गुरुवार, 22 अगस्त 2019

आँखिरी इम्तहान

ज़िन्दगी की भीड़ में,
दुश्वारियों में
तुम अकेले हो
बस तुम्हारा,
साहस ही
तुम्हारा संबल है
सब का
कोई ना कोई,
सहायक है,
सब का,
कोई ना कोई ,
सहारा है।
वो कुछ ना भी करें,
तो भी उठ जाएंगे।
मगर ए मासूम राही,
तुम्हें खुद के,
बल से उठना है।
तुम ही अपना,
सहारा हो
तुम्हे खुद की,
शक्ति को समेटना है।
सब बीज,
किसी ना किसी ने,
बोए हैं,
वो पेड़ बने या नहीं,
मगर तुम ही ऐसा बीज हो,
जो खुद के लिए हवा,
और खुद के लिए पानी है।
तुम अंकुरित हो गए,
विषम परिस्थिति में,
ये कोई संयोग तो नहीं?
वास्तविकता है।
आज तुम बलिष्ठ पेड़ हो।
थोड़े फ़ल लगने बाकी हैं।
सफ़र लगभग तय है,
मंजिल भी करीब है,
यकीन करो,
तुम्हारे सब्र का बस,
एक छोटा सा इम्तहान
ही अब बाकी है।
देखो लक्ष्य भी
अब पास ही है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

स्त्री एक शक्ति

स्त्री हूं👧

स्री हूं, पाबंदियों की बली चढ़ी हूं, मर्यादा में बंधी हूं, इसलिए चुप हूं, लाखों राज दिल में दबाए, और छुपाएं बैठी हूं, म...

नई सोच