What is the word "love"
What is its definition?
How deep is it.
I don't know
and I don't think
anyone can define it.
Yes, so be sure to know,
is not a condition to be love
love spontaneously
physical attraction
is beyond and beauty
loving religion race creed
and age free from the shackles of
the wayward.
retainers is,
outside the bounds of words
beyond the expression,
of latent anguish.
Love resides on simplicity,
it dwells on innocence
, settles in sincerity
, spills in mercy.
Slightly naughty
little innocent.
is much more emotional
And they are very intelligent.
one can see everything
but the strange thing is
that love is blind.
छू सकूँ किसी के दिल को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। अहसास कर सकूं हर किसी के दर्द को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। जीते जी किसी के काम आ सकूँ तो क्या बात है। kavita in hindi, hindi kavita on life, hindi poems, kavita hindi mein on maa
शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021
Love
मंगलवार, 27 अप्रैल 2021
#Life is just
Life is just ...
सोमवार, 26 अप्रैल 2021
You like dew Come right!
You like dew
Come right!
You like dew
Come right!
In my cold morning
Shimmering right.
Something was broken like mine,
You little hope
Smile right.
You dew drops,
Right, if it comes in the way.
In my cold morning
Shimmering right.
Something strange
Caravan of memories
Grows further,
But looks back!
You in the caravan of those memories
Step by my step
Get it right!
You dew drops,
Right, if it comes in the way.
Had something to do
Anything else was spam
My journey
You in those unsolicited things
Few wants to meet
If you bring it right
You dew drops,
Right, if it comes in the way.
Of this colorful world,
In colorful views
In changing circumstances
You same old condition
If you bring it right
You like dew
If you come, right.
When the wind was too suffocating
When I was not even breathing
In that moment, you
Same familiar
Corrected by the scent.
You dew drops,
Right, if it comes in the way.
गुरुवार, 22 अप्रैल 2021
श्री अंतिम भाग #Lovethriller hate story Shree
और हर हाल में मुझे मरना ही होगा मेरे पास दूसरा ऑप्शन नहीं है, क्योंकि उन तानो को झेल पाने की हिम्मत और नही मुझमें, वैसे भी अब उन्होंने मुझे स्कूल में मुँह दिखाने लायक तो छोड़ा नहीं, वापस जाकर मै कैसे किसी का सामना कर पाऊंगी।
क्या इतनी छोटी सी बात के लिए किसी को इस तरह बदनाम कर दिया जाता है? आज के परिप्रेक्ष्य में सोचें तो ये बात कुछ है ही नहीं, श्री एक ऐसे लड़के की वजह से बदनाम हो गई जिसे उसने दूर से देखा भर था,वो उसे कभी मिली तक नहीं, बस सिर्फ गुनाह ये था वो दया कर बैठी,बातों को गम्भीरता से ले बैठी। उसका ये अन्धा विश्वास ही उसकी इस हालत का कारण बना।
आज उस चंचल लड़की की चंचलता खतम हो चुकी है, आज वो उदासी की एक मूरत बन गई है। हर पल चहकने वाली श्री आज मुस्कुराना भी भूल चुकी है।
अभी उसका अहम उद्देश्य सिर्फ मरना है, बस उसी के लिए वो आसान सा रास्ता खोज रही है, घर के सभी लोग अपने अपने काम पर व्यस्त हैं, किसी का ध्यान श्री की ओर गया ही नहीं कि वो क्या कर रही है।
श्री ने किसी से सुना था कि एक्सपायरी डेट दवा खाने से मर जाते हैं, तो सबसे पहले उसने यही तरीका आज़माने का सोचा, वो अपने घर के पास ही के एक क्लीनिक में गई, वहां कंपाउंडर से पूछा,"क्या एक्सपाइरी डेट दवाएं मिल जाएंगी" कम्पाउंडर थोड़ा चौक कर बोला," एक्सपाइरी डेट? उसकी क्या ज़रूरत है?
श्री ने बड़ी सहजता से कहा,"वो। मुझे मॉडल बनाना है"
ओह्ह अच्छा अच्छा( कंपाउंडर बोला) लेकिन वो तो मैने कुछ देर पहले ही कूड़े दान में डाल दी।
"ओह्ह कोई बात नहीं मैं साफ करके यूज़ कर लुंगी" श्री ने कहा
घर आकर उसने दवाएं पोछी, और सारी दवा एक एक करके निगल गई, रात को इसी उम्मीद में सोने चली गई कि आज मेरी आख़िरी रात है।
सबेरा हुआ,आज श्री की आंख काफ़ी देर से खुली शायद वो दवाओं का असर था,मगर ये क्या वो तो ज़िन्दा थी,ये देख कर श्री दहाड़ मार कर रोने लगी,"अब मैं क्या करूं मै ज़िन्दा क्यों हूँ" मुझे ज़िन्दा नहीं रहना।
इससे बड़ा अभागापन औऱ हो क्या सकता है जब किसी को ज़िन्दगी से अधिक मौत सुकून दे।लोग मौत से डरते हैं श्री ज़िन्दगी से डरती,कोई मौत से ख़ौफ खाता है, वो ज़िन्दगी से ख़ौफ खाती है, छोटी सी उम्र में उसने जो पीड़ा झेली वो कोई दूसरा किशोर/किशोरी न झेले।
ये अवस्था पल्लवित होने की है, मुरझाने की नहीं।
माता पिता का ही फर्ज़ बनता है इस उम्र में सपने बच्चे को सुरक्षा कवच पहनाने का,उसे मजबूत बनाने का,किशोर मन कोमल हो मगर कमज़ोर नही,और ऐसे भी संस्कार न दे कि वो दूसरे के दर्द को महसूस ही ना कर सकें, इतने भी क्रूर न हो कि किसी को पीड़ा पहुंचा कर आनंद उठा रहे हो।
एक्सपायर्ड गोलियों से तो कुछ हुआ नहीं, अब श्री क्या करे। उसने घर मे ही छानबीन शुरू कर दी।
अक्सर लोग अपने घर में कीटनाशक और अन्य दवाएँ पेस्ट कन्ट्रोल के लिए रखते हैं। श्री के पिता भी इस तरह की दवाएं रख़ते हैं, श्री उसी की तलाश में है। बड़ी मशक्कत के बाद कहीं कोने में एक बॉक्स मिला खोल कर देखा तो उसमें एक पैकेट मिला जिस पर वार्निंग लिखी थी चूहे मारने की दवा है,हाथ ना लगावे, इसे देखने के बाद भी उसने काफी मात्रा में चूहे मारने का जहर निकाल लिया,वह पाउडर के फोम में था और बहुत ही बदबूदार था, उसने पैकेट को वापस बंद किया,और उस पैकेट पर कई सारी पिने ठोक दी,उस समय उसके मन में यह ख्याल आ रहा था कि हो सकता है कभी उसी की तरह किसी का दिमाग खराब हो जाए और वह भी ऐसा निर्णय ले बैठे तो इतनी सारी पिने निकालते निकालते उसका निर्णय बदल जाएगा।
शाम के समय श्री छत पर घूम रही थी और बड़े काग़ज़ की पुड़िया में उसके हाथ मे ज़हर था,उसने पुड़िया खोली और चूर्ण की तरह थोड़ा थोड़ा लेकर खाने लगी,वो पाउडर काफ़ी सूखा था,जो निगलना काफी मुश्किल था। मगर वो निगल रही थी,ख़ास रही थी,वो अब और नहीं निगल पाएगी(उफ़ नहीं नहीं नहीं निगला तो बच जाएगी और बचकर फिर वही नर्क से बदतर जीवन,वही ताने) इन शब्दों ने उसे मरने का हौसला मिला,मौत अधिक सुकून भरी होगी,देखते ही देखते वो पूरी पुड़िया का ज़हर निगल गई, उसका सीना और पेट जलने लगा चक्कर से आने लगे,जी मिचलाने लगा,मगर उसने ठान लिया था,मरना है तो ये सब सहन करना होगा ( ये कष्ट भयानक है मगर उस कष्ट से कम)
श्री ज़हर खा चुकी है, बस उसे मृत्यु का इंतजार है, कोई ख़ौफ या दुःख नहीं जैसे उसे जीवन के भयानक कष्टों से मुक्ति मिलने जा रही हो। वो आख़िरी बार अपने भाई बहिनों घर के अन्य सदस्यों से मिलना चाहती है इसलिए सबके पास बारी बारी गई थोड़े पल रुकी,उनको निहारा,मगर कोई भी उसकी इस हरकत को समझ नही पाया,ना ही उनको खबर लगी कि इसने ज़हर खाया।
श्री रेगिस्तान में भटके प्यासे पक्षी की तरह फड़फड़ा रही थी,पानी पीना चाहती थी,मग़र पानी कही ज़हर का असर कम न कर दे इसलिए पी नही रही थी,वो कोई चूक नही करना चाहती थी,भूख नहीं के बहाने से वो रात होते ही बेड पर लेट गई,बेचैन थी उसके शरीर के भीतर कुछ भयानक घट रहा था, मगर उसने चूं तक नही की, करवट बदलती रही ,ज़हर के असर को बर्दाश्त करती रही, काफी देर छटपटाने के बाद श्री की सांस चढी और हमेशा के लिए उतर गई,उसका शरीर निर्जीव निढाल पड़ गया,बेचैनी शांत हो गईं।
श्री शांत हो गई ऐसा लग रहा है आज कई दिनों की परेशानी से मुक्त होकर सुकून से सो गई है ये सुकून उसके चेहरे पर साफ़ झलक रहा था।
बुधवार, 21 अप्रैल 2021
श्री- शेष भाग #Lovethriller hate story Shree
विद्यालय में आज भी वहीं तानों भरा दिन,वही खिलखिलाहट वही तंज,श्री बस छुट्टी का इंतजार करती,दिन बिताना बड़ा ही मुश्किल होता था।
मगर ताने सिर्फ यहाँ ख़तम नहीं होने थे,उनकी भयावहता कितनी हद पार करने वाली है श्री को तनिक भी अंदाज़ा न था।
अगले दिन जब वो विद्यालय जाने लगी,एक लड़का ( वही जिसका नाम बिगाड़ कर श्री ने अपने अंतिम पत्र में जिक्र किया था) झुंड में उसको फॉलो करता हुआ उसको गालियाँ बकता हुआ उसके पीछे पीछे चला आ रहा था। विद्यालय का रास्ता लंबा था।
श्री उसकी धमकियों गालियों से सहम गए थी,किसी तरह तेज़ कदम किये,वो झुंड वहाँ से लौट गया ( क्योंकि उनके विद्यालय का भी यही समय था)
जैसे वो विद्यालय पहुंची वहाँ का भी माहौल आज कुछ अलग था, आज उनके तानों ने भी धमकी का स्वरूप ले लिया था,उस झुंड की हर लड़की वो नाम बोल रही थी जो श्री ने अपने अंतिम पत्र में अविनाश को लिखे थे।
श्री के तो पैरों तले जमीन खिसक गई,उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। स्थिति ये थी कि गश खा कर गिर जाए।
हे भगवान ये सब क्या है, इतना बड़ा धोखा आंखिर मैने उस लड़के( अविनाश ) का बिगाड़ा क्या? उसने मुझे किस बात की सज़ा दी। श्री बुदबुदाई,अब कुछ नहीं हो सकता।
वाकई ये सच था अब कुछ नहीं हो सकता था, पहले तो उन लड़कियों से श्री का कोई मतलब नहीं था तब भी बेवजह वो श्री को लंबे समय से तंग कर रही थीं।
मग़र आज तो वजह थी,श्री ने उनके नाम जो बिगाड़ दिए थे और सीधे उनसे पन्गा ले लिया था,तो क्या अब उसे छोड़ सकते थे?
बस उन लोगों ने वो बात पूरे विद्यालय में फैला दी,अब तो विद्यालय के छोटी छोटी छात्राएं भी श्री पर आते जाते हंसने लगी टौंट मारने लगी,बेचारी श्री जैसे हजारों जहरीले डंग वाली मधुमखियां उससे चिपट गई हो। अब वो कैसे अपनी जान बचाए।
गुरुवार, 8 अप्रैल 2021
#Lovethriller hate story Shree
किशोरावस्था जीवन का कठिन काल है,ऐसा मैंने कहीं पढ़ा था। लेकिन कहीं न कहीं मैंने माना भी कि ये काफी हद तक सच भी है अगर लगाम सही हाथों में न हो,ये समय है जब किशोरों को उचित मार्गदर्शन की ज़रूरत है,सुरक्षा की ज़रूरत है, नही तो उनके जीवन में काफी कुछ ऐसा घट जाता है, जिसकी ख़बर माँ बाप को भी नही रहती,मगर बेचारा एक भोला भाला किशोर/ किशोरी बहुत कुछ झेल जाती है।
इस कहानी का उद्देश्य सिर्फ़ मनोरंजन नहीं है,क्योंकि इस कहानी का हर एक शब्द अक्षरसः सत्य है,इसमे कुछ भी झूठ या बनावटी नहीं है, इसको लिखने का एक सीधा मकसद समाज तक इस बात को पहुँचाना है,आज पब्लिक प्लेटफॉर्म है आसानी से बात उन माता पिताओं के कानों तक भी पहुंच जाएगी जो अपने किशोर बच्चों के प्रति सजग नहीं हैं, उन्हें लगता है बच्चा विद्यालय जा रहा है घर आ रहा है सबकुछ सामान्य है मगर मुझे लगता है माता पिता होने के नाते हमारी पूरी जिम्मेदारी बनती है कि हम उन पर बारीक़ नज़र रखें, उनके व्यवहार ,उनके खानपान पर ध्यान दें, वो उदास हैं या खुश हैं इस बात का विशेष ख्याल रखें।
क्योंकि किशोरावस्था में घटित एक घटना आपके बच्चे के पूरे जीवन को बदल सकती है।
आइये लेकर जाती हूँ आपको एक ग्रामीण पृष्ठभूमि पर,बात यही कोई 20 साल पुरानी है, मगर आज भी बिल्कुल ताज़ा घाव की तरह,रिसती- टीसती।
श्री ने अभी दसवीं पास की है,अपने ही गांव से अपने दादा दादी की छत्र छाया में,दसवीं क्या हुई उसके मन मे न जाने क्या कुलबुलाहट हुई कि मुझे अब इस गांव से नही पढ़ना, ज़िद पकड़ बैठी,माँ -बाप,दादा-दादी हार गए उसकी ज़िद के आगे,उनके गांव से यही कोई 20-25 मील दूरी पर,उनके रिश्तेदार रहते हैं, वो एक कस्बा है, श्री के गांव से कुछ बेहतर,शिक्षण संस्थान भी वहाँ ठीक है, अपने गांव से पास है इसलिए घरवालों को बात ज्यादा अखरी नहीं,यही की हफ्ते दो हफ्ते में छुटी में आ जाया करेगी। श्री चंचल तो है ही अब तक अपने घर पे रही अपनी मर्ज़ी से खेलना,कूदना,दौडना,भागना।
मगर रिश्तेदारी में ये सब नही चलता,एक तो दूसरे के घर पर रहो फिर उनके अनुसार नही चलना भी उचित नहीं,मगर दूसरी जगह रह कर हम बहुत सारी बातों में मन मसोस कर रह जाते है,कह नही पाते कर नही पाते।
श्री भाग-२
अब श्री नई नई जगह आई है, मन मे उत्साह उमंग भरपूर है,नए विद्यालय में पढ़ने का जोश भी देखते ही बनता है खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं है।मगर अब 11वीं की पढ़ाई भी है,विज्ञान विषय है और यहाँ आने का मक़सद भी तो पढाई ही है, पर चंचल मन ऐसा कहा सोचता है,ये उम्र ऐसी है कि इतनी समझदारी की बात भला कोई कैसे समझे?
अब नए विद्यालय में दाखिला भी हो गया नई किताबें भी आ गई, अगर कुछ शुरुआत बाकी है तो वो है उसकी तरफ़ से पढाई की शुरुआत..
श्री ने नई क़िताबों कॉपियों का रख रखाव तो अच्छे से किया मगर पढ़ाई नहीं शुरू की,विज्ञान विषय थोड़ा कठिन पड़ता हैं उसे अच्छे से समझने के लिए उसका ट्यूशन भी लगा दिया गया,सारे कार्य नियम पूर्वक हो रहे थे विद्यालय जाना वापस आना,फिर शाम को टयूशन जाना,किसी पढ़ाकू विद्यार्थी की तरह,मगर उसका चंचल मन किताबों में ज्यादा देर टिकता न था,सर् क्या पढ़ा रहे हैं उसको ये ख़बर भी नहीं रहती थी,पढ़ाई जैसे बोझ लगने लगी थी।
श्री भाग-३
हां श्री में एक विशेष बात थी कि उसकी आभा मनमोहक थी,जो उसे एक बार देख ले उसका मन मोह न ले ऐसा नहीं था,छोटे बड़े सब उसके मुरीद थे,मासूमियत कूट कूट कर भरी थी जाहिर सी बात है उम्र नाजुक थी दुसरो की तारीफ़ पर फूले न समाना, खुद को ही सबसे सुंदर समझ लेना, घण्टों आइने में खुद को निहारना,उस उम्र का एक पड़ाव वो भी है जहाँ सबकुछ ठहरा सा, सब कुछ सुंदर लगने लगता है,टयूशन की कक्षा में एक लड़का भी आया करता था,उसका ध्यान किताब में कम,श्री पर ज्यादा रहता था,श्री भी उसके भावों को समझ रही थी,मगर नज़रअंदाज़ किए हुए थी।
वो जमाना ग्लोबलाइजेशन का तो था नहीं ,संचार माध्यम नही थे,सम्पर्क आसान नहीं था,कोई अगर अच्छा भी लगे तो आँखों ही आंखों में सारी बातें हो जाती थीं और वो बात भी बहुत बड़ी मानी जाती थी कि इसने लड़के को देखा या इसने लड़की को देखा,अगर आज के परिप्रेक्ष्य में सोचे तो अच्छा लगने क्या बुरी बात है,ये भी जीवन के विकास की एक सहज प्रक्रिया है,ये सोच, विकास और मानसिकता की ही बात है, ये बातें उस समय जितनी भयानक और प्रतिष्ठा का विषय बन जाती थी आज के दौर में उतनी ही मामूली और हंसी मज़ाक वाली बात लगती है।वह समय कहें या उस समय के लोग कहें जो बहुत ज्यादा संकीर्ण मानसिकता का दौर था ,तिल सी छोटी बात एक मुँह से दूसरे मुँह तक पहुंच कर ताड़ बन जाती थी।
बात कुछ न होने पर भी जिस तरह की बातें बन जाती थी वो भयानक मानसिक प्रताड़ना से कम न था, जीना दुर्भर हो जाता था,मगर किशोरावस्था में बहुत सी बातें ऐसी होती है कि किशोर उसी पल में जीते हैं, वो देशकाल परिस्थिति और उनको होने वाली मानसिक क्षति की कल्पना तक नही कर सकते। मुश्किल से 16 साल उम्र हुई है ना जीने का न ही जीवन का कोई तजुर्बा है, बस अभी धार जिस ओर है उस ओर बह चलो, बस श्री का भी यही हाल था, दिन इसी तरह बीत रहे थे,किसी ओर बेचैनी थी,कुलबुलाहट थी किसी तरह इससे (श्री से) बात हो जाए,लड़का अपनी तरफ़ से सारे हथकंडे अपनाने को तैयार था,मगर बात बन नही पा रही थी,वो समाज ही ऐसा था कि एक लड़का लड़की आपस मे बात कर ही नही सकते,ये अनहोनी हो जाती।
मगर संयोग कहिए या भाग्य की विडंबना,श्री की कक्षा में एक लड़की रानी पढ़ती है,जिसके घर मे उस लड़के अविनाश का आना जाना है( ये वो ही लड़का है जो ट्यूशन पढ़ता है श्री के बैच में),उसने रानी को ट्रेन कर दिया कि किसी तरह श्री से नजदीकी बढ़ाए और मेरी बात उस तक पहुंचाए।
भोली भाली श्री हर बात से अनजान है,उसे ख़बर ही नही है कि उसके जीवन मे आने के लिए कौन सी तबाही बाहें फैलाए खड़ी उसकी सहमति का इंतजार कर रही है। एक सपने में जीने वाली लडक़ी, जो धरातल में विचरती ही नहीं, उसे किसी परिणाम की क्या चिंता?
श्री भाग-४
विद्यालय में रानी से उसकी कोई बात चीत और परिचय नहीं था,क्योंकि कक्षा एक है, विषय भी एक जैसे,पास आना साथ बैठना बातचीत करना किसी से भी, कोई विचित्र बात तो थी नहीं,श्री को भी रानी का व्यवहार बाकी छात्राओं की तुलना में ज्यादा सहज लगा,एक नए विद्यालय में रानी उसकी सहेली बन गई,दोस्ती दिनोंदिन परवान चढ़ी।
जीवन मे कभी कभी ऐसे पल आते है जो हमारे जीवन मे बहुत कुछ हलचल मचा देते है,मगर हमारी लापरवाही हमें आने वाले विनाश की ख़बर से बेखबर रखती है ।
उन्ही दिनों किसी त्योहार के उपलक्ष्य में कुछ दिनों के लिए विद्यालय में छुट्टी हो गई और ट्यूशन के अध्यापक भी उस बीच अपने परिवार के साथ अपने घर चले गए,अब क्या था विद्यालय तो बन्द था ही ट्यूशन क्लास भी बंद थी। अविनाश को छटपटाहट होने लगी,वो कैसे श्री को देखे,पहली बार उसे श्री को देखे बिना एक दिन भी निकलना मुश्किल लगा,करे तो क्या करे कुछ सूझे ही ना।
अब ऐसी भावना मन मे आ गई तो आंखिर दोष किसका है? ये ज़बरन आने वाली कोई भावना तो है नहीं और अविनाश की उम्र भी सत्रह साल ही है,वो भी वयस्क तो था नहीं कि उसे समाज का या भले बुरे की बहुत अधिक समझ होती,वो भी लगातार एक आकर्षण में बंधता जा रहा था,जीवन का ये पहला इतना मीठा एहसास है,जिसको वो सिर्फ एहसास ही करना चाहता है परिणाम चाहे जो हो। ये आकर्षण ऐसा भाव है, जिसमें किशोर मन बस उलझता चला जाता है।
उसने काफी जद्दोजहद की तिकड़म भिड़ाई और रानी को राजी किया ,"तू किसी तरह श्री के पास जा किसी भी बहाने से ,और उसे मेरे दिल की बात बता दे,शायद उसको देख कर ही काम चल जाता मगर बीच में ये कमबख्त छुट्टी आ गयी,मुझसे तो इतवार बिताना मुश्किल हो जाता था तो ये ह्फ़्ता कैसे बीतेगा,बस तेरे हाथ पैर जोड़ता हूँ तू चली जा"
अविनाश ने कहा " मैने उसके लिए एक पत्र लिखा है तुझे उसे कुछ भी नहीं कहना है बस इसे उस तक पहुंचा दे, और उसे मना लेना किसी तरह से कि वो वापस न कर दे,बस एक बार,वो मेरे मन में उमड़ते सैलाब से वाकिफ़ हो जाए,बाकि उसकी मर्ज़ी"
रानी को तरस आ गया,बेचारा इतना परेशान है ये सोचकर वो श्री के पास जाने के लिए तैयार हो गई।
अगले दिन शाम के समय वो अपनी छोटी बहन के साथ श्री के घर पहुंची,ये कहकर कि उसे किसी विषय पर कुछ बात करनी है,थोड़ी देर वो साथ घर पर बैठे फिर उसने श्री से इच्छा ज़ाहिर की,"तुम्हारे घर के आगे काफी हरियाली है क्या उस ओर हमें ले चलोगी" श्री सहमति में सिर हिलाकर बोली," क्यों नहीं, ये कौन बड़ी बात है चलो"।
तीनों हरे भरे मैदान की ओर निकल पड़े, जो कि उसके घर से यही कोई सौ कदम पर था,तभी मौका देखकर रानी ने श्री से बात छेड़ी,"देख मेरे यहाँ आने का कुछ और कारण है" श्री थोड़ा विस्मय से बोली "कुछ और?"
रानी-"हां, अविनाश है ना?"
श्री-"अविनाश? कौन अविनाश" (सोचिए इतने दिनों से जिस लड़के के साथ वो एक कक्षा में ट्यूशन पढ़ रही थी उसे उसका नाम भी पता नही था,नाम पता भी कैसे होता सर् उसे ए, ओ ऐसे ही बोलते थे,बस उसे ये खबर है कि उसकी नज़रे कई दिनों से उस पर टिकी हैं।
रानी -" अरे अविनाश तुम्हारे साथ शाम में ट्यूशन तो पढ़ता है"
श्री- " ओह, अच्छा, उसका नाम अविनाश है,मुझे ये नही पता था"
रानी- "हां वो ही,शायद तुमने नोटिश किया भी हो कि वो तुम्हें देखता रहता है"
श्री- " हां देखा मैंने"
श्री भाग-५
आह रे मन,कैसा अजीब है,श्री के मन में एक तरफ़ डर शंका,घबराहट सब चल रही है, दूसरी तरफ़ उत्सुकता भी है कि"रानी कहना क्या चाहती है"।
रानी श्री के मनोभावों को भांप रही थी,उसने अपने बैग में हाथ डाला और चुपके से एक छोटी सी डायरी निकाली श्री को थमाती हुई बोली, "ये लो अविनाश ने दी है तुम्हारे लिए"
श्री -(थोड़ा सकपका कर) क्या है इसमें और क्यों दी है ये।
रानी- "देखो क्या है,मुझे ये तो नहीं पता,मग़र तुम्हारे लिए ही दी है इसलिए लेलो"
श्री- (असमंजस में है,एक तरफ डर दूसरी तरफ़ जिज्ञासा, ना लूं तो कैसे ? लेलूँ तो कैसे) अगर ले लूं तो क्या होगा, किसी को पता चल गया तो?वो थोड़ा घबरा कर बोली
नहीं यार में इसे नही ले सकती,तुम वापस ले जाओ,इसे लेकर मैं किसी मुसीबत में न फ़स जाऊं।
रानी- ( श्री के हाथ अपने हाथों में लेकर) अर्रे कैसे फ़स जाओगी यार, मैं हूँ ना, ये बात तुम्हारे मेरे बीच ही रहेगी, इतना डरने की क्या बात है। चलो एक बार देखो तो सही इसके अंदर है क्या?
श्री- मुझे बहुत डर लग रहा है,घबराहट भी हो रही है।
रानी- यार देखो ,वो बेचारा बहुत परेशान है, मैं इतनी आसानी से यहां आती भी नहीं, मगर, मुझसे उसकी हालत देखी नहीं गई,पहली बार किसी लड़के को किसी लड़की को लेकर इतना सीरियस देखा, छटपटा रहा है बस किसी तरह तुम तक बात पहुंच जाए।
श्री कुछ समझ नही पा रही है,( कई भाव उसके अंदर उमड़ रहे हैं एक तरफ़ खुशी है कि कोई उसे इतना पसंद करने लगा है कि उसके बिना...दूसरी तरफ़ रिश्तेदारों लोगों समाज का डर)
मगर अभी कहानी शुरू कहाँ हुई है, एक मन ये भी होता है चलो कूद जाएं इस दरिया में,डूबेंगे की पार लगेंगें ये बाद में सोचेंगे।
रानी ने किसी तरह श्री को मना ही लिया।
उसे डायरी थमा दी। बड़ी सुंदर सी पीले कवर में सफेद फूलों वाली डायरी के अंदर एक पिंक कलर का इंवेलोप,
वो था पहले प्यार का पहला ख़त।
श्री ने काँपते हाथों से डायरी और इंवेलोप दोनों पकड़े( ये पहली आहट थी अनहोनी की,शायद हमारा मन पहले ही अनहोनी को भांप लेता है,वो हमें घबराहट और डर के रूप में चेतावनी देना चाहता है,पर ये मिश्रित भाव,उसमें भी जिज्ञासु भाव हावी रहने से सारे काम ख़राब हो जाते हैं)
देखो यहां डगमगा गयी श्री ( किसी लड़के से पत्र लेने का उसे कोई अनुभव नही था,किस तरह टाले बात को वो नही जानती,मगर एक सच तो ये भी है वो टालना भी कहाँ चाहती है,वो भी बहना चाह रही है इस धार में बेफिक्र)
श्री भाग-६
अब श्री ने डायरी ले ही ली तो रानी भी जानने को उत्सुक थी कि उसमें क्या है,बोली ज़रा दिखाओ तो सही क्या भेजा है,मगर श्री नहीं चाहती थी रानी उससे पहले उसे देखे या पढ़े,आंखिर पहले प्यार का पहला संदेश वो भी कोई और पढ़ ले सबसे पहले,मग़र रोक नहीं पाई और रानी ने उसके सामने ही इंवेलोप खोला और धड़ाधड़ इस तरह सारा पढ़ गई,कि किसी की भावनाओं की इतने दिनों की तपस्या की पल भर में धज्जियाँ उड़ा दी।
श्री को,रानी का ये व्यवहार कुछ ठीक तो नहीं लगा,मगर वो उससे कुछ कह नहीं पाई,इंवेलोप में वापस रख कर रानी ने उसे वो लुटा पिटा, बेइज्जत सा पत्र थमा दिया, अब रानी ने श्री से विदा ली,श्री भी कुछ बोझिल कदमों से घर लौट आई।
अब सामने समस्या ये थी कि इस डायरी को छिपाए कहाँ, उसने अस्थाई तौर पर उसे अपने बिस्तर के नीचे दबा कर रख दिया।
न जाने कितनी ही बार उसने उस पत्र को इंवेलोप से निकाला, पढ़ा ,वापस रखा,अविनाश ने अपनी सारी भावनाओं को बटोर कर बहुत सुंदर लिखावट में,सफेद पन्ने में गुलाबी फूलों के ऊपर,हर एक बात का एहसास बड़ा जीवंत लिखा था।
श्री उसकी लिखावट से ही नहीं, उसकी अभिव्यक्ति के तरीके से भी बड़ी इम्प्रेस थी। पहला पत्र जो सिर्फ प्रेम, आकर्षण, अनुरोध से भरा हुआ था,उसमें भी "बात बात" पर लड़की की प्रसंशा हो कि उसके जैसा कोई है ही नहीं, तो पिघलना तो लाज़मी ही है,ऊपर से ये श्री है अत्यंत भावुक कोमल हृदय, जिसे किसी पर भी दया आ जाती है।
इतनी अनुनय विनय देखकर, श्री को लगा क्या हुआ अगर ये प्रस्ताव स्वीकार कर भी लूं तो, हां एक बात और लड़कियों की ये दयालु प्रवित्ति भी,कई बार उनके जीवन में,संकट का कारण बन जाती है।
श्री भाग -७
कभी कभी कोमल हृदय होना खुद को ही आघात पहुंचाता है,श्री को अच्छे बुरे सही गलत की कोई परख नहीं, कोई बुरा भी हो तो वो जब तक धोखा नहीं खाएगी तब तक मानेंगी नहीं, किसी ने सही ही कहा है, अक्ल और उम्र की सही वक्त पर मुलाकात नहीं होती, बस यही बात है।
पत्र तो उसने काफी सहेज कर रख लिया,मगर जवाब देने से वो कतराती थी,नियम पूर्वक हर दिन मौका पाते ही वो पत्र को निकाल कर पढ़ने लगती,अब तक तो उसे उस पत्र की हर एक पंक्ति कंठस्थ हो गई।
दूसरी तरफ अविनाश आस लगाए बैठा है, श्री के जवाब की प्रतीक्षा में,हां कहे चाहे ना कहे मगर कहे तो सही,मगर इम्तेहां हो गई और ये इंतजार उसके लिए इम्तेहान ही था। डर भी कि ना न कह दे और हां सुनने की उत्सुकता भी।
फिर जब रहा नहीं गया,उसने रानी की फ़िर खुशामद की,अगले दिन विद्यालय में रानी ने श्री से पूछा,"तुम कब जवाब दोगी उसके पत्र का"
श्री - समझ नहीं आ रहा क्या जवाब दूँ उसका?
तुम बताओ,"हां कि ना" रानी ने पूछा।
श्री कुछ नहीं बोल पाई (ना कहेगी तो उसके दिल टूटने का दर्द उसे भी होगा हां कहे तो फिर न जाने क्या होगा)।
रानी ने दबाव बनाया,"दे दो जवाब वो कब से इंतज़ार में है, क्यों तरसा रही हो ऐसे उसे"।
श्री (कुछ सोच कर) हां दूंगी जल्दी ही जवाब।
रानी- जल्दी ही नहीं बहन कल ही,कल मैं इसी उम्मीद से आऊंगी की तुम जवाब लाई ही हो बस।
श्री ने हामी भरी।
श्री भाग-८
आज रात बड़ी बेचैनी भरी थी,श्री को इंतजार है घर के सारे सदस्यों के सोने का,ताकि वो इतमिनान से पहले पत्र का पहला जवाब लिख सके, आखिरकार वो घड़ी भी आई जब सब लोग सोने चले गए,अब रात सुनसानी की ओर बढ़ रही है,श्री के दिल की धड़कनें लगातार बढ़ रही है,कौतूहल है,डर है।
आज तक ऐसे पत्र को लिखने का अवसर मिला तो नही था,नही ये पता है शुरुआत कैसे करे,बड़ी सरलता है श्री में,पत्र लिखने बैठी है,रफ़ कॉपी के एक पृष्ठ में।
मगर सम्बोधन कैसे करे,पहले पृष्ठ में कुछ लिखा,पर लिखावट में बात नही लगी वो फाड़ा, फिर शुरू किया,संबोधित कैसे करे,डिअर लिखे ( ओह नहीं नहीं डिअर सही नहीं रहेगा,कोई अनजान लड़का नजाने पहली ही बार में डिअर का क्या अर्थ निकाल ले,इस कशमकश में उसने सात पृष्ठ फाड़ कर फेंक दिए,मग़र आज वो लिख नहीं पाई,घड़ी में रात के बारह दस बजे हैं और जगे रहना उचित है भी नहीं।
इस तरह एक और दिन निकल गया।
अगले दिन श्री खाली हाथ विद्यालय गई। रानी आस्वस्त थी,आज तो जवाब लाई ही होगी,कल इतना कुछ जो बोला है।
मगर ये क्या? वो तो जवाब लाई ही नहीं,रानी ना सुनकर उखड़ गई। रूखे स्वर में बोली,"यार हद है यार, एक पत्र का जवाब देने में तुमने महीना निकाल दिया,तुम दूसरे के बारे में नहीं सोचती तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है, चाहे कोई मरे ही"।
"नहीं नहीं ऐसा मत कहो ऐसा है नहीं" श्री ने सफाई देनी चाही। उसने वजह बताई ।
"अब आज तो शनिवार है,अब वही सोमवार की बात गई" रानी ने निराशा से कहा।
श्री-" अच्छी बात है ना मुझे थोड़ा समय मिल जाएगा,जवाब सोचने का,पक्का परसों ले आउंगी।
चलो देख लेते हैं ये भी (रानी )
श्री भाग -९
शनिवार की रात है ( आज तो लिखना ही है किसी भी तरह,श्री मन ही मन सोच रही है,बस सब सो जाएं)
लगभग 9:30 पर सब सोने चले ही जाते हैं, आज भी वो इसी समय का इंतजार कर रही थी,जब वो आस्वस्त हो गई, अब कोई नहीं उठेगा तो वो भी लिखने बैठी,कल संडे है विद्यालय जाने की कोई टेंशन भी नहीं।
लिखना शुरू किया,पर संबोधन में फिर से अटक गई,मगर कुछ समझ नही आया तो उसने डिअर ही लिख दिया,मगर ये उसे अच्छा सा नहीं लगा,तो उसने फिर से पृष्ठ फाड़ के फेंक दिया, फिर दूसरा लिखना शुरू किया।
इस बार उसने हेलो अविनाश से,शुरुआत की,आखिरकार वो पत्र जैसे तैसे लिख ही डाला,प्रस्ताव को उसने न खारिज़ किया ना ही हां की,कुछ इस तरह से रिप्लाई दिया कि समझने वाला हां या न के असमंजस में पड़,जाए
रिप्लाई जो भी था,मगर श्री की ओर से एक सिलसिले की शुरूआत हो गई,अगर वह भावनाओं में ना बहती थोड़ा मज़बूती दिखाती तो शायद इस सिलसिले को बढ़ने से रोका जा सकता था।
उसने पृष्ठ को फोल्ड करके स्टैपल किया और एक कॉपी बीच मे रख लिया।
श्री भाग-१०
सोमवार को उसने रानी को पत्र थमा दिया( रिक्वेस्ट की की किसी को पता न लगने दे। रानी ने भी उसे आस्वस्त किया)
बस अब सिलसिला चल पड़ा,पत्रों का आदान प्रदान बदस्तूर जारी रहा,पहले पत्र में श्री को जितना डर और आशंका थी सब धीरे धीरे ख़तम हो गए,वो निडर निःशंक है उसे लगता है उसके पत्र सुरक्षित हाथों में हैं।
बेशक कोई इतना विश्वास और प्रेम जताता है तो ज़ाहिर सी बात है समय के साथ साथ हम उस पर अंधा विश्वास कर बैठते हैं। श्री पहले से ही भोली है छल कपट से अनजान।
यहाँ अविनाश अपनी बहनों को भी विश्वास में ले चुका है,उसने अपने मन की बात उन्हें बता दी,उसकी बहनें भी दोनों श्री के विद्यालय में ही अध्ययनरत हैं। अविनाश को लगा अपनी बहनों से पत्र भिजवाऊंगा तो ज्यादा अच्छा रहेगा,सीधे श्री को ही मिलेगा,और उसके खुलने का डर भी कम रहेगा।
बस अब उसने अपनी बहन को ही डाकिया बना दिया, थोड़े समय में ही उसकी बहनें श्री से घुलमिल गईं ( स्वभाव से वे काफी अच्छी थीं)
अब बिना व्यवधान के पत्रों का आदान प्रदान होने लगा है,अविनाश भी काफ़ी खुश है श्री के जीवन का भी ये अदभुत अनुभव है।
उस समय के किशोरों की अगर बात करें तो वे काफी मासूम हुआ करते थे,अश्लीलता अभद्रता वे नहीं जानते थे ( हो सकता है कुछ अपवाद हों,मग़र यहाँ श्री की ही बात हो रही है।)
उनके पत्र की भाषा भी सभ्य थी,रोजमर्रा की बातें आपस में होती हैं, हां बस ये कि पढ़ाई में मन नहीं लगता इस बात का ज़िक्र हर पत्र में था,पढ़ाई नहीं हो रही दोनो को अफ़सोस तो था,मग़र पढ़ना नही था।
श्री तो पहले से ही चंचल है,वो तो पढ़ने से वैसे ही जी चुराती थी,अब तो एक काम उसे और मिल गया लेटर राइटिंग का,अब उसे क्या ही पढ़ना था।
दोनों का अकैडमिक पार्ट ड्रॉप होने लगा,ये बहुत निराशाजनक बात थी,मग़र वो होश में थे कहाँ।
श्री भाग-१०
ये दुर्भाग्य की बात है, छोटी सी उम्र ही है १६ साल ( उस समय के हिसाब से ) हमारे अपरिपक्व शरीर मे कितने ही रसायनों का उछाल है, जो कई तरह के मनोभावों को उत्पन्न करता है,इस उम्र का एक महज़ आकर्षण,किशोर प्रेम समझ बैठते हैं, जिस शब्द से वो भलीभांति परिचित भी नहीं, ये तूफ़ानी समय है अपनी ऊर्जा को सही दिशा में प्रवाहित करने का,अगर सच में हम किशोरों की इस ऊर्जा को एक दिशा नहीं दे पाए तो निसंदेह वो अपना जीवन अंधकारमय कर लेंगे। श्री ने भी वो ही किया।
उस समय कई किशोर कई युवा श्री से बात करने को इच्छुक रहते थे और ज़ाहिर सी बात है ऐसे में वो किसी लड़के से अपनी भावनाओं को सांझा कर रही हैं, तो उस लड़के का शेख़ी बघारना तो बनता है।
अविनाश अपने दोस्तों के बीच कॉलर उठा कर बताता है कि मेरी श्री से बातचीत है, हमारे आपस मे पत्र व्यवहार है।
किसी को अविनाश की बातों पर यकीन हुआ ही नहीं, आंखिर ये कैसे बाजी मार सकता है। अब विश्वास भी तो सिद्ध करना पड़ता है प्रमाण मांगता है।
बस इसी प्रमाण के चक्कर में और खुद को विशेष साबित करने के चक्कर में, अविनाश ने वो किया जो किसी प्रेमी को कभी नही करना चाहिए।
वो श्री के पत्र अपने दोस्तों को पढ़ाने लगा,दोस्त भी चटखारे लेकर श्री की भावनाओं का आनंद लेते।
और वहां बेचारी श्री अनजान है, जिन पत्रों को वो सबकी नज़रों से बचा कर बंद कमरे में लिख रही है,जिनमें वो अपने दिल के जज्बातों को खोल कर रख देती है, वही पत्र किसी की झूठी शान और शेख़ी के लिए सरेआम हो रहे थे।
एक किशोरी या लड़की या स्त्री को अपनी इज़्ज़त बहुत प्यारी होती हैं कोई भी ऐसा नही चाहेगी कि उसकी मन की भावना पब्लिक हों जो सिर्फ एक व्यक्ति के लिए हो।
मगर ऐसा हो रहा था। श्री के जीवन मे एक भयानक मुसीबत दस्तक़ दे चुकी थी मग़र वो अनजान है।
आजकल काफी दिनों से नोटिश कर रही है कि विद्यालय में उसकी कक्षा की ही कुछ लड़कियां उस पर व्यग्य करती हैं, उसके पत्र की लिखी हुई बातों को आते जाते उसके सामने बोलती हुई जाती हैं।
श्री भाग -११
श्री को समझ नही आ रहा कि ये कैसे हो रहा है,पत्र तो मैंने अविनाश के लिए लिखा था फिर वो वाक्य इन्हें कैसे पता?
चलते फिरते उसकी भावनाओं की धज्जियां उड़ाई जा रही थी,वो लड़किया आते जाते तंज कसने लगी थी ( जबकि श्री की गलती क्या थी कि उसने किसी लड़के को पत्र लिखा था, मगर उन लड़कियों को किसने इतना हक दिया कि वो किसी मासूम को इस तरह मानसिक प्रताड़ना दे?) उनका समूह लगभग दस का था और श्री बिल्कुल अकेली थी,धीरे धीरे विद्यालय में उसका आना जाना दुर्भर हो रहा था।( वो खुद को अपराधी महसूस करने लगी थी,जैसे उसने कोई पाप किया हो)
उन पत्रों की वो मधुरता अब कड़वाहट बन रही थी,श्री अजीब तरह व्यवहार करने लगी,वो उन लड़कियों से तो कुछ कह नही सकती थी। ( क्योंकि वो उसका नाम तो लेते ही नही थे,वो तो एक करके उसके पत्र में लिखे वाक्यों को उसके सामने बोल कर चले जाते) ये सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि रुका नहीं।
श्री बार बार ब्लैड से हाथ काटने लगी( उसे लगता था कि शायद उसका खून बहा देख उन लड़कियों को उस पर तरस आ जाए और वो सुनाना बंद कर दे) मगर ऐसा नही हुआ,
श्री विद्यालय के ब्रेक के समय जहाँ बैठती वो झुंड भी वहीं आकर बैठता,उसको विद्यालय की खिड़की के शीशे में देखते,इशारे करते हंसते खिलखिलाते,उसके वाक्यों को एक एक करके अपने अंदाज में दोहराते।
क्या कोई महसूस कर सकता है इस दरिन्दगी की भयावहता को,क्या ऐसे लड़कियों को किशोर कहा जा सकता हैं? जो इतनी सी उम्र में इस तरह की दरिंदगी दिखाएं? एक निर्दोष के पीछे हाथ धो कर पड़ जाए। ( पत्र श्री ने लिखा किसी को,उनका उससे कोई ताल्लुक नहीं था,कुछ बिगाड़ता भी तो श्री का बिगड़ता) मगर उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए श्री का चैन सुकून सब छीन लिया।
श्री के रोने धोने के दिन शुरू हो गए,अविनाश की बहन उसके पास आई तो उसके आसुंओ का बांध टूट पड़ा, रोतेहुए कांपते होंठो से उसने उसकी बहन को कहा,"राखी, ये अविनाश ने क्या किया, मुझे किस गलती की सजा दी,उसने मेरे पत्र कहा फैला दिए" राखी इस सब से अनजान थी,श्री के आंखों में बहते आँसू देखकर वो ख़ुद भी रोने लगी, उसे चुप कराती हुई बोली," बताओ तो सही हुआ क्या है"
तुम्हारे भाई ने मेरे पत्र पब्लिक कर दिए ( श्री दहाड़ मार कर रो पड़ी) उससे आगे बोला नही गया।
श्री भाग-१२
श्री खुद को सम्हाल कर बोली," ये लड़कियां( उसने उस झुंड की ओर इशारा किया) कई दिनों से मुझे सुना सुना कर टॉर्चर कर रहीं हैं,वही बातें जो तुम्हारे भाई को मैंने लिखी थीं,इन्होंने मेरा क्लास में बैठना, स्कूल में चलना फिरना खड़े होना सब मुश्किल कर दिया है,मैं तिल तिल मरने लगी हूँ, मैं कब तक ये सब सह पाऊंगी"।
अविनाश की बहन को पूरा यकीन था कि उसका भाई कभी ऐसा नहीं कर सकता,उसने श्री को भरोसा दिलाया कि,"मेरा विश्वास करो भैया ऐसा कभी नही कर सकता,वो तुम्हें लेकर बहुत सजग है" इसके पीछे कोई और कारण हो सकता है मगर ये नहीं जो तुम सोच रही हो। दुखी मत हो,उन लड़कियों पर ध्यान मत दो।
ब्रेक का समय पूरा हुआ,राखी ने अपनी कक्षा की राह ली। श्री बड़े भारी मन से उस झुंड के आगे उनकी फब्तियां सुनती सर झुकाए क्लास की ओर बढ़ी।
मासूम दिल पर ऐसे प्रहार, ऐसा अत्याचार? आंखिर कुछ लोग मनुष्य रूप में ऐसे कठोर कैसे हो सकते हैं?
क्या उनके पास हृदय नहीं होता?क्या वो भावुकता से परिचित नहीं थे,इतना क्रूर उन्हें इस उम्र में किसने बनाया,कि वो किसी के जीवन से खेल गए।
श्री बहुत डरपोक स्वभाव की है,बड़े कमजोर दिल की और अभी तो वो बहुत ज्यादा डरी हुई है कि ये बात उसके घर में रिश्तेदारों तक पहुंचेगी, वो कैसे उनके शब्दों का सामना कर पाएगी? ये सच है कि उसे घरवालों से भी खरी खोटी सुननी पड़ती, या उसकी पढ़ाई ही बंद कर दी जाती बहुत कुछ था।
दिन कुछ इतने बुरे थे कि श्री स्कूल जाने से डरने लगी कि कैसे वो उस झुंड और उसके व्यगों का सामना कर पाएगी। मग़र घर पर भी कितना रुकती वो।
श्री भाग-१३
अगले दिन विद्यालय में राखी ने उसे अविनाश का पत्र दिया,अब श्री पत्र लेने से कतराने लगी थी,उसे लगता है कि इसमें उसकी मौत का पैगाम है।
राखी ने भरोसा दिलाया, "उसे पढ़कर तुम्हे कुछ अच्छा लगेगा" ।
श्री ने पत्र ले तो लिया, अब उसकी इसमे कोई रुचि नहीं थी।
अविनाश ने,उसके साथ जो हो रहा था उसके लिए खेद जताया था,अपने आप को निर्दोष साबित किया,इस बात को सिद्ध करने के लिए कई प्रमाण प्रस्तुत किए थे।
श्री को भी लगा हो सकता है ये सच ही हो, ये सोच कर पत्र का जवाब लिखने लगी,लिखते हुए वो काफी दुखी है। अंदर से बहुत नाराज भी,जाहिर सी बात है नाराजगी में किसी का ज़िक्र हो तो उसका नाम आदर से नही लिया जाता, इसी नाराज़गी में श्री ने उस झुंड का ज़िक्र किया और प्रत्येक के लिए कुछ स्पेसिफ नाम लिया उनके वास्तविक नाम नहीं और एक लड़का जो इन बातों की चर्चा में शामिल था उसका नाम भी बिगाड़ कर लिया,मग़र उन नामों में कोई अभद्रता नहीं थी,वो सिर्फ श्री का दर्द था,जिससे वो उनको सही नाम से संबोधित कर ही नही सकती थी।
सामान्यतया भी किसी से थोड़ी अनबन हो तो उसका नाम बिगाड़ दिया जाता है,इन लोगों से तो वो लम्बे समय से टॉर्चर हो रही थी।
नेक्सट दिन उसने अविनाश को वो जवाब उसकी बहन के हाथों भिजवा दिया।
बस यही पत्र,हां यही पत्र श्री की ज़िंदगी का आखिरी पत्र बन गया।
जल ही जीवन है।
बुधवार, 7 अप्रैल 2021
वो ऐसा ही था।
वो ऐसा ही था।
स्त्री एक शक्ति
स्त्री हूं👧
स्री हूं, पाबंदियों की बली चढ़ी हूं, मर्यादा में बंधी हूं, इसलिए चुप हूं, लाखों राज दिल में दबाए, और छुपाएं बैठी हूं, म...
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