शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

तुम ओस की बूंदों की तरह।

तुम ओस की बूदों की तरह 
आए तो सही!
मेरी ठंडी सी सुबह में 
झिलमिलाए तो सही।
कुछ आस सी टूट गई थी मेरी,
तुम छोटी सी उम्मीद बनकर 
मुस्कुराए तो सही।
तुम ओस की बूंदों की,
तरह आए तो सही।
मेरी ठंडी सी सुबह में
 झिलमिलाए तो सही।
कुछ अजीब सा है 
यादों का कारवां
बड़ता है आगे,
मगर देखता है पीछे!
तुम उन यादों के कारवां में
मेरे कदमों से कदम 
मि लाएं तो सही!
तुम ओस की बूंदों की,
 तरह आए तो सही।
कुछ मनचाहा था 
और कुछ अनचाहा था 
सफ़र मेरा।
तुम उन अनचाही बातों में 
कुछ चाही सी मुलाकाते
 लाए तो सही।
तुम ओस की बूंदों की,
तरह आए तो सही।
इस रंगीन दुनियां के,
रंगीन नज़ारों में
 बदलते हालातों में
तुम वही पुराने हालत 
लाए तो सही।
तुम ओस की बूदों की तरह
आए तो सही।
जब हवा भी दम घोटने लगी थी
जब सांस भी सांस नहीं रही थी
उस पल में तुम,
वही जानी पहचानी
खुशबू से छाए तो सही।
तुम ओस की बूंदों की,
 तरह आए तो सही।

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