गुरुवार, 12 सितंबर 2019

कभी रिमझिम☔कभी तबाही🌊


बड़े समय से सोच रहे थे,
बादलों 🌥को नभ में खोज रहे थे।
प्रकट होगा कब,नन्हा सा बादल☁,
धरती मां पर बरसेगा🌧 किस पल।
सूख रहे थे धरती आंगन,
तड़प रहे थे वन
🌲🌲🌲🌲
और उपवन
🌳🌳🌳।
बरसेगा कब नन्हा सा मेघ,
बढ़ेगा कब नदियों का वेग🌊।
सूर्य🌞ने,उमस में किया इज़ाफ़ा,
तन मन सबका गरमी से कांपा।
सब गरमी में उबल रहे थे🌡,
बढ़ते तापमान में जल🔥 रहे थे।
तभी अचानक हां अचानक,
सौर मंडल में हुई गर्जना🌩🌩⚡⚡
घटाओं ने आरम्भ किया,
बरसाना हां बरसाना🌦🌧🌨
हाय बारिश उफ़ बारिश⛈⛈,
कैसी हुई प्रचंड बारिश🌪
रुकने का नाम नहीं लेती,
रोद्र रूप धरती बारिश।
बस्तियां भीगी घर भीगे,
और भीगी हवेलियां
गांव भीेगे देहात भीगे,
भीगी शहर की गलियां।
जंगल भीगे,बगीचे भीगे,
भीगा पेड़ का पत्ता पत्ता।
सज्जन भीगे,शराबी भीगा,
भीगा गली का कुत्ता कुत्ता।
अख़बार समाचार चैनलों की,
बनी सुर्खियां।
गरजती,उफनती
घरों में घुसती नदियां।
बिजली ठप की,
सड़क तोड़ डी,
भंग किया संचार माध्यम🌀☎📞📱,
यात्री बसों ट्रेनों में व्याकुल,
जल ही जल हर तरफ़ कायम।
हाय तबाही कैसी फैलाई,
पानी रेे पानी।
बरसात के बहाने,
कई जानें ले गया पानी।
मगर यह प्रकृति की भूल कहां हैं?
तबाही का जिम्मेदार,
मनुष्य 😈यहां है।
छोटे से स्वार्थ की भरपाई को,
नज़रंदाज़ करता रहा है,
सबकी भलाई को।

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