शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

स्त्री हूं👧

स्री हूं,
पाबंदियों की बली चढ़ी हूं,
मर्यादा में बंधी हूं,
इसलिए चुप हूं,
लाखों राज दिल में दबाए,
और छुपाएं बैठी हूं,
मौन हूं मगर कायर नहीं,
मौन टूटने से विध्वंस न हो,
सिर्फ  इसलिए मौन हूं।
मुस्कुराती हूं,
खुश हूं,
ये दिखाती हूं
पलकों के आंसूओं को दबा कर
कई सारी बातों को,
नजरअंदाज कर बैठी हूं
सुन लेती हूं,सह लेती हूं,
तीखे शब्द।
पी लेती हूं कड़वाहट,
कभी अति में,
अन्याय के विरोध में,
अगर मुखर हो जाती हूं।
मेरी ऊंची हुई आवाज़ ही,
मेरे वजूद के ख़िलाफ़ हो जाती है
क्योंकि स्त्री हूं,
सौम्यता शालीनता,
हर परिस्थिति में मेरा गहना है
कितना भी अन्याय हो
मुझे चुप होकर सहना है।
जन्म से ही ये सिखाया
और पढ़ाया गया मुझे
मुझे मर्यादा नहीं तोड़नी है
मुझे सौम्यता नहीं छोड़नी है
क्योंकि मैं स्त्री हूं।
क्या इतना मर्यादित होकर
मै ठीक करती हूं?
नहीं नहीं हर बार नहीं,
हर बार चुप नहीं रह पाऊंगी
अन्याय के विरोध में,
मै चंडी बन जाऊंगी।
त्यागनी पड़ेगी ऐसी सौम्यता
ऐसी मर्यादा,जो मौन होकर
तमाशा देखती है।
वो सौम्यता किस काम की
जो क्रूरता को हावी होने देगी?
त्याग दो ऐसी मर्यादा ऐसी सौम्यता
जो गलत को ग़लत ना कह सके
जो अन्याय को चुप होकर सहे।
स्त्री हूं मगर अब चुप नहीं हूं।
बोलना जानती हूं,
अन्याय के विरोध में
मुंह खोलना जानती हूं
सत्य और असत्य को,
तोलना जानती हूं।

गुरुवार, 22 अगस्त 2019

आँखिरी इम्तहान

ज़िन्दगी की भीड़ में,
दुश्वारियों में
तुम अकेले हो
बस तुम्हारा,
साहस ही
तुम्हारा संबल है
सब का
कोई ना कोई,
सहायक है,
सब का,
कोई ना कोई ,
सहारा है।
वो कुछ ना भी करें,
तो भी उठ जाएंगे।
मगर ए मासूम राही,
तुम्हें खुद के,
बल से उठना है।
तुम ही अपना,
सहारा हो
तुम्हे खुद की,
शक्ति को समेटना है।
सब बीज,
किसी ना किसी ने,
बोए हैं,
वो पेड़ बने या नहीं,
मगर तुम ही ऐसा बीज हो,
जो खुद के लिए हवा,
और खुद के लिए पानी है।
तुम अंकुरित हो गए,
विषम परिस्थिति में,
ये कोई संयोग तो नहीं?
वास्तविकता है।
आज तुम बलिष्ठ पेड़ हो।
थोड़े फ़ल लगने बाकी हैं।
सफ़र लगभग तय है,
मंजिल भी करीब है,
यकीन करो,
तुम्हारे सब्र का बस,
एक छोटा सा इम्तहान
ही अब बाकी है।
देखो लक्ष्य भी
अब पास ही है।

बुधवार, 21 अगस्त 2019

बचपन


बात थोड़ी अजीब है मगर सच है,हम कभी भी वर्तमान को अच्छी तरह से नहीं बिताते,हम हमेशा या भविष्य की चिंता में या अतीत की यादों में जीते हैं, इन दो कलों के बीच का हमारा बहुत महत्वपूर्ण समय वर्तमान गुम हो जाता है,ये समय आज जिसके बीत जाने का हमें इंतजार है कल यही अतीत की याद बनकर हमें अच्छा लगने लगेगा,फिर हमें चाहत होगी कि वो समय लौट के आ जाए,फिर उस पल को हम जी लें और यही वर्तमान तो हमारा भविष्य था,जिसमें जाने की हमे चाह थी,ये हम अक्सर भूल जाते हैं,फिर वही इच्छा अतीत में वापस जाने की या भविष्य में पहुंच जाने की,ऐसा ही कुछ होता है वो बचपन जिसमें हम अक्सर ये सोचा करते थे कि हम कब बड़े होंगे और छोटी उम्र में  जब ये पता चला कि अठारह में बालिग होते है,तब से कितने लंबे समय अठारह साल होने का इंतजार किया,वो जो जल्दी से बड़े होने की चाहत थी उसमें बचपन के वो दिन बड़े लंबे लगते थे,देखो क्या हुआ बड़े हो ही गए हम छोड़ आए उस बचपन को अतीत में,बस अब चाह रखते हैं कि लौट जाएं उस बचपन में,ये मूर्खता नहीं है तो और क्या है?चलो बचपन में हमें इतनी समझ ही कहा थी की हम सोचते कि वो समय अनमोल है,बड़े होने पर जब समय है हम उसको भरपूर जी नहीं पाते,बीत जाए तो फिर उसकी यादों में खो जाते हैं, हां बात अगर बचपन कि हो तो बचपन सब का ही बड़ा प्यारा और मासूम होता है,चाहे तब हमें उसकी कीमत पता ना हो,मगर आज समझें तो वो सबसे कीमती समय बीत गया,मेरा बचपन तो बहुत खट्टी मीठी यादों का ख़ज़ाना है, सामान्य बच्चों की तरह मेरा मन भी कभी पढ़ने में नहीं लगा,बाकी सारे काम मुझे प्रिय थे, कॉमिक्स पढ़ना,फिल्म देखना,दिन भर घूमना, धमाचौकड़ी मचाना ये हमारे बचपन के शौक थे,किताब पढ़ते समय सबसे छुपा के किताब के अंदर भी कॉमिक्स छुपा के पढ़ना और सब लोगों को ये लगना की बहुत पढ़ाई हो रही है, उन दिनों कहानी पढ़ना और सुनना बहुत ही रोमांचक था,दूरदर्शन में हर रविवार को हिंदी फिल्म आती थी,मै कभी भी कोई फिल्म देखना नहीं छोड़ सकती थी,पर दुर्भाग्य से कभी उस समय बिजली गुल हो जाया करती थी तो मै बहुत ही दुखी हो जाती थी,हाथ जोड़ कर भगवान से सभी बच्चे प्रार्थना करते पूरी श्रद्धा के साथ"हे प्रभु,बिजली देदो" कभी कभी आ भी जाती थी,मगर जिस दिन बिजली नहीं आती तो मै पूरे विश्वास के साथ मुंह ढक कर सो जाया करती थी, कि सपने में फिल्म देख लूंगी और ये बात बिल्कुल भी झूठ नहीं है कि मै सपने में फिल्म देख भी लेती थी,ये फिल्म देखने का जुनून ही तो था और मन में भरोसा था कि सपने में फिल्म देखना संभव था,एक और प्रिय शौक में था कैरम खेलना मै अक्सर अपने भाइयों से हार जाती थी,और जैसे ही खेल अन्तिम पड़ाव तक पहुंचता मै हारने वाली होती थी उससे पहले ही मै सारी गोटिया मिला कर खेल ख़तम कर देती,अपनी हार मुझे बर्दाश्त नहीं थी,वहीं कहानी सुनने का शौक,अक्सर बड़ी बुआ हमारे पास आती थी कुछ दिनों रहने को,सच में वो बचपन ही तो था जब मेहमानों के आने पर बहुत खुशी होती थी और हम चाहते थे कि वो लंबे समय हमारे साथ रहें,बस बड़े होते ही हमें वो सारी आदतें बुरी लगने लगती हैं जो बचपन में पसंद थी,हम बुआ के साथ ही ज़िद करके सोते थे हर रात सोने से पहले बुआ से हम कहानी सुनते थे,मुझे अच्छे से याद है,वो बातें जिन पर आज यकीन करना थोड़ा मुश्किल है,वो मनगढ़ंत बातें थीं या उनमें कोई सच्चाई थी ये बुआ को ही पता होगा,मगर सच ये है,छोटे थे तब सौ फ़ीसदी उन बातों पे भरोसा करते थे,तब भूत प्रेतों की बातें बहुत प्रचलित थी,मैंने वास्तविकता में तो कभी भूत देखा नहीं,मगर किसी ने बताया तो मैंने पूरा विश्वास किया,भूत प्रेत के किस्से कहानियां सुनने का मुझे बड़ा शौक था,पर सुनकर डर भी बहुत लगता था और ये भूत प्रेत का डर दिमाग में ऐसा बैठ गया कि आज तक मुझे अंधेरे में सोने की हिम्मत नहीं पड़ती,बचपन तो निकल गया मगर डर नहीं निकला,एक दिन बुआ ने बताया "मेरे ससुर जी की अंतिम घड़ी थी,उसी दिन रात वो कुछ ज्यादा बीमार थे हमें समझ आ गया था आज इनकी आखिरी रात है,उसी रात की बात है,हम लोग अपने कमरे में लेटे हुए थे, नीद आंखो से कोसो दूर थी,देर रात लगभग बारह एक बजे का समय था,रात को हमें ढोल नगाड़ों की आवाज़ सुनाई देने लगी और सैकड़ों पद चाप हमारे घर की ओर आते हुए से लगे, कदमों की आहट हमारे बड़ी करीब आ चुकी थी,मैंने चुपके से फूफा जी से कहा,ससुर जी को लेने यम दूत आ चुके है,तभी मुझे महसूस हुआ कदमों की आहट हमारे नज़दीक आ रही है,इससे पहले कि कुछ सूझता की मुझे अपनी टांगो में मजबूत हाथों की पकड़ महसूस हुए और उसने खींच कर हमको बिस्तर से नीचे गिरा दिया,मै ज़ोर से चिल्लाई ओ मां,हमको खींच दिया,तभी अंधेरे में एक भारी आवाज़ गूंजी," ओह सॉरी कहां जाना था कहां आ गए" उसके बाद कमरे में सुनसानी छा गई हम अवाक से रह गए,जमीन से उठे डर के मारे हमारी घिघिया बंध गई,उसी सुबह चार बजे पता चला कि ससुर जी के प्राण जा चुके है और रात की घटना बिल्कुल सही थी। ऐसे ही बुआ ने हमें सैकड़ों घटनाएं सुनाई मगर ये घटना मेरे दिमाग में घर कर गई,मुझे पक्का विश्वास था बूढ़े लोगों की आत्मा को यमदूत लेने आते है उनकी मृत्यु के समय,ये घटना बड़ी दिलचस्प और रोमांचक थी,मगर भूत प्रेत की बाते सुनना जितना रोमांचक होता था,अकेले में उतना ही डरावना,इसी वजह से मै अंधेरे में अकेले नहीं रह पाती थी,थोड़ी देर के लिए अगर बिजली गुल हो जाए तो,सारी घटनाएं आंखों के सामने घूमने लगती,बहुत बार तो मुझे खुली आंखो में भूत दिखने लगते,ये अजीब बात है कि मुझे आज भी अंधेरे से डर लगता है, हालांकि भूत प्रेत के अस्तित्व से मै इत्तेफाक नहीं रखती फिर भी,बुआ तो कुछ दिन रह कर चली गई,मगर वो कहानियां अक्सर दिमाग में घूमती वो भी रात के वक़्त,तब मै अपनी अम्मा (दादी ) के साथ एक कमरे में सोया करती थी दोनों  के बिस्तर अलग थे,अम्मा तो लेटते ही खरराटे मारने लगती,मै सारी रात तारे गिनती, डर से नींद आती नहीं थी,कभी कोई परछाई कभी कोई आकृति ही नज़र आती थी पूरा बचपन रात की नींद को तरस गया और एक सबसे बड़ा डर जो था वो ये कि अम्मा को लेने यमदूत आएंगे और मेरी टांग खींचेंगे इस डर ने मुझे कभी सोने नहीं दिया और सच ये है कि अम्मा का स्वर्ग वास अभी हाल ही में हुआ और मै बीस साल पहले ये सोचती थी,इससे अजीब और क्या हो सकता है।
बस बचपन के दिन डर में गुज़र गए। आज भी मै अंधेरे में सो नहीं सकती जबकि भूतो के साथ मेरा कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है,जितनी भी घटनाओं पे मुझे भरोसा है वो सब सुनी सुनाई है,जिनकी कल्पना मैंने गहराई में जाकर की है।

शनिवार, 17 अगस्त 2019

रक्षा बंधन🎊♥


रक्षा बंधन सभी त्यौहारों में मेरा सबसे प्रिय त्यौहार है क्योंकि इस त्यौहार में ना होली की जैसी हुड़दंग है,ना दीवाली जैसे धमाके है, रक्षा बंधन पवित्रता और प्रेम का प्रतीक है, भावनाओं से जुड़ा हुआ है,ये ही केवल ऐसा त्यौहार है जिसको मनाने का उत्साह मुझमें बचपन से है।
ये बात तब की है जब मै अपने चाचा ताऊ के साथ रहकर अपने ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही थी। साल में सिर्फ दो बार ही मुझे घर जाने का अवसर मिलता था, शीतकालीन अवकाश और ग्रीस्म कालीन अवकाश,तब भी मै अपने भाइयों और पिता  से नहीं मिल पाती थी, मै मां के साथ छुट्टियां बिताती थी फिर वापस चली आती थी,जबकि मेरे दोनों भाई मेरे पिता के साथ दूसरे शहर में रहकर पढ़ाई करते थे,किसी ना किसी वजह से वे दोनों मेरे अवकाश के दौरान,घर नहीं आ पाते थे, मन तो बहुत होता था, कि वे दोनों भी यहां होते तो हम साथ बैठकर खाना खाते,बात करते,बहुत इच्छा थी मेरी,मगर ऐसा कभी नहीं हो पाया, सामान्य भाई बहिनों की तरह हम भी लड़ाई झगड़े  लिए मशहूर थे,जब भी साथ होते थे हमारे बीच मतभेद ज्यादा रहते थे,फिर भी ऐसा नहीं था कि हमारे बीच प्यार ना हो भावनाएं ना हो बस ये कहा जा सकता है बचपन से जिस माहौल में हम पले बड़े,जैसी हमारी परवरिश रही उसमें हमें जताना नहीं सिखाया गया,हमारे मन में जो भी था बस मन में ही था, ना ज़ाहिर हुआ,ना ही किया गया। बस ये मन में रखने की जो आदत रही यही रिश्तों में दूरियां बढ़ाती हैं,हम समझ भी नहीं पाते कि सामने वाले की हमारे लिए क्या भावनाएं हैं,प्यार बांटने और जताने की वस्तु है ना कि छुपाने की। चलो जो भी है मुझे ये समझ नहीं आता वो कौन सा माहौल रहता है जिसकी वजह से हम अपने लोगो पर गुस्सा, नफ़रत सब उड़ेल देते हैं,जब जी में आया उन्हें फटकार देते हैं दुत्कार देते है अपमानित भी कर देते हैं,जिस मन से इतने सारे भाव निकल कर सामने आ रहे हैं,उसी मन में उन लोगो के प्रति हमारा प्रेम भी दुबका पड़ा है और वो किसी भी हाल में नहीं बरस पाता,अगर प्रेम निकल कर बरस जाए तो फिर शेष भावों का काम ही क्या,मगर हमसे ये नहीं हो पाता,शायद प्रेम को जताने में,अपनो को प्यार से गले लगाने में,या उनके सिर पर प्यार से हाथ फेरने में हमें शर्म महसूस होती है,मगर क्रोध नफ़रत दिखाने में किसी को दुत्कारने में हमें शर्म महसूस नहीं होती,बस यही विडंबना है, माफ़
कीजियेगा मै अपने विषय से भटक गई,बात रक्षा बंधन की हो रही है,तो रक्षा बंधन हमेशा से अगस्त के महीने में ही पड़ता है,जुलाई से ही विद्यालय कॉलेज खुलते हैं नया सत्र शुरू होता है और नई कक्षा नया पाठ्यक्रम  सब कुछ नया,फिर से नया उत्साह,उसी बीच पड़ता है रक्षा बंधन,बस एक दिन की छुट्टी,सच बताऊं बड़ा मन होता था कि मै अपने भाइयों को राखी बांधने जाऊं,बस कोई इजाजत दे देता तो मै चली ही जाती बस एक घंटे का ही सफ़र था बस से,एक दो बार हिम्मत करके अपने चाचा को बोला भी तो उन्होंने साफ मना कर दिया, "क्या होता है रक्षा बंधन? ये तो हर साल आता है,आने जाने में समय बरबाद वो अलग,कोई ज़रुरत नहीं हैं जाने की" अपनी जगह वो भी सही थे,वो मेरी भावनाएं क्या समझते,कितने प्यार से कितनी प्यारी राखियां ली,पर उनको अपने हाथ से अपने भाइयों के हाथ में नहीं बांध सकी,ऐसे ही हर साल रक्षा बंधन निकल जाता और मै आंखो में आंसू दबा कर मन मसोस कर रह जाती,मगर उन आंसुओं को देखता कौन और उस भावना को समझता कौन? अगली बार  फिर रक्षा बंधन आया,इस बार बाई पोस्ट राखी नहीं भेज पाई थी, ताऊ जी का हरिनगर जाने का कार्यक्रम बना,उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि वो मेरी राखी मेरे भाइयों तक पहुंचा देंगे,मैंने राखी लिफाफे में अच्छे से बंद करके उनको थमा दी और मै बहुत खुश थी कि मेरी राखी मेरे भाईयो को आज रक्षा बंधन के दिन मिल जाएगी,वो कैसी खुशी थी कि जो शब्दों में बयां नहीं होती,वो कैसे भाव थे,जो कहे नहीं जा सकते, पूरा दिन अच्छा बीत गया मेरी राखी जो चली गई थी मेरे भाइयों के पास, रात बड़ी देर से ताऊ जी वापस आये और साथ में संदेश की जगह पर मेरा राखी का लिफ़ाफा वापस लाए और बोले हम दिन भर बहुत व्यस्त रहे,मौका नहीं मिला राखी पहुंचाने का,यह कहकर वो चले गए और मैं लिफ़ाफा पकड़े भौचक्की सी खड़ी रह गई,थोड़ी देर तक मै भाव शून्य रही,जैसे ही सामान्य हुई तो मेरे भाव उमड़ घुमड़ कर मेरी आंखो से बहने लगे,जिन्हें ना किसी ने देखा ना महसूस किया ना समझा,कितना आसान था राखी वापस ले आना और दो शब्दो में अपनी मजबूरी जता देना,वो ताऊजी थे,मेरा क्या हौसला या मेरी क्या मजाल कि मै उनसे कुछ भी बोल पाती या अपने जज्बात कह पाती या दहाड़ मार कर रो जाती,मेरी कोई हिम्मत नहीं थी कि उनको कुछ बोलूं, बस इतना ही बोलूंगी एक बहन के लिए राखी और ये त्यौहार अनमोल है,ज्यादा नहीं बस उसकी भावनाओ को समझें,उस भावना का सम्मान करें राखी सिर्फ धागा नहीं होता,उसमें बहन की भावनाएं,अरमान और प्यार छुपा है।किसी भी परिस्थिति में उस भावना को नजंदाज ना करें,समय मिले और संभव हो सके तो रक्षा बंधन पर अपने बहन के हाथों राखी ज़रूर बंधवाए,क्योंकि गिले शिकवे सब एक तरफ़ और रक्षा बंधन एक तरफ़।

बुधवार, 14 अगस्त 2019

Beyond the measurement,📃

Why it is so true?
Some times,
when I feel
There is nothing in my mind,
to think over.
But it's not,
you are always there,
You are always there.
I tried possibly to change,
every aspect of my life. 
I thought,these changes,
will bring about the change,
in my mind set,in my feelings.
But it's never,it's never,
I saw everything,
has been eliminated.
From my heart,
from my soul,
from my thoughts.
But you are remained,
as always, as always.
Which path, I have been selected,
which journey,I have been started.
You are nowhere in my path,
you are no where in my journey.
But you are still there in my heart,
You are still there in my soul,
You are still there in my mind.
With growing age & growing days.
People grows,adjust themselves,
in a new niche.
But my niche is the same,
where I found your fragrance,
in my breathe & in my thoughts.
I have no word for my feelings,
and I am sure there is no word,
in the world,which can express,
the intensity of this feeling.
But it's true,it's true that,
it's intense,it's immense.
How much?
Nobody can say,
Because, of course
it's always beyond,
the measurement.

सोमवार, 5 अगस्त 2019

नकाब👽

हमने भी ख़्वाब देखें हैं,
सपने बेहिसाब देखे हैं।
चेहरों  पर नक़ाब देखे है,
किस पर यकीं करें दोस्तो
जब अपने ही ख़राब देखे है।
बदलते मंजरों का डर है,
ना जाने रास्ता किधर है?
डोलती कश्तियों का सफ़र है,
सांसे तो चलती ही हैं दोस्तो,
मगर ज़िन्दगी की कहां खबर है।
कितनी परतों को हटाएं,
किस रूप को किस से छुड़ाएं?
बताओ तो हमें हम कहां जाएं?
उंगली थाम चल रहे हैं जो,
वजूद को उनसे कैसे बचाएं?
बातें लाज़वाब करते हैं,
शब्दों  में मक्खन का स्वाद रखते हैं
खता क्या है,हमारी जो फिसल पड़े
क्योंकि सामने से कभी नहीं दोस्तो
लोग पीठ पर वार करते हैं।

स्त्री एक शक्ति

स्त्री हूं👧

स्री हूं, पाबंदियों की बली चढ़ी हूं, मर्यादा में बंधी हूं, इसलिए चुप हूं, लाखों राज दिल में दबाए, और छुपाएं बैठी हूं, म...

नई सोच