बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

क्या आप खुश हैं इससे?

क्या खुश हैं आप इनसे?
मै अंदर से काफी उदास और हतोत्साहित महसूस करने लगी थी,क्योंकि मैंने ज्यादातर ऑनलाइन हाउसिंग साइट्स छान मारी थी,सब में बहुत आकर्षक फोटोज डाले थे बड़े ही अफोर्डेबल प्राइस में,लेकिन जब उनसे संपर्क किया तो निराशा ही हाथ लगी,,हम काफी लंबे समय से टू बीएचके फ्लैट में रह रहे हैं, अच्छा खासा फ्लैट है,मगर मै नहीं सोचती कि हमें इतने बड़े फ्लैट की ज़रूरत है,हमारी छोटी सी फ़ैमिली और कोई गेस्ट कभी आ भी जाए तो हॉल काफ़ी होगा,यही सोचकर मै चाह रही थी कि इसी बजट में अगर वन बीएचके मिल जाता है थोड़ी अच्छी जगह में जहां थोड़ा खुला खुला हो,दिल्ली के बंद अंधेरे कमरों में मुझे बड़ी घुटन सी महसूस होती है और कॉलोनी के सामने की जो सड़क है वो बारह महीने कीचड़ से भरी रहती है बारह महीने बरसात और इस सड़क से गुजरने वाले कार वाले या बाइक वाले तो भाईसाहब रोड पर चलने वालों को इंसान ही नहीं समझते,कभी भी किसी काम से निकल जाओ तो जूते चप्पल कपड़े सब कीचड़ में पुत कर लाओ,इस रोड से आना जाना भी मुझे पसंद नहीं है,बस इसलिए चाहती हूं इस जगह से कहीं और शिफ्ट हो जाए,मगर शायद क़िस्मत को भी ये मंज़ूर नहीं,ऊपर से मुझे बिजली के बिल में जो पर यूनिट चार्ज लिया जाता है उससे बड़ी तकलीफ़ होती है,मै मानती हूं ज्यादातर लोग सिर्फ ये सोच कर के सब जगह यही चल रहा है,चुप रह जाते है आज की उस डेट में जब दिल्ली में दो सौ यूनिट तक की बिजली पर कोई चार्ज नहीं है और हर महीने की हमारी रीडिंग सौ मुश्किल से पहुंच पाती है तब हम एक हजार तक हर महीने बिजली का बिल अलग से चुकाते हैं,अरे मै नहीं कहती कि हमारी बिजली फ़्री कर दो,मगर कम से कम इतना तो कर है सकते हो कि जो सरकारी चार्ज है पर यूनिट वो ही हमसे लो,किराया जब हम बराबर समय पर दे रहे हैं। सभी मकान मालिकों ने ये पॉलिसी अपनाई है सब अपनी मनमानी से चार्ज करते हैं वो अपने एसी कूलर का बिल किराएदार से वसूल लेते है,यहां तक कि दिवाली के समय हमने बारह सौ बिजली का अलग से बिल चुकाया,इसका मतलब साफ था कि वो दीवाली में बिजली का बिल इतना ज्यादा कैसे आया,मकान मालिक वो करते हैं जिसमें  उन्हें मैक्सिमम फ़ायदा हो, बेचारे किराएदार मजबूर हैं, वो ही वाली बात है जल में रह कर मगर से बैर कौन करेगा, क्योंकि हर जगह ये ही हो रहा है ऐसा नहीं है,इस मकान को छोड़े तो दूसरा मकान मालिक हमसे रियायत बरतेगा. वहां एक नए सिरे से एडवांस एक महीने का किराया,किराए के बराबर अमाउंट स सिक्योरिटी एडवांस में रखी जाती है और बिजली के वहीं चार्जेज,आम आदमी जाए तो कहां जाएं सब जगह लूट मची है,उसके बाद भी हमें स्ट्रिक्टली ये कह दिया जाता है कम से कम लोग रहें गेस्ट कम से कम आएं,छोटी छोटी बातों पर टोकना। हमारे देश में आधे से ज्यादा लोग बेराजगार है सरकारी नौकरी तो हर किसी के लिए रखीं नहीं है अपना भरण पोषण के लिए आदमी प्राइवेट सेक्टर की ओर भागता है, प्राइवेट सेक्टर का हाल तो सभी को पता है,कैसे खून पसीना एक करके आदमी दो पैसे कमाता है और इस तरह से अपनी मेहनत की कमाई को खैरात में बांट देता है,मज़बूरी है उसकी और वो क्या करे,सच तो ये लोगों का ज़मीर तो बचा नहीं वो किसी भी तरह से ज्यादा से ज्यादा फायदा कमाना चाहता है,चाहे उससे दूसरे का कितना भी नुकसान हो रहा हो,इतनी इंसानियत किसी में भी नहीं की वो दूसरे की भी जिम्मेदारियां देख ले दूसरे की भी मजबूरी समझ ले मगर ऐसा होता नहीं है,लोगों की ऐसी भाव शून्यता देख कर बड़ा क्षोभ होता है। ज़रूरी है हमारा मुंह खोलना,विरोध करना वरना हर जगह लोग हमारी शराफत का ही फ़ायदा उठाएंगे।

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2019

क्या ऐसा नहीं है

?
ये उस समय की बात है जब बात करने के लिए टेलीफोन बूथ हुआ करते थे,कम ही लोगों ने टेलीफोन कनेक्शन लिया था,अगर किसी को बहुत ज़रूरी काम होता था तो वो टेलीफोन बूथ पर जा कर फोन कर लिया करता  था,कौन भूला होगा वो पीसीओ,एसटीडी,आईएसडी,अरे भैया उस समय बूथ वालों ने भी लोगों को बड़ा लूटा ये समझ लीजिए अंधी कमाई की होगी,बेचारी आम जनता कॉल चार्जेज क्या जानती जितना बिल बना, देना मजबूरी होती थी क्योंकि वो थमा देते से मीटर से निकला बिल फिर कोई भला कैसे नानुकुर करता?इससे तो वो एक रुपया डालने वाला फोन सही था,एक रुपए की बात खत्म होने पे कट जाता था,सच तो ये था कि वो मीटर ही तेज भागने वाला होता था,वो सुकून की बात कहां होती थी,फोन करने वाले की बात अगर दूसरी तरफ़ वाला लंबी खींचता तो उस बेचारे की रोनी सूरत मीटर पे टिकी होती थी,उस समय कौन कल्पना कर रहा था कि आने वाला समय इतना रिवॉल्यूशनरी हो जाएगा? तब तो मोबाइल फोन इंटरनेट ये सब तो काल्पनिक  दुनिया की ही बातें थी,मगर एक बात सच है तब सुविधाएं नहीं थी,रिश्तेदार मित्र जो बहुत दूर रहते थे उनका हालचाल जानने का सहारा चिट्ठी ही हुआ करती जो लगभग पन्द्रह दिन आने जाने में लेती थी,ऐसा नहीं है कहीं दूरी कम होती तो दस दिन में भी जवाब मिल जाया करता था,अरे जब वो चिट्ठी का जवाब आता था वो पल भी कम आनंददाई ना होता,वो दादी का अपने पोते पोतियों से चिट्ठी पढ़वाना और घर के सभी सदस्यों का बड़े चाव से एक एक शब्द सुनना कहीं मेरा भी ज़िक्र हो,क्योंकि चिट्ठी में हर किसी का हाल पूछा होता,छोटे बच्चों के लेख की तारीफ होती जो भी चिट्ठी का जवाब लिखता था, बच्चे भी बड़े लालायित रहते अपनी तारीफ सुनने को,ये वो दिन थे जहां सच में रिश्तों में प्रेम आदर था किसी तरह की औपचारिकता नहीं थी,अच्छा है ना  यहां हम कह सकते हैं,दूरियां और देरी दोनों ही अच्छे थे,कम से कम रिश्ते तो ज़िन्दा थे,तब कौन किसको क्या देता था वो सिर्फ प्रेम था,आपको नहीं लगता ग्लोबलाइजेशन क्या हुआ, इंटरनेट की धूम क्या मची रिश्ते नाते सब धूल में उड़ गए,अब वैसा कोई उत्साह बचा ही कहां हैै,अब कौन कलम उठाएगा चिट्ठी लिखने को,अगर लिखने भी बैठेगा कोई,तो कितने शब्द लिख पाएगा? यही सच है,तब आदमी हर काम खुद करता था,तब भी उसके पास बहुत समय था और आज हर काम मशीन से हो जाता है तब भी आदमी बहुत व्यस्त है या खुद को व्यस्त दिखाता है जो सही लगे वो ही समझ लीजिए,तब कोई होड़ नहीं थी,कोई दिखावा नहीं था,अब बिना दिखावे के काम भी कहां चलता है,आधे से ज्यादा समय लोगो का सेल्फ़ी लेने में निकल रहा है,बाकी समय  सोशल मीडिया है ना,वॉट्सएप फेसबुक इंस्टाग्राम ट्विटर स्काइप रही सही जो कसर थी वो आजकल टिक टोक पब जी ने पूरी कर दी,बच्चे बेचारों को होमवर्क करने की फुर्सत नहीं है,कहां जा रहे है हम? धीरे- धीरे सब कुछ भूलते जा रहे हैं,रिश्ते,नाते,संस्कृति, संस्कार, यहां तक कि अगर आपने महसूस किया है तो रिश्तों की मर्यादा भी ख़तम होती जा रही है,धीरे धीरे लोगों की शर्म खत्म हो चुकी है किसी को को क्या फॉरवर्ड कर रहे हैं इसका भी कोई ध्यान नहीं रखता, तो क्या ये बेहयाई अच्छी है,हां समय के साथ तालमेल बिठाने के लिए हमें भी बदलना है मगर ये बदलाव कितना अच्छा हैै

स्त्री एक शक्ति

स्त्री हूं👧

स्री हूं, पाबंदियों की बली चढ़ी हूं, मर्यादा में बंधी हूं, इसलिए चुप हूं, लाखों राज दिल में दबाए, और छुपाएं बैठी हूं, म...

नई सोच