बुधवार, 30 जून 2021

kahani/hindi/best/ सच कुछ और ही पार्ट-४

 बोलते बात बहस में बदल गई, बस आज से एक अन्त हीन बहस छिड़ी वो बहस न्यायालय के दरवाजे पर खत्म हुई।
कागज़ी कार्यवाहियां शुरू,ये अनसुलझी लड़ाइयां जब शुरू होती हैं, भले ही ये कागज़ों पर खत्म हो जाएं, मग़र आपके जीवन से खत्म नही होती,ये आपके दिल दिमाग मे जीवन पर्यंत रहेंगी और बार बार चोट पहुंचाएंगी।
दूसरी बात आप दोनों चाहे अलग हो जाए मग़र बीच में  आपकी मासूम सन्तान पिस जाती हैं, जिसे माँ और बाप दोनों चाहिए। छोटे से बच्चे का संसार ही आप हैं,वो नही कह पाएगा आपसे की वो कितना आहत है अंदर से, आप उसे महसूस भी नहीं कर पाएंगे,क्योंकि आप अपने इगो में हैं,बाल मन बड़ा ही कोमल होता है,इस समय लगे मानसिक आघात से बच्चे जीवन भर नहीं निकल पाते,वो इमोशनली वीक हो जाते हैं।  इस निर्णय को लेने में हम उस मासूम की सहमति नही ले पाते और वो इतना बड़ा भी नहीं कि कोई राय दे सके।
प्रायः लोग कोशिश यही करते हैं कि उनके आपस मे भले ही कितना ही मनमुटाव हो पर वो पब्लिक न हो। मग़र यहाँ यतीश पहले ही मीडिया के सामने पेश हो गया,अपना पक्ष रखते हुई उसने निधि पर कई लाँछन लगा दिए,जो बात घर की चहारदीवारी में थी वो सरेआम हो गई। इज्ज़त की धज़्ज़िया उड़ गई।
ऐसे मे निधि क्यों पीछे रहती उसने भी यतीश का काला चिठ्ठा लोगो के सामने खोल दिया,कोई बात अब दोनों के बीच की नही थी,सब पब्लिक थी।
आम लोग हो तब भी बात एक शहर तक सीमित रहती है,मग़र आप सेलिब्रिटी हैं तो फिर,बात हर जुबान पर आ जाती है,जितना बड़ा नाम उतना बड़ा बदनाम ऐसा ही कुछ इस रिश्ते में भी हुआ।
अब बचाने को उनके रिश्ते में कुछ नही है क्योंकि हर कोई जानता है,फाइनल डेस्टिनेशन है दोंनो का सेपरेशन।
और हममें से हर कोई जानता है जब ये कोर्ट कचहरी के चक्कर, तारीख लगना, कोर्ट में पेश होना इन सारी चीजों में मेन्टल एक्सप्लॉइटशन ज्यादा होता हैं, रिश्ते हम ख़ुद बनाते हैं उन्हें तोड़ने कचहरी जाते है।
जिसने ये सब झेल होगा वो बेहतर समझेगा ये कोर्ट कचहरी में लोग  कितनी मानसिक शांति खो बैठते हैं। आप ख़ुद ही सोचिए। कितना सही है डिवोर्स?
निधी और यतीश ने बड़े खूबसूरत जज्बातों के साथ अपना जीवन शुरू किया और अंत ऎसा हुआ।
आज वो दोनो तारीख लगने पर कोर्ट जाते हैं, बस ये ही सिलसिला पिछले कई महीनों से चल रहा है। उनको पता नहीं कौन सी तारीख आख़िरी होगी,कब मिलेगी कोर्ट से छुट्टी।
 कोर्ट को छोड़ दीजिए और भी बहुत बड़े मुद्दे हैं समाज मे जो कॉर्ट को निबटाने हैं, मगर हम ही हैं जो अपने मामूली से झगड़ो को भी उन मुद्दों में शामिल कर देते हैं, एक ज़िंदगी है मगर लोग एक रिश्ते में खुश नहीं रह पाते, रिश्तों के साथ एक्सपेरिमेंट क्यों क्या हमारे जीवन का उद्देश्य सिर्फ इतना ही था?
निधि और यतीश के पास एक दूसरे को देने के लिए नफ़रत के सिवा कुछ नहीं।कहदो की वो शुरुआत झूठी थी या ये अंत झूठा हैं, निकल पड़े हैं दोनों एक अन्त हीन सफ़र की ओर। सेपरेशन कब होगा नहीं पता मग़र अब दोनों लगे हैं गव्वाह और सबूत जुटाने में ताकि खुद को सही साबित कर सकें ।
ज्यादातर रिश्तों की आज ये ही कहानी है,मगर इन सब बातों में जो अहम हैं वो ये की" जवानी में  जब कोई सक्षम है सुंदर है तब किसी का साथ देना कोई बड़ी बात नहीं,बड़ी बात है जवानी में रिश्ता बनाकर कर साथ साथ बूढ़े हो जाना" । रिश्तों की खूबसूरती कभी टूटने में नहीं है,रिश्ते तो वो ही हैं जो ताउम्र जुड़े हैं उन्हें किसी सिथेंटिक ग्लू की आवश्यकता नहीं।

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