कुछ ऐसे भी लोग होते हैं,
अंदर से दर्द सहते हैं,
बाहर से हंसमुख रहते हैं,
भरी हुई आंखों में वो,
मुस्कुराने की कोशश करते हैं।
कुछ ऐसे भी लोग होते हैं।
तन्हाइयों में रोते हैं,
आंसुओं में सोते हैं,
जमाने के डर से वो,
भावों को दबाया करते हैं।
कुछ ऐसे भी लोग होते हैं।
कुसूर कुछ नहीं है उनका,
फिर भी भीतर से घुटते रहते है,
अंदर से टूटे हुए हैं वो,
उन्हें लोग,बाहर से ज़िन्दा कहते हैं।
कुछ ऐसे भी लोग होते हैं।
उनकी भी मजबूरी है,
कुछ अपनों से दूरी है,
गमों को भुलाने की कोशिश में,
वो खुद को भुलाए रहते हैं।
कुछ ऐसे भी लोग होते हैं।
मन को शंका में डुबोए रहते हैं,
हर पल कहीं खोए रहते है,
अंतर्मन के भावावेग को वे,
अश्कों में भिगोए रहते हैं।
कुछ ऐसे भी लोग होते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें