ज़िन्दगी की भीड़ में,
दुश्वारियों में
तुम अकेले हो
बस तुम्हारा,
साहस ही
तुम्हारा संबल है
सब का
कोई ना कोई,
सहायक है,
सब का,
कोई ना कोई ,
सहारा है।
वो कुछ ना भी करें,
तो भी उठ जाएंगे।
मगर ए मासूम राही,
तुम्हें खुद के,
बल से उठना है।
तुम ही अपना,
सहारा हो
तुम्हे खुद की,
शक्ति को समेटना है।
सब बीज,
किसी ना किसी ने,
बोए हैं,
वो पेड़ बने या नहीं,
मगर तुम ही ऐसा बीज हो,
जो खुद के लिए हवा,
और खुद के लिए पानी है।
तुम अंकुरित हो गए,
विषम परिस्थिति में,
ये कोई संयोग तो नहीं?
वास्तविकता है।
आज तुम बलिष्ठ पेड़ हो।
थोड़े फ़ल लगने बाकी हैं।
सफ़र लगभग तय है,
मंजिल भी करीब है,
यकीन करो,
तुम्हारे सब्र का बस,
एक छोटा सा इम्तहान
ही अब बाकी है।
देखो लक्ष्य भी
अब पास ही है।
छू सकूँ किसी के दिल को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। अहसास कर सकूं हर किसी के दर्द को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। जीते जी किसी के काम आ सकूँ तो क्या बात है। kavita in hindi, hindi kavita on life, hindi poems, kavita hindi mein on maa
गुरुवार, 22 अगस्त 2019
आँखिरी इम्तहान
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