सोमवार, 5 जुलाई 2021

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ग़लतफ़हमी
मैंने बचपन से अब तक ज्यादातर घरों में पति पत्नी के बीच लड़ाई झगड़े ही देखे और सुने हैं मगर ये भी सच है की उन झगड़ो की वज़ह हमेशा बेवजह ही होती थी।
लव मैरिज का तो एक्सपेरिएंस नहीं है तो ठीक ठीक कनक्लूज़न पर पहुंच पाना कठिन है। बात अरेंज मैरिज की हो रही है,पहली बात तो ये माँ-बाप ज्यादातर बेटियों को इतनी फ्रीडम नहीं देते की वो अपना जीवनसाथी चुन लें,वो बेटी को बिल्कुल प्रतिबंधित माहौल में रखते हैं इससे मत बोलना,उससे मत बोलना ये मत करना वो मत। आधा समय तो बेचारी का फूंक फूंक कर चलने में ही निकल जाता है और जैसे ही उसकी पढ़ाई खत्म हुई नहीं उसके रिश्ते की बात शुरू हो जाती है और अभी भी अधिकतर परिवार कुण्डली मैच पर भरोसा करते हैं, नहीं भैया कम से कम अठारह गुण तो मिलने ही चाहिए तब ही विवाह की सोची जा सकती है, और ये कुंडली के चक्कर में कई बेचारे तो बुढ़े हो जाते हैं क्यों? कुंडली मैच नहीं हुई,अरे ज़रा सोचो तो सही जिनकी कुंडली मैच हुई है,उनसे ही पूछ लो उनकी शादी कितनी सफ़ल हो गई आए दिन तो घर मे क्लेश है। क्या फ़ायदा ऐसी कुण्डली मैच का जब आपस मे अंडरस्टैंडिंग ही नहीं है,पूरा वैवाहिक जीवन सिर्फ बेमतलब के झगड़े और गलतफहमियां दूर करने में बीत जाता है। 
बात यहाँ पर आपकी बेटी की हो रही है,आप उसको आज़ाद भी रख़ते हैं और कैद भी,वो कैसे? वो बाहर जाने के लिए स्वतंत्र तो है कठपुतली की तरह, बाहर तो निकल गई मगर नियंत्रण हर समय आपके हाथ में है,बेटी को डरा कर नहीं प्यार से रखना है, उसे खुद भले और बुरे की समझ है।
हमेशा ही बात जब इज़्ज़त सम्हालने की होती है तो ज़िमेदारी बेटी की ही है। ठीक है मान लिया,खुद ही सोचिए पहले कुंडली,चलो जिस नम्बर पे ही मैच हुई फिर लड़की को देखने लोग आएंगे, उनकी आना आवभगत मान- सम्मान, देखने आने का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि रिश्ता पक्का,थोड़ी सी बात ऊपर-नीचे होने पर रिश्ता नहीं बन पाता। वो किस्मत वालियां हैं जिनको बार -बार  इस परीक्षा से नहीं गुज़रना पड़ा हो,या किसी के साथ एक ही बार ऐसा हुआ है तो वाक़ई वो खुश किस्मत है। वरना कई लड़कियां आज भी इस परीक्षा से कई बार गुज़रती हैं। उस दौरान उसका कितना मानसिक शोषण हो रहा है,कौन है जीवनसाथी ये,वो कंफ्यूज़ ही रहेगी  क्योंकि बात फाइनल नहीं हुई,दिल है भइया पेन ड्राइव थोड़े ही है कुछ भी सेव करलो,ये कम ही लोग जानने या समझने की कोशिश करते हैं।
और जिस बेटी पर आप लाख पहरे लगा देते है जिसके दिमाग को अपने तरीके से सोचने की तक इज़ाजत नहीं है।
अचानक से इसके लिए आप एक अनजान जिससे उसकी कुंडली मैच हो गई,उसको अपनी बेटी सौंप देते हैं? आप उसका रहन सहन आचार विचार किसी बात से परिचित नहीं हैं सिवाय उसकी कुंडली के? क्या ये लाख पहरे अपने अमूल्य खजाने में सिर्फ इसलिए लगे थे कि कल आप ऐसे ही किसी को भी सिर्फ कुंडली मिलान के आधार पर यों ही सौप देंगे, कुंडली कितनी ऑथेंटिक है और मिलाने वाला कितना दक्ष है, आजकल तो लोग डेट ऑफ बर्थ भी गलत बता देते है इस तरह चेंज कर दिया जाता है कि गुण मिलान हो ही जाएगा।
 इन सब बातों से मुझे सिर्फ इतना समझ आया कि हमारे जीवन में शादी करने से अधिक महत्वपूर्ण कोई दूसरा विषय है ही नहीं। एक बहुत बड़ा समय सिर्फ शादी करवाने के लिए समर्पित जो जाता है फिर वो छः महीने से पांच साल हो या पूरा जीवन हो।
क्या हम सच मे शादी करने के लिए ही पैदा हुए हैं?  ओह्ह काश हम इतना समझदार बन पाते कि जीवन को सहज रहने देते। कुंडली से ज्यादा मन और भावों का मिलान ज्यादा ज़रूरी है,ज्यादा ज़रूरी है जीवन मे ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति जिसके सिर्फ साथ होने से ही जीवन गुलज़ार है। 
वरना हम सिर्फ जीवनपर्यंत बेसिरपैर के लड़ाई झगड़ो और ग़लतफ़हमियों को ही सुलझाते रह जाएंगे, क्या कर पाएँगे हम समाज के लिए?देश के लिए कुछ,जब हमारे अपने जीवन की जटिलताएं खत्म नहीं होती,हमारी ऊर्जा का एक बहुत बड़ा हिस्सा सामने वाले से," मेरा मतलब ये नहीं था यार,प्लीज 🙏 मेरी बात को गलत मत समझो" ये कहने में ख़र्च हो जाता है।
आजकल लोग वैसे ही कभी कुंडली कभी किसी और कारण से ज्यादा उम्र में शादी करते हैं,फिर बाकी की उम्र वो एडजस्टमेंट करते हैं और क्या करेंगे चारा क्या है।
क्या प्रोडक्टिव कर रहे हैं हम ?अपने जीवन में,जवान होते ही विवाह की चिंता,खोज..ख़ोज..ख़ोज, कुंडली मिलान ख़ोज  पूरी,अब नई उड़ान .अब बाकी का जीवन एडजस्टमेंट, क्लेरिफिकेशन।
सच सिर्फ इतना है कि दुनिया मे हर कोई खुश रहना चाहता है,हर दिन नए नए साधन ढूंढता है क्या पता इससे खुशी आ जाए,क्या पता इससे मन ठीक हो जाए। जड़ में जाईये तो सही दुःख परेशानियां अगर हैं तो ये आई कहाँ से?
ये जटिलताएं बनाई किसने ?इतने बेतुके कायदे कानून किसने बनाए?
आप क्यों वो करना चाहते है जो आपके जीवन मे थोपा गया है,वो आपका सहज गुण नहीं, आप तो बस जो लकीर खींची है उस पर चल रहे हैं। 
जीवन को सहज रहने दो,उसे बाध्य मत करो।
उसका दम न घोटो। जीवन का उद्देश्य हमारे जीवन का उद्देश्य शादी करके मेंटल टॉर्चर होना नहीं है, ठीक है आपकी खुशी है तो आप करिए। मगर किसी को,इसलिए बाध्य न करें कि समाज लोग क्या कहेंगे। कृपया समझो जीवन जीने के लिए है। लड़ाई-झगड़े गलतफमियों के निबटारे के लिए नहीं।
बस इसी तरह पूरा जीवन निकल जाएगा।
कुछ कर पाऐं किसी के काम आ पाऐं,किसी का जीवन सवार  पाऐं उसके लिए हमारा मानसिक रूप से स्वस्थ होना बहुत जरुरी है।
हम लड़ झगड़ कुड़ कर किसका भला कर पाएंगे? खुश होंगे तभी तो खुशी बांट पाएंगे।

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