ना तुम अजर हो,
ना मैं अमर,
अनिश्चित है, जीवन,
और जीवन की घटनाएं।
मगर निश्चित है मृत्यु,
हम सभी की।
मगर उसका भी,समय है अनिश्चित।
ना जाने कब,कहां,किस पल,
आंखिरी सांस हो किसी की।
मगर लड़ते-झगडते हम ऐसे हैं,
जैसे आए हो,यहां अनंत काल को
जैसे हमेशा ही उपलब्ध रहेंगे,
एक दूसरे के लिए,
लड़ने झगड़ने को।
ये लड़ाई-झगड़े तो उसी दिन,
ख़तम हो जाएंगे, जिस दिन
एक भी हममें से,
निकल जाएगा,इस दुनियां से।
उस दिन दफ़न हो जाएंगे,
सारे गिले,सारे शिकवे,
सारी उम्मीदें
सारी हिदायतें।
फिर कहां खोजेंगे उसे?
फिर लड़ने को,गुस्सा दिखाने को।
वो राख़ हो चुका होगा जब,
फिर कभी आवाज़ नहीं दे पाएं,
कभी ना साथ बैठ पाएं।
तब बुराइयां कम,
अच्छाइयां,ज्यादा याद आएंगी,
जो जीते जी,कभी नहीं दी दिखाई।
अजीब बात है ना,
जब तक ज़िन्दा थे,तुम्हें
बुराइयां के सिवा,
कुछ दिखा नहीं।
आज राख हो गए तो,
अच्छाइयां नज़र आईं?
क्या सारी लड़ाई,
इस अस्तित्व से थी?
क्या सारी शिकायत,
इस उपस्थिती से थी?
पता है तुम्हें आज,
पलटवार ना होगा,
क्या यही वजह है,
अब,मेरे अच्छा होने की?
छू सकूँ किसी के दिल को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। अहसास कर सकूं हर किसी के दर्द को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। जीते जी किसी के काम आ सकूँ तो क्या बात है। kavita in hindi, hindi kavita on life, hindi poems, kavita hindi mein on maa
शुक्रवार, 12 जुलाई 2019
निश्चित अनिश्चित
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
स्त्री एक शक्ति
स्त्री हूं👧
स्री हूं, पाबंदियों की बली चढ़ी हूं, मर्यादा में बंधी हूं, इसलिए चुप हूं, लाखों राज दिल में दबाए, और छुपाएं बैठी हूं, म...

नई सोच
-
क्यों मन तुम्हारा भटक गया है? उस अदृश्य और कल्पित के चारों ओर, सिर्फ भ्रमित ही जो करता हो, उद्गम भी नहीं जिसका, नहीं कोई छोर। क्या...
-
गली में उछलते कूदते बच्चे से न जाने कब मैं बड़ा हो गया। आज आईने में खुद को देखा तो पता लगा मैं बूढ़ा हो गया। मुझे तो सिर्फ और सिर्फ वो बचपन य...
-
स्री हूं, पाबंदियों की बली चढ़ी हूं, मर्यादा में बंधी हूं, इसलिए चुप हूं, लाखों राज दिल में दबाए, और छुपाएं बैठी हूं, म...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें