ओह्ह समय के साथ
हम कैसे पत्थर से हो गए।
खुशियां आती हैं।
छूती है और चली जाती हैं
हम महसूस नहीं कर पाते
ओह्ह समय के साथ
हम कैसे पत्थर से हो गए।
जो दुवाओ में माँगा
जो हसरतों में चाहा
वो सबकुछ,
जीवन मे पाया।
मगर उस खुशी के लिए
हम सचेत नही रहे।
ओह्ह समय के साथ।
हम कैसे पत्थर से हो गए।
अजीब बात ये है
स्वभाव की
वो सिर्फ दुख के लिए ही
सचेत है।
वो जो महसूस कर पाता है
वो दुःख ही है दर्द ही है।
खुशी के लिए मन
संवेदन हीन है।
ओह्ह समय के साथ
हम कैसे पत्थर से हो गए।
Nice
जवाब देंहटाएं