बात थोड़ी अजीब है मगर सच है,हम कभी भी वर्तमान को अच्छी तरह से नहीं बिताते,हम हमेशा या भविष्य की चिंता में या अतीत की यादों में जीते हैं, इन दो कलों के बीच का हमारा बहुत महत्वपूर्ण समय वर्तमान गुम हो जाता है,ये समय आज जिसके बीत जाने का हमें इंतजार है कल यही अतीत की याद बनकर हमें अच्छा लगने लगेगा,फिर हमें चाहत होगी कि वो समय लौट के आ जाए,फिर उस पल को हम जी लें और यही वर्तमान तो हमारा भविष्य था,जिसमें जाने की हमे चाह थी,ये हम अक्सर भूल जाते हैं,फिर वही इच्छा अतीत में वापस जाने की या भविष्य में पहुंच जाने की,ऐसा ही कुछ होता है वो बचपन जिसमें हम अक्सर ये सोचा करते थे कि हम कब बड़े होंगे और छोटी उम्र में जब ये पता चला कि अठारह में बालिग होते है,तब से कितने लंबे समय अठारह साल होने का इंतजार किया,वो जो जल्दी से बड़े होने की चाहत थी उसमें बचपन के वो दिन बड़े लंबे लगते थे,देखो क्या हुआ बड़े हो ही गए हम छोड़ आए उस बचपन को अतीत में,बस अब चाह रखते हैं कि लौट जाएं उस बचपन में,ये मूर्खता नहीं है तो और क्या है?चलो बचपन में हमें इतनी समझ ही कहा थी की हम सोचते कि वो समय अनमोल है,बड़े होने पर जब समय है हम उसको भरपूर जी नहीं पाते,बीत जाए तो फिर उसकी यादों में खो जाते हैं, हां बात अगर बचपन कि हो तो बचपन सब का ही बड़ा प्यारा और मासूम होता है,चाहे तब हमें उसकी कीमत पता ना हो,मगर आज समझें तो वो सबसे कीमती समय बीत गया,मेरा बचपन तो बहुत खट्टी मीठी यादों का ख़ज़ाना है, सामान्य बच्चों की तरह मेरा मन भी कभी पढ़ने में नहीं लगा,बाकी सारे काम मुझे प्रिय थे, कॉमिक्स पढ़ना,फिल्म देखना,दिन भर घूमना, धमाचौकड़ी मचाना ये हमारे बचपन के शौक थे,किताब पढ़ते समय सबसे छुपा के किताब के अंदर भी कॉमिक्स छुपा के पढ़ना और सब लोगों को ये लगना की बहुत पढ़ाई हो रही है, उन दिनों कहानी पढ़ना और सुनना बहुत ही रोमांचक था,दूरदर्शन में हर रविवार को हिंदी फिल्म आती थी,मै कभी भी कोई फिल्म देखना नहीं छोड़ सकती थी,पर दुर्भाग्य से कभी उस समय बिजली गुल हो जाया करती थी तो मै बहुत ही दुखी हो जाती थी,हाथ जोड़ कर भगवान से सभी बच्चे प्रार्थना करते पूरी श्रद्धा के साथ"हे प्रभु,बिजली देदो" कभी कभी आ भी जाती थी,मगर जिस दिन बिजली नहीं आती तो मै पूरे विश्वास के साथ मुंह ढक कर सो जाया करती थी, कि सपने में फिल्म देख लूंगी और ये बात बिल्कुल भी झूठ नहीं है कि मै सपने में फिल्म देख भी लेती थी,ये फिल्म देखने का जुनून ही तो था और मन में भरोसा था कि सपने में फिल्म देखना संभव था,एक और प्रिय शौक में था कैरम खेलना मै अक्सर अपने भाइयों से हार जाती थी,और जैसे ही खेल अन्तिम पड़ाव तक पहुंचता मै हारने वाली होती थी उससे पहले ही मै सारी गोटिया मिला कर खेल ख़तम कर देती,अपनी हार मुझे बर्दाश्त नहीं थी,वहीं कहानी सुनने का शौक,अक्सर बड़ी बुआ हमारे पास आती थी कुछ दिनों रहने को,सच में वो बचपन ही तो था जब मेहमानों के आने पर बहुत खुशी होती थी और हम चाहते थे कि वो लंबे समय हमारे साथ रहें,बस बड़े होते ही हमें वो सारी आदतें बुरी लगने लगती हैं जो बचपन में पसंद थी,हम बुआ के साथ ही ज़िद करके सोते थे हर रात सोने से पहले बुआ से हम कहानी सुनते थे,मुझे अच्छे से याद है,वो बातें जिन पर आज यकीन करना थोड़ा मुश्किल है,वो मनगढ़ंत बातें थीं या उनमें कोई सच्चाई थी ये बुआ को ही पता होगा,मगर सच ये है,छोटे थे तब सौ फ़ीसदी उन बातों पे भरोसा करते थे,तब भूत प्रेतों की बातें बहुत प्रचलित थी,मैंने वास्तविकता में तो कभी भूत देखा नहीं,मगर किसी ने बताया तो मैंने पूरा विश्वास किया,भूत प्रेत के किस्से कहानियां सुनने का मुझे बड़ा शौक था,पर सुनकर डर भी बहुत लगता था और ये भूत प्रेत का डर दिमाग में ऐसा बैठ गया कि आज तक मुझे अंधेरे में सोने की हिम्मत नहीं पड़ती,बचपन तो निकल गया मगर डर नहीं निकला,एक दिन बुआ ने बताया "मेरे ससुर जी की अंतिम घड़ी थी,उसी दिन रात वो कुछ ज्यादा बीमार थे हमें समझ आ गया था आज इनकी आखिरी रात है,उसी रात की बात है,हम लोग अपने कमरे में लेटे हुए थे, नीद आंखो से कोसो दूर थी,देर रात लगभग बारह एक बजे का समय था,रात को हमें ढोल नगाड़ों की आवाज़ सुनाई देने लगी और सैकड़ों पद चाप हमारे घर की ओर आते हुए से लगे, कदमों की आहट हमारे बड़ी करीब आ चुकी थी,मैंने चुपके से फूफा जी से कहा,ससुर जी को लेने यम दूत आ चुके है,तभी मुझे महसूस हुआ कदमों की आहट हमारे नज़दीक आ रही है,इससे पहले कि कुछ सूझता की मुझे अपनी टांगो में मजबूत हाथों की पकड़ महसूस हुए और उसने खींच कर हमको बिस्तर से नीचे गिरा दिया,मै ज़ोर से चिल्लाई ओ मां,हमको खींच दिया,तभी अंधेरे में एक भारी आवाज़ गूंजी," ओह सॉरी कहां जाना था कहां आ गए" उसके बाद कमरे में सुनसानी छा गई हम अवाक से रह गए,जमीन से उठे डर के मारे हमारी घिघिया बंध गई,उसी सुबह चार बजे पता चला कि ससुर जी के प्राण जा चुके है और रात की घटना बिल्कुल सही थी। ऐसे ही बुआ ने हमें सैकड़ों घटनाएं सुनाई मगर ये घटना मेरे दिमाग में घर कर गई,मुझे पक्का विश्वास था बूढ़े लोगों की आत्मा को यमदूत लेने आते है उनकी मृत्यु के समय,ये घटना बड़ी दिलचस्प और रोमांचक थी,मगर भूत प्रेत की बाते सुनना जितना रोमांचक होता था,अकेले में उतना ही डरावना,इसी वजह से मै अंधेरे में अकेले नहीं रह पाती थी,थोड़ी देर के लिए अगर बिजली गुल हो जाए तो,सारी घटनाएं आंखों के सामने घूमने लगती,बहुत बार तो मुझे खुली आंखो में भूत दिखने लगते,ये अजीब बात है कि मुझे आज भी अंधेरे से डर लगता है, हालांकि भूत प्रेत के अस्तित्व से मै इत्तेफाक नहीं रखती फिर भी,बुआ तो कुछ दिन रह कर चली गई,मगर वो कहानियां अक्सर दिमाग में घूमती वो भी रात के वक़्त,तब मै अपनी अम्मा (दादी ) के साथ एक कमरे में सोया करती थी दोनों के बिस्तर अलग थे,अम्मा तो लेटते ही खरराटे मारने लगती,मै सारी रात तारे गिनती, डर से नींद आती नहीं थी,कभी कोई परछाई कभी कोई आकृति ही नज़र आती थी पूरा बचपन रात की नींद को तरस गया और एक सबसे बड़ा डर जो था वो ये कि अम्मा को लेने यमदूत आएंगे और मेरी टांग खींचेंगे इस डर ने मुझे कभी सोने नहीं दिया और सच ये है कि अम्मा का स्वर्ग वास अभी हाल ही में हुआ और मै बीस साल पहले ये सोचती थी,इससे अजीब और क्या हो सकता है।
बस बचपन के दिन डर में गुज़र गए। आज भी मै अंधेरे में सो नहीं सकती जबकि भूतो के साथ मेरा कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है,जितनी भी घटनाओं पे मुझे भरोसा है वो सब सुनी सुनाई है,जिनकी कल्पना मैंने गहराई में जाकर की है।