सोमवार, 25 अगस्त 2025

सुख तेरा पुरस्कार है दुःख तेरी परीक्षा

सुख तेरा पुरस्कार है 
दुःख तेरी परीक्षा 
पुरस्कार को खुशी खुशी लेता है
फ़िर परीक्षा से क्यों घबराता है
न ही सुख तेरा नित्य था
न ही दुख तेरा निरंतर है
ये तो जीवन चक्र है 
जिससे होकर तुझे गुजरना है 
विकल्प नहीं तेरे पास
कि तू एक को भी छोड़ दे
सांसारिक बंधनों में पड़ कर 
संसार से ही मुंह मोड़ दे।
न सुख में इतना फ़ूल जा
कि दुःख को ही तू भूल जा
न दुःख में ऐसे टूट जा
कि ज़िंदगी से ही रुठ जा 


इस प्रेरणादायक कविता के माध्यम से जानिए कि सुख और दुःख जीवन के अनिवार्य हिस्से हैं। कैसे हम इन दोनों को समझें और जीवन को संतुलित दृष्टिकोण से देखें। यह कविता हमें याद दिलाती है कि हर परिस्थिति के भीतर एक सीख छिपी होती है। 



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मांस भक्षी को अपना स्वाद चाहिए

मांस भक्षी को 
अपना स्वाद चाहिए 
और कसाई को अपना फ़ायदा ।  
जाली में कैद वो पशु पक्षी 
जो पल पल छुरे को देख कर ,
अपनी मृत्यु की कल्पना से
 जिस दर्द और दहशत से 
गुजर रहे है ,
 छुरे के नीचे गर्दन आने से पहले, 
वो,
 नज़ाने कितनी बार मर रहे है।
 ये अंदाजा भला..
 मांस भक्षी और कसाई 
कैसे लगा सकता है?
 भला उसको क्या फ़र्क पड़ता है
 उस दर्द से..उस दहशत से..मनु...

The Caged Ones

The meat eater craves,
the butcher gains,
But who will measure
the silent pains?

Behind the bars,
with fearful eyes,
Birds and beasts
await demise.

They watch the knife,
its gleaming breath,
They die each moment,
before their death.

The terror burns,
their spirits cry,
Yet none can hear
the pleading sigh.

The butcher smiles,
the eater feasts,
But who will feel
the pain of beasts?


बहुत कुछ बदल गया

बहुत कुछ बदल गया
इन चौदह सालों में
मगर जो नहीं बदला 
वो है मेरा दिल 
मेरे अहसास 
साल दर साल
अंकुरित हुई
पल्लवित हुई 
मेरी भावनाएं 
बड़ी मजबूत 
बड़ी सशक्त 
गहराई में
मेरे रोम रोम में
धंसी हुई ये जड़े 
जो मेरे पूरे जीवन तंत्र 
को बांध कर रखती हैं 


किशोरावस्था में पहुंच गया
नवी कक्षा का छात्र 
बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुटा है
बात बड़ी गहरी है समझ सको 
तो बताना
जीवन की इस पहली
और कठिन परीक्षा में
बैठने से वो डरता है।
इसलिए अभी से तैयारी
में जुटा है 
कहीं फ़ैल न हो जाए 
कहीं पीछे न रह जाए
कही कृपांक के सहारे
ही इस कक्षा को पार न कर जाए।
वो नहीं चाहता पीछे रहना
वो नहीं चाहता कृपांक 
उसकी सफलता उसकी 
मेहनत और लगन का
प्रतिफल हो
उसके दृढ़ संकल्प का
परिणाम हो

बलवस्था 
आकर्षण 
सम्मोहन 
खुशी 
नाराजगी 
रूठना 
मानना 
रोना
किशोर
परीक्षा 





मत पूछो हाल मेरा

मत पूछो हाल मेरा
मेरी हर रग दुखती है।
किसे है ख्याल मेरा
ज़िंदगी मुझसे कहती है।
कुछ खास नही होता
उम्र यूँही खिसकती है।
मत पूछो हाल मेरा
मेरी हर रग दुखती है
मैं बेफिक्र नहीं
मैं मस्तमौला नहीं
लापरवाही का कभी
मैने पहना चोला नहीं
बीते और बीतते हर पल की
मुझे फ़िक्र रहती है।
मत पूछो हाल मेरा
मेरी हर रग दुखती है।
सुबह से शाम
शाम से सुबह
कुछ जटिल बातें
कुछ अंतहीन मतभेद
खुद को सही साबित करने की
हर दिन जद्दोजहद रहती है।
मत पूछो हाल मेरा
मेरी हर रग दुखती है।

क्यों करूं

कुछ भी बात करूं तो
मन सोचता है क्यों करूं
क्यों कहूं 
क्यों बताऊं 
भावनाओं का सब 
ताना बना 
शब्दों से जो बुना गया
 शब्दों का वो 
अनवरत परवाह 
जिन्होंने कभी 
कोई सीमा नहीं मानी
जिन्होंने कोई
मर्यादा नहीं जानी
उनके रास्ते में आज
एक अवरोध सा है 
वो शब्द अब संकुचा 
रहे हैं।
तुमसे खुलने से
जाने क्यों अब
कतरा रहे हैं।





कोशिश तो बहुत की मैंने

कोशिश तो बहुत की मैंने 
कि मैं रुक जाऊ ..
कोशिश तो बहुत की मैंने 
कि मैं रुक जाऊ ..

और लगा दी तमाम उम्र 
इस कोशिश में ही ।...
और लगा दी तमाम उम्र 
इस कोशिश में ही..  
कोशिश तो बहुत की मैंने 
कि मैं रुक जाऊ ..
लेकिन नाकाम रही हर बार
मेरे रुकने की वो कोशिश 
क्योंकि ...
जहां मंजिल थी ही नहीं 
तो वहां पड़ाव कैसा??..

 रास्ते पर रुकने वाले 
मुसाफिरों को..
रुक कर चलना ही पड़ता है 
रास्ते पर रुकने वाले 
मुसाफिरों को
रुक कर चलना ही पड़ता है ..
अगर 
रुकने का मन ही बना लो
 रास्तों पर
तो आने जाने वाले कदमों 
की 
ठोकरों को भी सहना पड़ता है ...
अगर 
रुकने का मन ही बना लो
 रास्तों पर
तो आने जाने वाले कदमों 
की 
ठोकरों को भी सहना पड़ता है ...


बिन आशियाने का मुसाफ़िर 
ता उम्र रास्तों पर चलता है ...
इस उम्मीद में कि कभी ये रास्ते 
आशियाने से जा मिलेंगे 


बिन आशियाने का मुसाफ़िर 
ता उम्र रास्तों पर चलता है 
बस एक उम्मीद में कि
कभी ये रास्ते आशियाने से
जा मिलेंगे।






दुल्हन

दुल्हन गहनों से लदी थी,
सुर्ख़ जोड़े में सजी थी।
पैरों में पायल बजाती थी,
हाथों की चूड़ी खनकती थी।

इत्र की खुशबू से
पूरी महफ़िल महकती थी।
किसी को उसके गजरे की फ़िक्र थी,
तो किसी को उसके श्रृंगार की परवाह।

कोई नज़र उसके चेहरे पे आ टिकती थी,
कोई नज़र उसकी सजावट से बहकती थी।
कोई गहनों का हाल पूछता था,
कोई मनमोहक रूप पे मचलता था।

मगर हर कोई ये भूल गया था —
उसके पहलू में एक दिल भी था।
और आँखें आँसुओं से भरी थीं,
तमाम आभूषणों से सजी हुई दुल्हन
अंदर से मुरझाई थी।

लोगों को इतना ही समझ आता था —
विदाई की घड़ी नज़दीक है,
आँखें डबडबा जाने की
बस इतनी ही वजह थी...

मगर सच तो केवल इतना था —
परिवार का मान-सम्मान,
माता-पिता की इज़्ज़त, सबकी लाज रखते हुए,
अपने मन के बिलकुल विपरीत,
संसार के दस्तूर और रश्मों को निभाती थी...

रविवार, 24 अगस्त 2025

दुनियां की सबसे दुर्लभ वस्तु है ।

दुनियां  की सबसे दुर्लभ वस्तु है ।
पवित्र निश्छल निस्वार्थ "प्रेम"
और इस दुर्लभता में भी अगर
 आपको मिल जाए
पवित्र निश्छल निस्वार्थ 
"प्रेम"
तो आपके भाग्य की सराहना 
शब्दों में नहीं की जा सकती।
ये दुर्लभ प्रेम पवित्र निश्छल निस्वार्थ 
केवल शब्द नहीं हैं 
दुनियां की सबसे दुर्लभ वस्तु है
पवित्र निश्छल निस्वार्थ "प्रेम"
कोई मनुष्य ही.. आपको दे सकता है 
अगर आपको भी ऐसा ... लगता है...
यकीनन ..ये आपका सबसे बड़ाभ्रम है
 ...भ्रम नहीं अगर...तो सोचिए..
क्या आपमें क्षमता है ?
किसी के मन के अथाह समंदर की 
थाह पाने की या
क्या आपमें कुशलता है?
किसी के मन की अनंत गहराई में
गोते लगाने की 

भूल जाओ उन्होंने शब्दों में क्या कहा

भूल जाओ उन्होंने 
शब्दों में क्या कहा
ये शब्द केवल 
शब्द ही होते हैं 
जब तक उन्हें कोई 
हकीक़त का नाम न दे
तब तक ये शब्द 
शब्द ही रहते हैं 

शब्दों में लोग नजाने
क्या क्या कहते है 
कभी कभी ये शब्द
बिना अर्थ के भी होते है।
शब्दों में जो सेतु बना 
देते है हवाओं में
हकीक़त में वो
धरती पर रहते ही 
नहीं है 
उनके शब्दों में कोई
क्षमता होती तो
वो आसमा का नहीं
धरती का रुख करती
  जिन शब्दों को हवा में 
तैरते देखते हो
जिन्हें छू पाने में खुद को
अक्षम कहते हो।
फिर कैसे भरोसे कर लेते हो
उन शब्दों का 
जो केवल मायाजाल है
हकीक़त से जिनका न वास्ता था
न वास्ता होता है 

रविवार, 20 जुलाई 2025

प्रेयसी हिन्दी कहानी


"तेरह साल और एक कॉल" — रोहिणी की कहानी

लगभग आधी रात गुज़र चुकी थी।
नींद आज रोहिणी की आँखों से कोसों दूर थी।

टूटे हुए मन की गहराई को सिर्फ वही जानता है जो कभी सिसकियों से सोया हो।
रात की स्याही जैसे-जैसे गहराती है, वैसे-वैसे सोचों की कालिमा और भी तेज़ हो जाती है।
दिन में जो बातें सामान्य लगती हैं, वही रात में बवंडर बन जाती हैं।
और जब दिल टूटा हो… तब तो हर साया भी डराने लगता है।

तेरह साल का साथ…
तेरह साल की हँसी, आँसू, उम्मीदें और कसमें…
वो रिश्ता इतना गाढ़ा लगने लगा था,
जैसे अब मौत ही उसे जुदा कर सकती थी।

लेकिन आज दोपहर की वो पच्चीस मिनट की कॉल…
जिसने रोहिणी की दुनिया को झकझोर दिया।



📞 रोहन की आवाज़ — गूंजती रही मन में...

 "घरवालों का मुझ पर शादी का दबाव बढ़ता जा रहा है।
अब तक तो रोकता आया था,
मगर अब रोकने की वजह भी नहीं रही…"


रोहिणी — (भीतर से कांपती हुई)
"मतलब...?
तेरह साल... बस एक वजह थे तुम्हारे पास?"



📞
"वक़्त के साथ बहुत कुछ बदलता है रोहिणी।
सालों की कीमत अपनी जगह है, लेकिन…"



"लेकिन...?
ये कह दो ना कि अब इस रिश्ते को निभाना मुमकिन नहीं।"



📞 "उफ्फ, यही वजह है कि मैं तुमसे बातें नहीं करता।
पिछले दो सालों से घरवालों के सवालों से जूझ रहा हूँ…"



"तो कर लो शादी…
मुझे मत रोको।
मैं कोई बाधा नहीं… आज से मुक्त हो तुम मेरी तरफ़ से।"



📞 "नहीं रोहिणी…
मैं मुक्त नहीं होना चाहता।
मैं तुम्हें छोड़ने की सोच भी नहीं सकता…"



"तो फिर चाहते क्या हो रोहन?
एक म्यान में दो तलवार?
आज तक मैंने ये सोचा भी नहीं था कि तुम इस तरह सोच सकते हो…"



📞 "मैं परिस्थिति के अनुसार सोच रहा हूँ…
एक तरफ मेरा पूरा खानदान… और दूसरी तरफ़ तुम…"



"अरे, ये साफ़ कहो ना कि तुम मेरा चुनाव नहीं कर सकते।
तुम्हारे लिए तुम्हारा खानदान ज़्यादा अहमियत रखता है।"



📞 "रोहिणी... समझ नहीं आता तुम्हें कैसे समझाऊं…"



"मत समझाओ,
अगर यही बात तेरह साल पहले समझा देते…
तो शायद मैं तुम्हारी इस 'मेहरबानी' से बच जाती।"



📞 "हम जुड़े रहेंगे… ज़िंदगी भर…
तुम भी शादी कर लेना…
मैं सब ठीक कर दूंगा…"



"प्लीज़…
एक और शब्द मत बोलना।

अब तुमने सब ठीक कर ही दिया है।
काश मैं इतनी मूर्ख न होती…
काश…

I really hate myself…

गलती तुम्हारी नहीं है,
गलती मेरी है कि मैंने तुम पर यकीन किया।"


📞 "काश तुम थोड़ा समझदारी दिखाती…
तुम्हें नहीं दिखता कि मैं कितने प्रेशर में जी रहा हूँ?

कभी तो मेरे हालात समझो…

तुम्हारा प्यार... ये स्वार्थी प्यार…"



(आँखें भर आती हैं)

"हाँ रोहन…
स्वार्थी तो मैं ही हूँ…
दुनिया की हर लड़की अपने प्रेमी से खुशी-खुशी कहती होगी —
'जाओ, शादी कर लो… मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।'
है ना?

म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग वाली वो परीकथाएं…

काश मुझे भी आती…"



📞 "रोहिणी यार… थोड़ा प्रैक्टिकल बनो…
मैं इकलौता बेटा हूँ,
माँ-बाप की उम्मीदें…"



"तो इन भावनाओं की खेती पहले ही क्यों कर ली?

जब बोना नहीं था, तो बीज ही क्यों डाला?"




📞 "देखो, मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता।

हमारे बीच की असमानताएं…
जाति, धर्म…
क्या जवाब दूंगा मैं घरवालों को?"


"तो जिस दिन ये रिश्ता शुरू किया,
उस दिन जाति धर्म नहीं थे?

या तब सोचा था — चलो थोड़ा टाइम पास कर लेते हैं?"




📞 "ऐसी बात नहीं है…
शुरुआत में कौन जानता है कि रिश्ता कितना चलेगा…"



"तो ये रिश्ता...
तेरह साल का धोखा था?

या जरूरत पूरी होने तक की मोहब्बत?"




📞 "बस रोहिणी… अब और ताने मत मारो…
मुझे ये आदत तुम्हारी बिल्कुल पसंद नहीं…"



"तुम्हें मैं कब पसंद थी रोहन?
अगर होती…
तो आज ये दिन नहीं आता।

इतनी आसानी से तुम खुद की शादी तय कर लोगे…
और अपनी प्रेमिका को भी ‘किसी से भी शादी कर लो’ कह दोगे?

हाय भगवान…
मुझे इस पीड़ा को सहने की शक्ति दो…"

(रोहिणी बिलख पड़ती है…)




📞 "रो मत रोहिणी…
सब तुम्हारे हाथ में है…

तुम जितनी जल्दी इसे एक्सेप्ट करोगी,
उतना ही सब आसान होगा…

मैं शादी ज़रूर करूंगा,
लेकिन मैं हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा…
फर्क सिर्फ़ नाम का होगा।

निर्णय तुम्हारा है…"



(फोन कट गया)

अब न आवाज़ थी, न सफाई…
बस ख़ामोशी थी।




पिछले कई घंटों से रोहिणी बस सोच रही थी।
कभी खुद को दोष देती, कभी रोहन को।
कभी पुरानी बातें याद आतीं,
कभी उसकी वो कसमें, वो सपने…

तेरह साल के रिश्ते की इतनी सस्ती कीमत?



"काश मोहब्बत करने से पहले ये मालूम होता…
कि अंत में सिर्फ एक कॉल मिलेगी…
और उसके बाद — ख़ामोशी।"



उसने आवेश में रोहन का नंबर डिलीट कर दिया।

पर नंबर डिलीट करने से यादें थोड़ी मिटती हैं?



सुबह-शाम...
शाम-सुबह…

हर वक़्त उसका मन एक ही सवाल पूछता रहा:
"क्या मैं ही गलत थी?"



मोहब्बत एकतरफा नहीं चलती…
इसे सहारा चाहिए — दोनों तरफ़ से।




रोहन की कही एक बात
अब भी कानों में गूंज रही थी:

 "मेरा प्यार मेरी शादी के साथ ख़त्म नहीं होगा…"



लेकिन रोहिणी जानती थी —
शायद वही पल था, जब प्यार मर गया।


"जिस पौधे को तेरह साल सींचा…
वो एक दिन खुद ही अपनी जड़ें काट गया।"




स्त्री एक शक्ति

स्त्री हूं👧

स्री हूं, पाबंदियों की बली चढ़ी हूं, मर्यादा में बंधी हूं, इसलिए चुप हूं, लाखों राज दिल में दबाए, और छुपाएं बैठी हूं, म...

नई सोच