बुधवार, 18 सितंबर 2019

लम्हा लम्हा🌎

यूं ही निकाल देते है,
हम अपनी ज़िन्दगी,
कुछ गैरजरूरी कामों में,
और कुछ गैरजरूरी बातों में,
मगर भूल जाते हैं,
लम्हा लम्हा खिसक रही है
ज़िन्दगी।
लम्हा लम्हा उम्र की
परतें बढ़ रहीं हैं
विचारों में नहीं
कामों में नहीं
मगर चेहरे पर
धीरे धीरे झलकने
लगी है परिपक्वता
सामंजस्य बैठाना है
हमें चेहरे-विचारों
और कर्मो की परिपक्वता
के बीच।
हमें परिपक्व होना
है उतना ही
जितने हम अपनी उम्र से
परिपक्व हो रहे हैं।
क्योंकि पशु नहीं हैं हम
मनुष्य हैं।
हमारे उत्तरदायित्व
कुछ और भी हैं।
तो फिर क्यों हम,
सिर्फ पेट भरने को जिएं?


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