गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

श्री अंतिम भाग #Lovethriller hate story Shree


 पूरे रास्ते श्री सिर्फ इतना ही सोच रही थी अब जीना नहीं है,अगर जिंदा रही तो वो लोग मुझे नहीं छोड़ेंगे, इतने दिनों के टॉर्चर वाले दिन याद करके उसकी रूह कांप गई"नहीं नहीं इससे अच्छी मौत होगी' 

और हर हाल में मुझे मरना ही होगा मेरे पास दूसरा ऑप्शन नहीं है, क्योंकि उन तानो को झेल पाने की हिम्मत और नही मुझमें, वैसे भी अब उन्होंने मुझे स्कूल में मुँह दिखाने लायक तो छोड़ा नहीं, वापस जाकर मै कैसे किसी का सामना कर पाऊंगी।

क्या इतनी छोटी सी बात के लिए किसी को इस तरह बदनाम कर दिया जाता है? आज के परिप्रेक्ष्य में सोचें तो ये बात कुछ है ही नहीं, श्री एक ऐसे लड़के की वजह से बदनाम हो गई जिसे उसने दूर से देखा भर था,वो उसे कभी मिली तक नहीं, बस सिर्फ गुनाह ये था वो दया कर बैठी,बातों को गम्भीरता से ले बैठी। उसका ये अन्धा विश्वास ही उसकी इस हालत का कारण बना।

आज उस चंचल लड़की की चंचलता खतम हो चुकी है, आज वो उदासी की एक मूरत बन गई है। हर पल चहकने वाली श्री आज मुस्कुराना भी भूल चुकी है।

अभी उसका अहम उद्देश्य सिर्फ मरना है, बस उसी के लिए वो आसान सा रास्ता खोज रही है, घर के सभी लोग अपने अपने काम पर व्यस्त हैं, किसी का ध्यान श्री की ओर गया ही नहीं कि वो क्या कर रही है।

श्री ने किसी से सुना था कि एक्सपायरी डेट दवा खाने से मर जाते हैं, तो सबसे पहले उसने यही तरीका आज़माने का सोचा, वो अपने घर के पास ही के एक क्लीनिक में गई, वहां कंपाउंडर से पूछा,"क्या एक्सपाइरी डेट दवाएं मिल जाएंगी" कम्पाउंडर थोड़ा चौक कर बोला," एक्सपाइरी डेट? उसकी क्या ज़रूरत है?

श्री ने बड़ी सहजता से कहा,"वो।  मुझे मॉडल बनाना है"

ओह्ह अच्छा अच्छा( कंपाउंडर बोला) लेकिन वो तो मैने कुछ देर पहले ही कूड़े दान में डाल दी।

"ओह्ह कोई बात नहीं मैं साफ करके यूज़ कर लुंगी" श्री ने कहा

घर आकर उसने दवाएं पोछी, और सारी दवा एक एक करके निगल गई, रात को इसी उम्मीद में सोने चली गई कि आज मेरी आख़िरी रात है। 

सबेरा हुआ,आज श्री की आंख काफ़ी देर से खुली शायद वो दवाओं का असर था,मगर ये क्या वो तो ज़िन्दा थी,ये देख कर श्री दहाड़ मार कर रोने लगी,"अब मैं क्या करूं मै ज़िन्दा क्यों हूँ" मुझे ज़िन्दा नहीं रहना।

इससे बड़ा अभागापन औऱ हो क्या सकता है जब किसी को ज़िन्दगी से अधिक मौत सुकून दे।लोग मौत से डरते हैं श्री ज़िन्दगी से डरती,कोई मौत से ख़ौफ खाता है, वो ज़िन्दगी से ख़ौफ खाती है, छोटी सी उम्र में उसने जो पीड़ा झेली वो कोई दूसरा किशोर/किशोरी  न झेले।

ये अवस्था पल्लवित होने की है, मुरझाने की नहीं।

माता पिता का ही फर्ज़  बनता है इस उम्र में सपने बच्चे को सुरक्षा कवच पहनाने का,उसे मजबूत बनाने का,किशोर मन कोमल हो मगर कमज़ोर नही,और ऐसे भी संस्कार न दे कि वो दूसरे के दर्द को महसूस ही ना कर सकें, इतने भी क्रूर न हो कि किसी को पीड़ा पहुंचा कर आनंद उठा रहे हो।

एक्सपायर्ड गोलियों से तो कुछ हुआ नहीं, अब श्री क्या करे। उसने घर मे ही छानबीन शुरू कर दी।

अक्सर लोग अपने घर में कीटनाशक और अन्य दवाएँ पेस्ट कन्ट्रोल के लिए रखते हैं। श्री के पिता भी इस तरह की दवाएं रख़ते हैं, श्री उसी की तलाश में है। बड़ी मशक्कत के बाद कहीं कोने में  एक बॉक्स मिला खोल कर देखा तो उसमें एक पैकेट मिला जिस पर वार्निंग लिखी थी चूहे मारने की दवा है,हाथ ना लगावे, इसे देखने के बाद भी उसने काफी मात्रा में चूहे मारने का जहर निकाल लिया,वह पाउडर के फोम में था और बहुत ही  बदबूदार था, उसने पैकेट को वापस बंद किया,और उस पैकेट पर कई सारी पिने ठोक दी,उस समय उसके मन में यह ख्याल आ रहा था कि हो सकता है कभी उसी की तरह किसी का दिमाग खराब हो जाए और वह भी ऐसा निर्णय ले बैठे तो इतनी सारी पिने निकालते निकालते उसका निर्णय बदल जाएगा।

शाम के समय श्री छत पर घूम रही थी और बड़े काग़ज़ की पुड़िया में उसके हाथ मे ज़हर था,उसने पुड़िया खोली और चूर्ण की तरह थोड़ा थोड़ा लेकर खाने लगी,वो पाउडर काफ़ी सूखा था,जो निगलना काफी मुश्किल था। मगर वो निगल रही थी,ख़ास रही थी,वो अब और नहीं निगल पाएगी(उफ़ नहीं नहीं नहीं निगला तो बच जाएगी और बचकर फिर  वही नर्क से बदतर जीवन,वही ताने) इन शब्दों ने उसे मरने का हौसला मिला,मौत अधिक सुकून भरी होगी,देखते ही देखते वो पूरी पुड़िया का ज़हर निगल गई, उसका सीना और पेट जलने लगा चक्कर से आने लगे,जी मिचलाने लगा,मगर उसने ठान लिया था,मरना है तो ये सब सहन करना होगा ( ये कष्ट भयानक है मगर उस कष्ट से कम)

श्री ज़हर खा चुकी है, बस उसे मृत्यु का इंतजार है, कोई ख़ौफ या दुःख नहीं जैसे उसे जीवन के भयानक कष्टों से मुक्ति मिलने जा रही हो। वो आख़िरी बार अपने भाई बहिनों घर के अन्य सदस्यों से मिलना चाहती है इसलिए सबके पास बारी बारी गई थोड़े पल रुकी,उनको निहारा,मगर कोई भी उसकी इस हरकत को समझ नही पाया,ना ही उनको खबर लगी कि इसने ज़हर खाया।

श्री रेगिस्तान में भटके प्यासे पक्षी की तरह फड़फड़ा रही थी,पानी पीना चाहती थी,मग़र पानी कही ज़हर का असर कम न कर दे इसलिए पी नही रही थी,वो कोई चूक नही करना चाहती थी,भूख नहीं के बहाने से वो रात होते ही बेड पर लेट गई,बेचैन थी उसके शरीर के भीतर कुछ भयानक घट रहा था, मगर उसने चूं तक नही की, करवट बदलती रही ,ज़हर के असर को बर्दाश्त करती रही, काफी देर छटपटाने के बाद श्री की सांस चढी और हमेशा के लिए उतर गई,उसका शरीर निर्जीव निढाल पड़ गया,बेचैनी शांत हो गईं।

श्री शांत हो गई ऐसा लग रहा है आज कई दिनों की परेशानी से मुक्त होकर सुकून से सो गई है ये सुकून उसके चेहरे पर साफ़ झलक रहा था।


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