज मैरिज की हो रही है,पहली बात तो ये माँ-बाप ज्यादातर बेटियों को इतनी फ्रीडम नहीं देते की वो अपना जीवनसाथी चुन लें,वो बेटी को बिल्कुल प्रतिबंधित माहौल में रखते हैं इससे मत बोलना,उससे मत बोलना ये मत करना वो मत। आधा समय तो बेचारी का फूंक फूंक कर चलने में ही निकल जाता है और जैसे ही उसकी पढ़ाई खत्म हुई नहीं उसके रिश्ते की बात शुरू हो जाती है और अभी भी अधिकतर परिवार कुण्डली मैच पर भरोसा करते हैं, नहीं भैया कम से कम अठारह गुण तो मिलने ही चाहिए तब ही विवाह की सोची जा सकती है, और ये कुंडली के चक्कर में कई बेचारे तो बुढ़े हो जाते हैं क्यों? कुंडली मैच नहीं हुई,अरे ज़रा सोचो तो सही जिनकी कुंडली मैच हुई है,उनसे ही पूछ लो उनकी शादी कितनी सफ़ल हो गई आए दिन तो घर मे क्लेश है। क्या फ़ायदा ऐसी कुण्डली मैच का जब आपस मे अंडरस्टैंडिंग ही नहीं है,पूरा वैवाहिक जीवन सिर्फ बेमतलब के झगड़े और गलतफहमियां दूर करने में बीत जाता है। 
बात यहाँ पर आपकी बेटी की हो रही है,आप उसको आज़ाद भी रख़ते हैं और कैद भी,वो कैसे? वो बाहर जाने के लिए स्वतंत्र तो है कठपुतली की तरह, बाहर तो निकल गई मगर नियंत्रण हर समय आपके हाथ में है,बेटी को डरा कर नहीं प्यार से रखना है, उसे खुद भले और बुरे की समझ है।
हमेशा ही बात जब इज़्ज़त सम्हालने की होती है तो ज़िमेदारी बेटी की ही है। ठीक है मान लिया,खुद ही सोचिए पहले कुंडली,चलो जिस नम्बर पे ही मैच हुई फिर लड़की को देखने लोग आएंगे, उनकी आना आवभगत मान- सम्मान, देखने आने का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि रिश्ता पक्का,थोड़ी सी बात ऊपर-नीचे होने पर रिश्ता नहीं बन पाता। वो किस्मत वालियां हैं जिनको बार -बार  इस परीक्षा से नहीं गुज़रना पड़ा हो,या किसी के साथ एक ही बार ऐसा हुआ है तो वाक़ई वो खुश किस्मत है। वरना कई लड़कियां आज भी इस परीक्षा से कई बार गुज़रती हैं। उस दौरान उसका कितना मानसिक शोषण हो रहा है,कौन है जीवनसाथी ये,वो कंफ्यूज़ ही रहेगी  क्योंकि बात फाइनल नहीं हुई,दिल है भइया पेन ड्राइव थोड़े ही है कुछ भी सेव करलो,ये कम ही लोग जानने या समझने की कोशिश करते हैं।
और जिस बेटी पर आप लाख पहरे लगा देते है जिसके दिमाग को अपने तरीके से सोचने की तक इज़ाजत नहीं है।
अचानक से इसके लिए आप एक अनजान जिससे उसकी कुंडली मैच हो गई,उसको अपनी बेटी सौंप देते हैं? आप उसका रहन सहन आचार विचार किसी बात से परिचित नहीं हैं सिवाय उसकी कुंडली के? क्या ये लाख पहरे अपने अमूल्य खजाने में सिर्फ इसलिए लगे थे कि कल आप ऐसे ही किसी को भी सिर्फ कुंडली मिलान के आधार पर यों ही सौप देंगे, कुंडली कितनी ऑथेंटिक है और मिलाने वाला कितना दक्ष है, आजकल तो लोग डेट ऑफ बर्थ भी गलत बता देते है इस तरह चेंज कर दिया जाता है कि गुण मिलान हो ही जाएगा।
 इन सब बातों से मुझे सिर्फ इतना समझ आया कि हमारे जीवन में शादी करने से अधिक महत्वपूर्ण कोई दूसरा विषय है ही नहीं। एक बहुत बड़ा समय सिर्फ शादी करवाने के लिए समर्पित जो जाता है फिर वो छः महीने से पांच साल हो या पूरा जीवन हो।
क्या हम सच मे शादी करने के लिए ही पैदा हुए हैं?  ओह्ह काश हम इतना समझदार बन पाते कि जीवन को सहज रहने देते। कुंडली से ज्यादा मन और भावों का मिलान ज्यादा ज़रूरी है,ज्यादा ज़रूरी है जीवन मे ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति जिसके सिर्फ साथ होने से ही जीवन गुलज़ार है। 
वरना हम सिर्फ जीवनपर्यंत बेसिरपैर के लड़ाई झगड़ो और ग़लतफ़हमियों को ही सुलझाते रह जाएंगे, क्या कर पाएँगे हम समाज के लिए?देश के लिए कुछ,जब हमारे अपने जीवन की जटिलताएं खत्म नहीं होती,हमारी ऊर्जा का एक बहुत बड़ा हिस्सा सामने वाले से," मेरा मतलब ये नहीं था यार,प्लीज 🙏 मेरी बात को गलत मत समझो" ये कहने में ख़र्च हो जाता है।
आजकल लोग वैसे ही कभी कुंडली कभी किसी और कारण से ज्यादा उम्र में शादी करते हैं,फिर बाकी की उम्र वो एडजस्टमेंट करते हैं और क्या करेंगे चारा क्या है।
क्या प्रोडक्टिव कर रहे हैं हम ?अपने जीवन में,जवान होते ही विवाह की चिंता,खोज..ख़ोज..ख़ोज, कुंडली मिलान ख़ोज  पूरी,अब नई उड़ान .अब बाकी का जीवन एडजस्टमेंट, क्लेरिफिकेशन।
सच सिर्फ इतना है कि दुनिया मे हर कोई खुश रहना चाहता है,हर दिन नए नए साधन ढूंढता है क्या पता इससे खुशी आ जाए,क्या पता इससे मन ठीक हो जाए। जड़ में जाईये तो सही दुःख परेशानियां अगर हैं तो ये आई कहाँ से?
ये जटिलताएं बनाई किसने ?इतने बेतुके कायदे कानून किसने बनाए?
आप क्यों वो करना चाहते है जो आपके जीवन मे थोपा गया है,वो आपका सहज गुण नहीं, आप तो बस जो लकीर खींची है उस पर चल रहे हैं। 
जीवन को सहज रहने दो,उसे बाध्य मत करो।
उसका दम न घोटो। जीवन का उद्देश्य हमारे जीवन का उद्देश्य शादी करके मेंटल टॉर्चर होना नहीं है, ठीक है आपकी खुशी है तो आप करिए। मगर किसी को,इसलिए बाध्य न करें कि समाज लोग क्या कहेंगे। कृपया समझो जीवन जीने के लिए है। लड़ाई-झगड़े गलतफमियों के निबटारे के लिए नहीं।
बस इसी तरह पूरा जीवन निकल जाएगा।
कुछ कर पाऐं किसी के काम आ पाऐं,किसी का जीवन सवार  पाऐं उसके लिए हमारा मानसिक रूप से स्वस्थ होना बहुत जरुरी है।
हम लड़ झगड़ कुड़ कर किसका भला कर पाएंगे? खुश होंगे तभी तो खुशी बांट पाएंगे।

शनिवार, 3 जुलाई 2021

kavita/hindi मुझे याद है तुम्हारा वो बचपन




 मुझे याद है
तुम्हारा
वो बचपन
जो तुम छोड़ आए।
तुम्हारी वो
मासूमियत
मुझे याद है
 तुम्हारे
खेल अज़ब थे
जब तुम्हारे खिलौने
अज़ब थे
मुझे याद है।
वो बचपन
जो तुम छोड़ आए।
तुम हर चीज से
खेल सकते थे।
हर छोटी सी
बात पर खुश होते थे।
तुम उम्र से पहले
बड़े हो गए।
वो बचपन
 क्या गया
साथ गई 
तुम्हारी मासूमियत
मुझे याद है।
वो बचपन
जो तुम छोड़ आए।
तुम्हारी वो 
खिलखिलाती
हंसी भी गई।
शरारतों को साथ
ले गई।
मुझे याद है।
वो बचपन
जो तुम छोड़ आए।
तुम बड़े तो हो गये
ये तो खुशी की बात है।
मग़र पता नही क्यों?
  मुझे अफ़सोस है
तुम्हारी मासूमियत 
खोने का।
मुझे याद है।
वो बचपन
जो तुम छोड़ आए।
अब तुम्हारे खिलौने
बदल गये।
अब तुम सेल फोन
से खेलते हो।
दुनिया तुम्हारी
वर्चुअल है।
नेटवर्क न आने से
चिढ़ते हो।
मुझे याद है।
वो बचपन
जो तुम छोड़ आए।
अब कोई तुम्हें 
कॉल न करे
तुम डी एन डी
एक्टिवेट रखते हो।
गेम खेलते हुए
गलत शब्दों का प्रयोग 
करते हो।
मुझे याद है।
वो बचपन
जो तुम छोड़ आए।
अब तुम्हारे सारे
एक्सप्रेशन 
गेम खेलते हुए
दिखते है।
कभी गुस्सा
कभी हंसी 
कभी दौड़ भाग
गोली बारूद
मार काट 
सब स्क्रीन पर चलती है।
मुझे याद है।
वो बचपन
जो तुम छोड़ आए।
तुम वास्तविकता में
कहाँ हो?
किस धुन में
 तुम खाते हो
किस धुन में पीते हो।
बस फोन की स्क्रीन में
तुम अठारह घण्टे 
आंखे गढ़ाए बैठे हो
मुझे याद है।
वो बचपन
जो तुम छोड़ आए।

स्त्री एक शक्ति

स्त्री हूं👧

स्री हूं, पाबंदियों की बली चढ़ी हूं, मर्यादा में बंधी हूं, इसलिए चुप हूं, लाखों राज दिल में दबाए, और छुपाएं बैठी हूं, म...

नई सोच