वो ऐसा ही था।
कुछ लोग मस्त होते हैं, शायद कुछ ज्यादा ही मस्त जिन्हें दीन दुनिया की खबर नही होती,न ही शायद खुद की ही,वो भी ऐसा ही था,बिल्कुल ऐसा, पहले उसकी लाइफ में वो खुद था,उसके कुछ आवारा दोस्त जिसमें लड़के लड़कियाँ दोनो थी और थी उसकी तफ़री भरी ज़िन्दगी, कही खाओ कही रहो कही लेट जाओ वाला हिसाब था,माँ बाप ने स्वच्छंद छोड़ दिया था शायद किशोरावस्था से ही,इसलिए न कोई अंकुश था न कोई नियंत्रण,खुद का भरण पोषण ही एक मुद्दा था जो आराम से हो ही रहा था, वो एक निजी कंपनी में जॉब करता था,मामूली सी नौकरी मगर सैलरी एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त थी,वो चाहता तो सेविंग भी कर सकता था,मगर कहते है ना जीवन मे लगाम होना ज़रूरी है,तब हम थोड़ा जागरूक होकर हकीकत को समझते हैं और खुद के जीवन का उद्देश्य भी,मगर ये तो भैय्या सोचते थे ज़िन्दगी इसी का नाम है, खाओ पिओ ऐश करो।सप्ताहांत में पब-डिस्को,घूमना-फिरना ये इनका फ़लसफ़ा था,यूँ ही ज़िन्दगी गुज़र रही थी,मगर जनाब को महसूस हुआ कि ख़ाली ज़िन्दगी नही गुज़र रही, साथ मे मेरी उम्र भी गुज़र रही है,लोगो के सवाल भी है शादी कब कर रहे हो,मगर एक लेखिका की हैसियत से मेरा कहना तो ये है कि शादी को बाउंडेशन मत बनाओ यार,क्योंकि ये जीवन भर का एग्रीमेन्ट है कम से कम भारतीय समाज में तो,तुम छूट नही पाओगे क्योंकि फिर सवालों के जवाब देने से तो बेहतर है जैसे तैसे निभाओ फिर चाहे खुद फ्रुस्टेट होकर मर जाओ,मगर जनाब शायद महीने के कुछ दिनों में फ्रुस्टेट भी हो रहे थे,क्योंकि काफी यार दोस्त अब शादी शुदा हैं, कुछ तफ़री बाज़ बचे हैं वो भी तफ़री के लिए हमेशा उपलब्ध नहीं रहते, समय के किसी कोने में खुद को अकेला भी महसूस करने लगे,तब क्या करें एक लालसा सी जाग गयी"मेरी भी पत्नी होगी,ऑफिस से थका हारा पहुंचूंगा घर पर,तो गरमा गरम चाय की प्याली थामाएगी,फ़ुर्र से सारी थकान दूर हो जाएगी, अभी घर का हर कोना सुनसान है, तब वो रोज़ मेरा इंतज़ार कर रही होगी,वीकेंड पे घुमने जाएंगे,ज़िन्दगी मस्त हो जाएगी"अभी जनाब सिर्फ एडवांटेज सोच रहे हैं,डिस एडवांटेज की ओर झाँकने की उन्हें फुरसत कहाँ है जी।
कभी भी कोई भी डिसिशन लेने से पहले, समाज को सबसे पहले दरकिनार करो,लोग क्या कहेंगे या सोचेंगें,क्योंकी ज़िन्दगी तुम्हें बितानी है किसी अनजान के साथ,दूसरी बात सिर्फ फ़ायदे मत सोचो, नुकसान भी सोचो, उस परिस्थिति में तुम कैसे मैनेंज करोगे,ज़ाहिर सी बात है एक अनजान से शादी करने जा रहे हो उसके आचार-विचार माहौल परवरिश सब तुमसे अलग होगी, क्या निभा लोगे? या परिस्थितियों से भी जीवन भर के लिए समझौता कर लोगे?अभी जनाब जो कमाते हैं, कहीँ भी बहा देते हैं, उसमे एक निश्चित परवाह की कमी है,सैलरी पन्द्रह दिन में खत्म हो जाती और हर बार बॉस से एडवांस सैलरी मांगनी पड़ जाती है, न कुछ बड़ा समान खरीदा न ही सेविंग की,सैलरी कब आई कब ख़तम हुई कोई ख़बर नहीं, ऊपर से टशन के लिए दो तीन क्रेडिट कार्ड और खरीद लिए,कहीं भी तफ़री करने के लिए जाओ,बिल मैं पे कर्रूँगा, किसी दोस्त को कुछ सामान कोई गडज़ेट खरीदना हैं जनाब के क्रेडिट कार्ड से,कब लूट गए बर्बाद हो गए,कब क्रेडिट कार्ड का बिल आसमान पहुंच गया कुछ ख़बर नाहीबस खुशी इस बात की थी कि लोग मुझे अमीर समझते हैं, इससे बड़ी मूर्खता और क्या हो सकती है। आज उन तफ़रिबाज़ों के नामोनिशान नही जिनपर पार्टियां न्यौछावर होती थी,इसलिए कहते हैं बड़े बुजुर्गों अनुभवी लोगों के हाथ मे अपने जीवन की बागड़ोर होनी चाहिए,आर्थिक मदद भले ही न कर पाएं मगर जीवन के सारथी ज़रूर बन जाएंगे,सारे मार्ग सुगम हो जाएंगे,मगर यहां ऐसा कुछ नही था,कर्ता भी आप धर्ता भी आप,सोए हैं तो सोए ही है,खोए हैं तो खोए ही ही हैं, बस सुबह शाम हो रही है,सांस चल रही है, उदेश्य का क्या करना।बस इसी निरुद्देश्य जीवन का पूरा घटनाक्रम एक निर्णय पर टिका था, वो था शादी एक जीवन भर का बंधन।जनाब ने ठान ली अब तो शादी करनी ही है,बस तब से खोज शुरू हो गई जीवनसंगिनी की,काफी हाथ पैर मारे कई जगह बात बनी और बिगड़ गई, बस ऐसा करते करते एक साल बीत गया,जनाब हार मान बैठे शायद अब इस जन्म में तो जीवनसंगिनी मील ऐसा जान नागी पड़ता। मगर कहते हैं ना जहां पर हम हर मने बैठे होते है,उसी मोड़ से आगे मंजिल होती है,कई लोग वहीं हार कर रुक जाने का फ़ैसला करते हैं तो कई थोड़ा आगे देख लेने में हर्ज़ नही समझते, जनाब भी हार ही बैठे थे फिर भी कहीं एक आस दिल के कोने में बैठी थी,सबसे सस्ता प्लेटफॉम था simplymerry कोई पैसे नही देने बीएस अकाउंट बना लो,उसी से अपनी किस्मत आजमाने रहते थे,एक दिन एक लड़की के प्रोफाइल पे नज़र गई,जनाब को पसंद आ गई चलो यहां भी ट्राई कर लिया जाए, मैसेज भेज दिया लगभग एक घंटे बाद रिप्लाई भी आ गया,जनाब के दिल की घंटी बजी इस बार मौका हाथ से जाने नहीं देना है, हर रिजेक्शन से अब वो ट्रेंड हो चुके थे... इसलिए डेरी में जितना ब्रैंडेड बटर था सब अपनी जुबान पर लगा लिया, लडकी को अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से अट्रैक्ट करने का एक मौका नहीं छोड़ा,
कुछ लडकियां बेवकूफ तो होती ही है जो इस बटर पर पैर जमा कर खड़ी हो नहीं पाती,वो लडकी भी फिसल ही गई।
जनाब की बातें सुनकर उसे ऐसा लगा,"अरे भईया ये तो कलयुग में देवता मिल गया,इतनी मिठास इतनी सौम्यता वो भी लड़को में उसने आज तक नहीं देखी, क्योंकि खुद बेचारी बचपन से तातायों के झुंड में रही थी।
उस मिठास पर जान देने को तैयार हो गई।
मां बाप की ख्वाइश तो हमेशा रहती है कि बेटी को संपन्न और अच्छे घर में दे, पर ये क्या जनाब ने ऐसा मंत्र फूका की लडकी अड़ गई नही ये ही सही लड़का है कमाई तो कोई कभी भी कर सकता है मगर अच्छा व्यवहार मुश्किल से।
मां बाप भाई हार गए।
सबने समझाने की कोशिश की मगर लडकी नहीं मानी सही बात तो ये एच की खिड़की दरवाजे को परदा तो आप हटा सकते है मगर अक्ल पर पर्दा पड़ जाए तो फिर भगवान ही है मालिक।
लड़की की शादी तो करवानी ही थी नही मानी तो मां बाप ने भी कहा,"जा मर तेरी लाइफ तू सम्हाल"
आनन फानन में सब तय हुआ,लडका अपने पिता के साथ एक हफ्ते में लड़की देखने आ गया,लड़के की पिता काफी अनुभवी थे,"ऐसा मौका हाथ से नहीं निकलना चाहिए,उन्होंने हाथों हाथ रिश्ता तय कर दिया"
और एक महीने के अंदर ही शादी की डेट नेक्स्ट मंथ की फिक्स हो गई।
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