रविवार, 21 जुलाई 2019

Do you need that someone?

Yes you must have to learn,
How people hurt you.
You must have to know,
How they represent,
their selves,
Not everyone is,
innocent like you.
Who can't see,the truth.
Just believing,
in a fake personality.
And get always,
ready for further wounds.
You never be able,
to overcome.
You never be able,
to heel your wound.
Still you wait,
that they are,
going to come,
To heal you,
to make you comfortable,
but is it true?
Again the same pain,
again the same pattern,
of behaviour.
Do you think,
will you be able to bear?
Yes you found,
yourself always helpless,
Because you only,
expect from them,
Who are not,
worth expecting.
They don't know,
feelings, emotions,
Love dedication or bonding,
They just live,
their life for fun.
If every enjoyment,
is with out you,
Believe, your presence,
Doesn't matter,
anywhere in their life.
Still you wait?
Still you expect?
No my dear,
it's not the way of living,
Believe in yourself
and in your personality.
You are not less,
at anyway,
But you forgot,
the value of your own.
You think that,
you can be smiling and happy...
Only when people,
makes you happy.
It means,
happiness is not the virtue,
Which originates from you.
You are asking to the people,
all the time,
That,make me happy,
make me happy.
Tell,if you are healthy enough,
You have enough,
sources of living.
You have a good voice and brain
Can't you alone,
take care of yourself?
You need someone else?
Whoes behaviour
and whoes thoughts
always clash with you?

बुधवार, 17 जुलाई 2019

कितने बदले हम और कितना बदलना बाक़ी है।

आइए आज कुछ चर्चा करें। कुछ गहरी नहीं कुछ गम्भीर नहीं,बस सीधी सी बात करें, इंटरनेट के रंग में हम सभी रंगे हैं,आज कहीं भी जाओ लोग स्क्रीन में घुसे है। आपको नहीं लगता ये समस्या कितनी आम है,बड़े बुजुर्ग,जवान बच्चे सभी एक अजीब सी दुनियां में व्यस्त है,आज हमें अपनो से बात करने की उनके साथ समय बिताने की फुरसत नहीं है,मगर किसी भी सोशल साइट को डेली कई बार विजिट करना, लोगों के फ़ालतू के पोस्ट देखना,अनावश्यक पोस्ट पर लाइक करना हमारी दिनचर्या बन गई है चाहे लाइक ना करें चाहे पोस्ट भी ना करें मगर  स्क्रॉल करते रहना एक अजीब सा अभ्यास बन गया है,सच तो ये है इंटरनेट की दुनिया में जो बेवजह के शौक हमने पाल लिए हैं अजनबी लोगों से बातचीत करना,दोस्ती करना ये सब कितना ज्यादा फायदेमंद है। क्या हमारे अपनो को हमारी ज़रूरत नहीं कहीं हमारे लोग हमसे बात करने को तरसते है वो हमसे चाहते हैं हम उनके साथ कुछ समय बिताए,मगर दूसरी तरफ़ हम ऐसी दुनियां में समाते जा रहे हैं जहां लाइक करने वाले कई हाथ मिल जाएंगे मगर ज़रूरत में कोई साथ देने वाला  नहीं मिलेगा,कहीं ना कहीं जो इंटरनेट प्रेम है वो हमें हमारे अपनो से अलग कर रहा है,जो समय हमें किसी सही काम में लगाना चाहिए,अपनी ग्रोथ में लगाना चाहिए या कुछ नया कर गुजरने में लगाना चाहिए,वो समय हमारा व्यर्थ की बातों में चला जाता है और परिणाम स्वरूप हमें मिल क्या रहा है? इंटरनेट बिगड़ने वालो को बिगाड़ देगा और सुधरने वालों को सुधार देगा,ज्ञान का असीमित सागर है इंटरनेट,हम चाहे तो अपने जीवन को अच्छी दिशा दे सकते है इंटरनेट के माध्यम से,जितना चाहे उतना अपने ज्ञान के भंडार को बड़ा सकते है मगर ज्यादातर लोगों का समय सोशल मीडिया पर चैटिंग स्क्रॉलिंग या कमेंटिंग में बीत जाता है,यहीं खत्म हो जाता है ज़िंदगी का उत्साह,हम चाहें तो क्या नहीं कर सकते,क्या नामुमकिन है मगर किसी भी बात को मुमकिन करने के लिए उसमें अपनी रुचि होना ज़रूरी है। मगर अजीब बात है ज़िंदगी में करना हम बहुत कुछ चाहते है,सिर्फ मेंहनत करना नहीं चाहते। किसी मित्र,किसी सगे संबंधी से आज मिलने चले जाओ और देखो महसूस करो लोग कितनी रुचि लेते है इस मुलाक़ात में,कितनी वो आपकी बात सुनते हैं,हो सकता है आप बात कर रहे हैं और वो अपने फ़ोन की स्क्रीन में घुसे हुए है,आपका साथ देने को बीच बीच में हां हूं ज़रूर कर देंगे,बड़ा अफ़सोस होता है ऐसी हालत देखकर,सोशल साइट  इस्तेमाल करते हुए लोग,अपने रिश्तों की मर्यादा तक भूलते जा रहे हैं,किसको क्या सन्देश फॉरवर्ड करना चाहिए किसको क्या बोलना चाहिए ये भी लोग सोच नहीं पा रहे हैं,पता नहीं क्यों मगर एक तरह की निर्लज्जता बेशर्मी समाज में  फैलती जा रही है, रिश्तों का हनन होता जा रहा है,आजकल गुडमॉर्निंग के संदेश ही देख लीजिए कितने तानो और तंजो से भरे हैं,किसी को आपको बात सुनानी हो तो वो आधी रात को भी गुडमॉर्निंग संदेश भेज देगा अगर उसमें आपने लायक सटीक ताने हों, ये ही बातें कहीं हमें मानसिक अशांति देती हैं,तो यही, कहीं हमें अपनो से दूर करती हैं,हम अपने रिश्तों को अहमियत नहीं दे पाते,हम अपनो के साथ का आंनद नहीं ले पाते सच तो ये है हम अपनो के बिना आराम से रह लेंगे मगर आज की तारीख में मोबाइल फोन के बिना नहीं रह पाएंगे इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या है और सबसे अजीब बात तो ये है मातृ दिवस वैसे तो ना ये हमारी संस्कृति में है, नहीं ऐसा कोई दिवस मनाया जाता था,मगर जब से ग्लोबलाज़ेशन का ज़माना आया,तब से हमने भी बहुत कुछ ग्लोबल स्तर पर किया है,कुछ बातें अच्छी है करनी भी चाहिए,मगर हर बात क्या गृहण के योग्य है? हमारे संस्कारों में हर दिन मातृ दिवस ही है,मगर साेशल मीडिया के लती लोग,चलो लोगों की देखा देखी ही सही मातृ दिवस पर पोस्ट डाल देते हैं,इस बहाने अपनी मां को याद भी कर लेते हैं,एक सीधी सादी मां बेचारी जो अब तक सोशल मीडिया से दूर है, उसे तो ये भी पता नहीं कि उसके लिए एफबी पर कोई पोस्ट डाली है,या वॉट्सएप पर कोई स्टेटस सेट किया है,वो मां जिसे ये तक पता नहीं कि आज मातृ दिवस जैसा कोई दिवस भी है,क्या बेहतर नहीं हो कि जितना समय पोस्ट और स्टेटस सेट करने में लगता है उतना समय हम अपनी मां के लिए निकाल लें,मां के हाल चाल जान लें, दुनियां भर को ना भी दिखाएं तो क्या फ़र्क पड़ेगा,ये शो ऑफ करके क्या मिलेगा,ये वहीं बात है आज सेल्फ़ी के लिए और सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए लोग सिर्फ अच्छे काम का दिखावा करने लगे हैं,हमें जानना चाहिए हमारे कामों में कितनी सच्चाई कितनी ईमानदारी है,अपने अच्छाई का ढोल ना पीटे तब भी,हमारे अंदर अच्छाई है तो वो खुद ही सबके सामने आ जाती है,क्या हमारा व्यक्त्तिव कॉपी पेस्ट नहीं है क्या हमारे सेलिब्रेशन अब सिर्फ पोस्ट डालने के लिए नहीं बचे? ये हम कौन सी प्रतिस्पर्धा में उतरे हैं? जिससे हमारा कोई नाम नहीं होना,ना हमारा कोई काम होना,क्या ये ज़रूरी नहीं कि हम इन सब बातों को समझें,अपने स्वभाव को ना छोड़ें,ना अपनाएं ऐसा कुछ जो हमारे व्यक्तित्व को फेक बनाता है,क्या ये सच में ज़रूरी नहीं?

मंगलवार, 16 जुलाई 2019

दारू- कितनी सही है?

मैंने अपने बचपन से देखा है और महसूस किया है शराब एक गलत पेय है,लोग शराब पीकर अपनी सीमाएं और अपनी मर्यादा भूल जाते हैं,या यूं कहो मर्यादा लांघने के लिए उन्हें शराब की ज़रूरत पड़ती है,अक्सर शराब के नशे में डूबा इंसान अश्लीलता

की हद पार कर देता है, सामान्य लोग ऐसे लोगों के पास फटकने से डरते हैं क्या पता नशे में क्या बोल दे और क्या कर दे,सच है शराब असुरों का पेय है, उसे आसुरी प्रवृति से जोड़ा जाता है देवीय गुणों को मदिरा कभी शोभा नहीं देती,क्योंकि देवीय गुणों को सीमा लांघने की आवश्यकता नहीं,शराबियों की हरकतें देखकर ही मुझे बचपन से शराब और शराबी से नफ़रत थी,मुझे हर वो व्यक्ति पसंद नहीं था जो शराब पीता हो,खुद सोचना शराब कोई,क्यों पीना चाहता है, शायद कुछ हदें ऐसी है जिनसे हम सिर्फ शराब पी कर बाहर निकलते हैं, शराब पी कर एक गन्दी मानसिकता बाहर निकल कर आती है, हमारी सोच का स्तर बाहर निकल कर आता है,या यूं कहो कि लोग हद पार करने के लिए शराब का सहारा लेते हैं,हमारे शब्दों का स्तर अश्लीलता की हदें पार करता है,शायद लोग इस हद तक स्वतंत्र होना चाहते है कि लोग कहें शराब के नशे में बोला,दूसरी बात हम किसी व्यक्ति का अनुसरण करते हैं,अपने आप को हर तरह से उसके रंग में ढालते हैै,क्योंकि वो व्यक्ति आध्यात्मिकता से जुड़ा है, हमें ज्ञान देता है,और कोई भी नहीं चाहता हम ऐसे गुरु का अनुसरण करें जिसके अंदर भी सीमाओं को तोड़ने की चाह है,या जो सीमा तोड़ता हो,राम- रहीम को देख लो लाखों लोगों को अपना अनुयायी बना दिया, सदगुरु का नाम जपा दिया,इंसान टैग दे दिया और खुद के कर्म इतने ख़राब,सालों से जो लोग उनके भरोसे इस आस्था में डूबे अंत में उन पर क्या गुजरी,मै सिर्फ इतना कहना चाहती हूं,अगर तुम एक तरफ़ कहते हो तुम आध्यात्मिक हो,तुम हकीकत में एक चिटी को भी नहीं मारते तुम्हारे अंदर इतनी दया है,तो फिर दूसरी तरफ़ तुम एक सीमा से बाहर क्यों निकलना चाहते हो,क्या तुम्हें उस वजूद में घुटन होती है?तुम क्यों कुछ समय के लिए ही सही, मगर एक अजीब रूप में क्यों आना चाहते हो क्या इसका मतलब ये नहीं कुछ पलों के लिए ही सही मगर तुम अपने पिंजर से बाहर निकलना चाहते हो,क्या तुम्हारा उस आध्यात्मिक वजूद में दम घुटता हैं,जिसकी वजह से तुम उससे अलग होना चाहते हो? फिर उसका क्या जो तुम्हे आदर्श समझता है?जिसने खुद को पूरी तरह से तुम्हारे रंग में रंग दिया उसका क्या? ये कैसा आदर्श है जो कभी कभी शराबियों की तरह सड़क के किनारे दारू का नशा करना चाहता है और ये कैसा आदर्श है जो कुछ समय को खुद को आजाद करना चाहता है हदें तोड़ना चाहता है,मै सिर्फ इतना कहना चाहूंगी की जो लोग तुम्हे आदर्श मानते हैं,तुम्हे अनुसरण करते है कम से कम अपनी हरकतों से उनकी भावनाओं को ठेस मत पहुंचाओ,दारू,ना सही शब्द है,ना ही उसे कभी अच्छाई से जोड़ा जा सकता है,ये सीमाओं का उलघंन है,जहां तक नशे की बात करें जीवन के कई पहलुओं में नशा हैं प्रकृति की सुंदरता में नशा है आध्यात्म में नशा है जो हमेशा हमें अच्छे मार्ग पर ले जाता है,हमारे मन और मस्तिष्क को शुद्ध करता है हमें अच्छाई की ओर प्रेरित करता है और दारू हमारी बुद्धि को भ्रष्ट करती है,हमसे नीचता और अश्लीलता की हदें पार करवाती है,गंदगी हमेशा गंदगी ही रहेगी वो चाहे कुछ पल को हमारे जीवन में आए मगर हमें गंदा करके ज़रूर जाएगी,बाकी हर व्यक्ति की अपनी व्यक्तिगत पसंद है वो क्या चाहता है। अध्यात्म और दारू का कोई मेल नहीं है, अध्यात्म एक अमृत है जो हमें अमरता की ओर और दारू एक ज़हर है जो हमे मृत्यु के गर्त में ले के जाती है, आध्यात्मिक हैं तो पूरी तरह से सात्विकता से जुड़ें, कुछ पलो  के आंनद के लिए उस वजूद से बाहर निकलने को ना छटपटाए,अगर वाकई अंदर ऐसी छटपटाहट बाकी है तो हमारी आध्यात्मिक्ता केवल ढकोसला है,वरना हम क्यों उससे बाहर निकलना चाहते? तुम भी दूसरों की तरह हदें ही तोड़ना चाहो,अपने अच्छे वजूद से निकलने के लिए छटपटाओ तो बताओ उनमें और तुममें अलग करने को है क्या?मै कैसे अंतर बताऊं?

शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

रिश्ते ऑनलाइन


यकीन मानिए,
उन्हें फुरसत नहीं
रिश्ते निभाने की।
उलझे हैं वो ज़िंदगी की
जद्दोजहद में,कुछ इस तरह
कहां  पड़ी है उन्हें,
प्यार, जताने की?
अगर दो पल,आपको चाहिए
उनके भाई,
ऑनलाइन आइए।
कम से कम,
इस तसल्ली के
लिए अरे अभी तो,
वो यहां मौजूद थे
उनसे ना सही,
उनकी मौजूदगी से ही,
मुलाकात हो जाएगी,
यार इतनी व्यस्त ज़िंदगी में
क्या ये वर्चुअल
मुलाकात कम है?
पता एक हो तो बताएं
अब तो घर के अलावा भी,
उनके कई ठिकाने हैं,
हाथ नहीं आते,
ये बात अलग है,
मौजूद थे यहां,
आप ये जान पाए,
क्या ये कम बात है?
आप तो इतने से,
बदलाव से ही घबरा गए.
नहीं सहन होता आपको
तो उनकी क्या खता है?
या तो उनके इस रंग में,
आप भी रंग जाइए।
ना हो सके ऐसा तो,
भैय्या,पतली गली से,
निकल जाइए।
आपको बदलाव पसंद नहीं,
ये आपकी व्यक्तिगत परेशानी है
किसी और को इसमें घसीट लेना
ये आपकी नादानी है।
किस-किस को आप,
रिश्तों का पाठ पढ़ाएंगे?
कहां-कहां मत्था फोड़ेंगे
कहां-कहां टेशुए बहाएंगे?
फिर भी कौन मान लेगा?
कौन समझ लेगा, आपके भावों को?
इसलिए व्यर्थ है,आपका इस तरह
दुख में डूबना।
अभी तो बहुत कुछ होना बाकी है
अगर ये सहन नहीं होगा,
तो कैसे और बड़ा भारी भरकम,
बदलाव सह पाओगे?
ऐसे ही रहे तो भैया,
बताओ,फिर क्या पाओगे?
और तो कुछ नहीं,
बस अपनी ही जान गंवाओगे।

निश्चित अनिश्चित

ना तुम अजर हो,
ना मैं अमर,
अनिश्चित है, जीवन,
और जीवन की घटनाएं।
मगर निश्चित है मृत्यु,
हम सभी की।
मगर उसका भी,समय है अनिश्चित।
ना जाने कब,कहां,किस पल,
आंखिरी सांस हो किसी की।
मगर लड़ते-झगडते हम ऐसे हैं,
जैसे आए हो,यहां अनंत काल को
जैसे हमेशा ही उपलब्ध रहेंगे,
एक दूसरे के लिए,
लड़ने झगड़ने को।
ये लड़ाई-झगड़े तो उसी दिन,
ख़तम हो जाएंगे, जिस दिन
एक भी हममें से,
निकल जाएगा,इस दुनियां से।
उस दिन दफ़न हो जाएंगे,
सारे गिले,सारे शिकवे,
सारी उम्मीदें
सारी हिदायतें।
फिर कहां खोजेंगे उसे?
फिर लड़ने को,गुस्सा दिखाने को।
वो राख़ हो चुका होगा जब,
फिर कभी आवाज़ नहीं दे पाएं,
कभी ना साथ बैठ पाएं।
तब बुराइयां कम,
अच्छाइयां,ज्यादा याद आएंगी,
जो जीते जी,कभी नहीं दी दिखाई।
अजीब बात है ना,
जब तक ज़िन्दा थे,तुम्हें
बुराइयां के सिवा,
कुछ दिखा नहीं।
आज राख हो गए तो,
अच्छाइयां नज़र आईं?
क्या सारी लड़ाई,
इस अस्तित्व से थी?
क्या सारी शिकायत,
इस उपस्थिती से थी?
पता है तुम्हें आज,
पलटवार ना होगा,
क्या यही वजह है,
अब,मेरे अच्छा होने की?

रविवार, 7 जुलाई 2019

शब्द

कुछ नहीं रहता
मगर रह जाते हैं
ये शब्द,
साथ हमारे,जीवनपर्यंत।
कभी मरहम की तरह
सहला जाते हैं।
तो कभी तीर की तरह
चुभ जाते है।
अवश्य ही क्रोध में,
या घृणा में,
जो हम कह जाते हैं,
किसी निर्दोष से,
किसी मासूम से,
भले ही राहत मिलती हो, हमें
पल भर को,
इस कृत्य से,
मगर भूल जाते हैं हम।
या सोचते ही नहीं।
कितने गहरे,
किसी के अंतर्मन में,
जा चुभे,वह विष बुझे तीर।
क्रोध में,घृणा में
जो हम बोल गए, और
कुछ ही पलों में भूल गए
वहीं शब्द,
किसी के हृदय में,
जीवाश्म बने,दबे हैं,कई परतों में
जो हर खुदाई में, बार-बार
बाहर निकलते हैं,और
देते हैं परिचय,
आपके दुर्व्यवहार का।
आज हमें निभाना किससे है?
या किसे फुरसत है,
व्यस्त ज़िंदगी में,
किसी से मिलने की,
या साथ बैठने की,
हां यही शब्द हैं,
जो निभा रहे है,
इस दौर में,सारे रिश्ते और
सारे नाते।
बस इन्हीं को ही तो ,
हमें सम्हालना है।
मिठास ना बन सके,
ना सही।
मगर ज़हर बन के,
किसी की ज़िंदगी में,
कभी ना घुलें।

शनिवार, 6 जुलाई 2019

रिश्ते आज

दो पल के,आकर्षण में
कुछ रिश्ते बनते है।
जीवनपर्यंत, साथ चलने को
मगर कितने रिश्ते,चल पाते है?
और कितने ठहर जाते हैं?
कुछ परिस्थितियों के
बोझ से,
तो कुछ,दूसरे की सोच से
दब जाते हैं।
नहीं स्वीकार कर पाते वो,
आधिपत्य किसी और का।
बस यहीं,रिश्ते दम तोड़ जाते हैं
नाज़ुक से धागे,टूट जाते हैं।
एक तरफ़ उम्मीद हो
और दूसरी तरफ़ तिरस्कार,
इसी खींचतानी में,
बातों के,
सिलसिले रूठ जाते है।
ना वो हमें समझ पाते,
ना हम उन्हें समझ पाते,
तब दौर सिर्फ,
दोषारोपण के रह जाते है।
ना वो थम पाते हैं,
ना हम रुक पाते है
फिर भी नाजाने,किस उम्मीद में
निभाते हैं।
बार- बार लौट आते हैं।
फिर क्या? वहीं घृणा!
वहीं तिरस्कार?
अब लगता है शायद
थमेगा ये कारवां भी
ना दोष रहेंगे,
ना दोषारोपण,
ना कोई अपेक्षा
ना बदले में उपेक्षा
रहेंगी तो बस
दो
दिशाएं।
एक में तुम
और एक में हम।
देखो अब ना कोई गिले,
ना कोई भरम,
ना कोई शिकवे,
ना कोई ग़म।

शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

ज़िंदगी

कुछ ही समझी हूं ,
अभी,
कुछ समझना बाकी है,
ज़िन्दगी ।
बिना कोई सवाल किए ,
तेरे जवाब,
सुनना बाकी हैं।
ज़िन्दगी।
कुछ ऐसे जवाब
शायद,जिन्हें सुनने को,
मैं तैयार नहीं।
कुछ ऐसे जवाब,
शायद
जिनकी मुझे,
तुझसे उम्मीद नहीं,
ज़िन्दगी।
कभी कभी,
मेरे दिल का ख्याल रखे बिना,
तू बहुत कुछ बोल जाती है।
मगर मेरी है,
अभी तुझे जीना बाकी है।
ज़िन्दगी।
क्यों ऐसे निरुत्तर,
मुझे कर देती है
प्रश्न भी तू ही उठाती है,
जवाब भी तू ही देती है,
ज़िन्दगी।
कभी - कभी,
बहुत बेबस कर देती है,
ज़िन्दगी।

गुरुवार, 4 जुलाई 2019

प्रेम🌹



प्रेम
क्या शब्द है?
क्या इसकी परिभाषा है?
कितनी इसकी गहराई है।
मझे नहीं पता
और मुझे लगता भी नहीं
की इसे कोई परिभाषित कर सकता है।
हां इतना अवश्य पता है,
प्रेम होने की कोई शर्त नहीं है
प्रेम अनायास है
शारीरिक आकर्षण
और सौंदर्य से परे है
प्रेम  धर्म जाति संप्रदाय
और आयु के बंधनों से मुक्त है
स्वच्छंद है
निश्छल है
शब्दों की सीमा से बाहर
अभिव्यक्ति से परे
अव्यक्त पीड़ा है।
प्रेम सरलता पर रीझता है
भोलेपन पर बरसता है
निष्कपटता में बसता है,
दया में छलकता है।
थोड़ा शरारती है
थोड़ा मासूम है
हद से ज्यादा भावुक है
और बड़ा समझदार हैं।
सब कुछ देख सकता है
मगर अजीब बात ये है
कि प्रेम अंधा है।

कर्तव्य

( राजा हरिश्चंद्र मूवी देखने के बाद जो मुझे महसूस हुआ ये वो विचार हैं) आज बड़े गौर से सोचा तो समझ आया जीवन कर्तव्यों के निर्वाह के अतिरिक्त है क्या? हर दिन हमें अपने कर्तव्यों को ही तो निभाना है। किसी से चाहे कितना ही अटूट प्रेम हो किसी में कितनी ही आसक्ति हो मगर अपने कर्तव्यों में बंधें होने के कारण हम उसके साथ जीवन निर्वाह ना कर पाने को बाध्य होते हैं और भी अटल सत्य है जन्म और मृत्यु जिससे कोई अपरिचित तो नहीं और  किसी प्रियजन की मृत्यु पर चाहें हम कितने ही अधिक दुःख या शोक में निमग्न हो और वह समय ऐसा होता है जब व्यक्ति एक कोने में पड़ा रहे हिले भी नहीं,मगर कर्तव्य देखो घोर दुःख में आंसुओं में उसे उठना पड़ता है लोगों को एकत्रित करना पड़ता है,अपने प्रियजन की अंत्येष्टि की सामग्री उसे जुटानी पड़ती है जो उसका परम कर्त्तव्य है मगर हृदय तो कुछ और ही कहता है पड़े रहो एक कोने में आकुल रहो,अश्रु बहाते रहो मगर क्या ये संभव है कर्तव्य सर्वोपरि है, कर्तव्य का आपके दुख पीड़ा से कोई सम्बन्ध नहीं वो आपके साथ रियायत कभी नहीं बरतेगा। आपको अपनी भावनाओं को एक किनारे रख कर सबसे पहले अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना ही है। यही सत्य है।

प्रियतम देखो ना

प्रियतम
देखो ना ये मौसम
तुम्हारी यादों की तरह
सुहावना हो गया।
देखो ना, बादल घिर आए
अंधेरा छा गया!
फिज़ा में सुकून भरी
खामोशी पसर गई।
मेरे मन के किसी कोने में,
मीठी सी हलचल कर गई।
देखो ना ये एहसास,मुझे ही क्यों?
क्या तुम्हें ये मौसम,
कुछ याद नहीं दिलाता?
क्या तुम्हारा ध्यान ,
प्रकृति की ओर नहीं जाता?
क्या वो यादों की पुस्तक के ,
पन्नों को नहीं पलट पाता?
क्या तुम इतने मसरूफ़ हो?
अपने हालातों में ?
जो तुम्हे दिख कर भी
कुछ दिख नहीं पाता.
क्या तुम्हारा तन मन,
कभी नहीं भीग पाता?
इस प्रेम की मंद-मंद बारिश में
बताओ ना?
क्या तुम उदासीन हो?
हर परिवर्तन से,
हर हलचल से,
हर उत्कंठा से।
हां अगर ऐसा है,
तो बताओ ना?
ये मुझ में क्या है?
जो हर पल हर क्षण
बहता है?
देखो ना ये क्या है?
जो मुझमें है!
तुममें नहीं।

क्यों?

तुझसे बात नहीं होती अब,
तेरे लिए,ये कोई बड़ी बात नहीं
जो हैै नहीं, उसे दिखाना क्यों है?
जो दिल से नहीं है, उसे निभाना क्यों है?
बड़ी मजबूरी में खुद को डालकर,
किसी को फिर गले लगाना क्यों है?
कभी खुल के तो बता,तुझे चाहिए क्या है?
ये बात बात पर,पहेली बुझाना क्यों है?
किसी के आंसुओं पर तरस खा कर
उसे वापस बुलाना क्यों है?
रोने वालो की फितरत अगर रोना है,
तो तुझे खुद के वजूद को भुलाना क्यों है?
जब दिल से कोई भाव,महसूस होता ही ना हो,
तो मन मार कर भी,उसे जताना क्यों है?

स्त्री एक शक्ति

स्त्री हूं👧

स्री हूं, पाबंदियों की बली चढ़ी हूं, मर्यादा में बंधी हूं, इसलिए चुप हूं, लाखों राज दिल में दबाए, और छुपाएं बैठी हूं, म...

नई सोच