सोमवार, 25 अगस्त 2025

दुल्हन

दुल्हन गहनों से लदी थी,
सुर्ख़ जोड़े में सजी थी।
पैरों में पायल बजाती थी,
हाथों की चूड़ी खनकती थी।

इत्र की खुशबू से
पूरी महफ़िल महकती थी।
किसी को उसके गजरे की फ़िक्र थी,
तो किसी को उसके श्रृंगार की परवाह।

कोई नज़र उसके चेहरे पे आ टिकती थी,
कोई नज़र उसकी सजावट से बहकती थी।
कोई गहनों का हाल पूछता था,
कोई मनमोहक रूप पे मचलता था।

मगर हर कोई ये भूल गया था —
उसके पहलू में एक दिल भी था।
और आँखें आँसुओं से भरी थीं,
तमाम आभूषणों से सजी हुई दुल्हन
अंदर से मुरझाई थी।

लोगों को इतना ही समझ आता था —
विदाई की घड़ी नज़दीक है,
आँखें डबडबा जाने की
बस इतनी ही वजह थी...

मगर सच तो केवल इतना था —
परिवार का मान-सम्मान,
माता-पिता की इज़्ज़त, सबकी लाज रखते हुए,
अपने मन के बिलकुल विपरीत,
संसार के दस्तूर और रश्मों को निभाती थी...

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