हर रिश्ता
कमज़ोर पड़ता है
हर आस्था
एक दिन टूटती है
हर चमक
धूमिल पड़ती है।
हर मुस्कान
कुम्हलाती है।
इंतज़ार भी कभी कभी
चिरकाल के हो जाते हैं।
अपनत्व के पंछी भी
घोसला छोड़ उड़ जाते हैं।
कोई टकटकी लगाए
द्वार पर बैठा है।
मगर आगंतुक
किसी और
सफ़र की तैयारी में जुटा है।
कहीं नवजीवन का
सुरमयी संगीत है
कोई पुराने ताने बानो
में ही उलझा है।
कोई खुद के ही
विचारों से लड़ता है
कोई अपनी ही
ज़िद में अड़ता है।
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