रक्षा बंधन सभी त्यौहारों में मेरा सबसे प्रिय त्यौहार है क्योंकि इस त्यौहार में ना होली की जैसी हुड़दंग है,ना दीवाली जैसे धमाके है, रक्षा बंधन पवित्रता और प्रेम का प्रतीक है, भावनाओं से जुड़ा हुआ है,ये ही केवल ऐसा त्यौहार है जिसको मनाने का उत्साह मुझमें बचपन से है।
ये बात तब की है जब मै अपने चाचा ताऊ के साथ रहकर अपने ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही थी। साल में सिर्फ दो बार ही मुझे घर जाने का अवसर मिलता था, शीतकालीन अवकाश और ग्रीस्म कालीन अवकाश,तब भी मै अपने भाइयों और पिता से नहीं मिल पाती थी, मै मां के साथ छुट्टियां बिताती थी फिर वापस चली आती थी,जबकि मेरे दोनों भाई मेरे पिता के साथ दूसरे शहर में रहकर पढ़ाई करते थे,किसी ना किसी वजह से वे दोनों मेरे अवकाश के दौरान,घर नहीं आ पाते थे, मन तो बहुत होता था, कि वे दोनों भी यहां होते तो हम साथ बैठकर खाना खाते,बात करते,बहुत इच्छा थी मेरी,मगर ऐसा कभी नहीं हो पाया, सामान्य भाई बहिनों की तरह हम भी लड़ाई झगड़े लिए मशहूर थे,जब भी साथ होते थे हमारे बीच मतभेद ज्यादा रहते थे,फिर भी ऐसा नहीं था कि हमारे बीच प्यार ना हो भावनाएं ना हो बस ये कहा जा सकता है बचपन से जिस माहौल में हम पले बड़े,जैसी हमारी परवरिश रही उसमें हमें जताना नहीं सिखाया गया,हमारे मन में जो भी था बस मन में ही था, ना ज़ाहिर हुआ,ना ही किया गया। बस ये मन में रखने की जो आदत रही यही रिश्तों में दूरियां बढ़ाती हैं,हम समझ भी नहीं पाते कि सामने वाले की हमारे लिए क्या भावनाएं हैं,प्यार बांटने और जताने की वस्तु है ना कि छुपाने की। चलो जो भी है मुझे ये समझ नहीं आता वो कौन सा माहौल रहता है जिसकी वजह से हम अपने लोगो पर गुस्सा, नफ़रत सब उड़ेल देते हैं,जब जी में आया उन्हें फटकार देते हैं दुत्कार देते है अपमानित भी कर देते हैं,जिस मन से इतने सारे भाव निकल कर सामने आ रहे हैं,उसी मन में उन लोगो के प्रति हमारा प्रेम भी दुबका पड़ा है और वो किसी भी हाल में नहीं बरस पाता,अगर प्रेम निकल कर बरस जाए तो फिर शेष भावों का काम ही क्या,मगर हमसे ये नहीं हो पाता,शायद प्रेम को जताने में,अपनो को प्यार से गले लगाने में,या उनके सिर पर प्यार से हाथ फेरने में हमें शर्म महसूस होती है,मगर क्रोध नफ़रत दिखाने में किसी को दुत्कारने में हमें शर्म महसूस नहीं होती,बस यही विडंबना है, माफ़
कीजियेगा मै अपने विषय से भटक गई,बात रक्षा बंधन की हो रही है,तो रक्षा बंधन हमेशा से अगस्त के महीने में ही पड़ता है,जुलाई से ही विद्यालय कॉलेज खुलते हैं नया सत्र शुरू होता है और नई कक्षा नया पाठ्यक्रम सब कुछ नया,फिर से नया उत्साह,उसी बीच पड़ता है रक्षा बंधन,बस एक दिन की छुट्टी,सच बताऊं बड़ा मन होता था कि मै अपने भाइयों को राखी बांधने जाऊं,बस कोई इजाजत दे देता तो मै चली ही जाती बस एक घंटे का ही सफ़र था बस से,एक दो बार हिम्मत करके अपने चाचा को बोला भी तो उन्होंने साफ मना कर दिया, "क्या होता है रक्षा बंधन? ये तो हर साल आता है,आने जाने में समय बरबाद वो अलग,कोई ज़रुरत नहीं हैं जाने की" अपनी जगह वो भी सही थे,वो मेरी भावनाएं क्या समझते,कितने प्यार से कितनी प्यारी राखियां ली,पर उनको अपने हाथ से अपने भाइयों के हाथ में नहीं बांध सकी,ऐसे ही हर साल रक्षा बंधन निकल जाता और मै आंखो में आंसू दबा कर मन मसोस कर रह जाती,मगर उन आंसुओं को देखता कौन और उस भावना को समझता कौन? अगली बार फिर रक्षा बंधन आया,इस बार बाई पोस्ट राखी नहीं भेज पाई थी, ताऊ जी का हरिनगर जाने का कार्यक्रम बना,उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि वो मेरी राखी मेरे भाइयों तक पहुंचा देंगे,मैंने राखी लिफाफे में अच्छे से बंद करके उनको थमा दी और मै बहुत खुश थी कि मेरी राखी मेरे भाईयो को आज रक्षा बंधन के दिन मिल जाएगी,वो कैसी खुशी थी कि जो शब्दों में बयां नहीं होती,वो कैसे भाव थे,जो कहे नहीं जा सकते, पूरा दिन अच्छा बीत गया मेरी राखी जो चली गई थी मेरे भाइयों के पास, रात बड़ी देर से ताऊ जी वापस आये और साथ में संदेश की जगह पर मेरा राखी का लिफ़ाफा वापस लाए और बोले हम दिन भर बहुत व्यस्त रहे,मौका नहीं मिला राखी पहुंचाने का,यह कहकर वो चले गए और मैं लिफ़ाफा पकड़े भौचक्की सी खड़ी रह गई,थोड़ी देर तक मै भाव शून्य रही,जैसे ही सामान्य हुई तो मेरे भाव उमड़ घुमड़ कर मेरी आंखो से बहने लगे,जिन्हें ना किसी ने देखा ना महसूस किया ना समझा,कितना आसान था राखी वापस ले आना और दो शब्दो में अपनी मजबूरी जता देना,वो ताऊजी थे,मेरा क्या हौसला या मेरी क्या मजाल कि मै उनसे कुछ भी बोल पाती या अपने जज्बात कह पाती या दहाड़ मार कर रो जाती,मेरी कोई हिम्मत नहीं थी कि उनको कुछ बोलूं, बस इतना ही बोलूंगी एक बहन के लिए राखी और ये त्यौहार अनमोल है,ज्यादा नहीं बस उसकी भावनाओ को समझें,उस भावना का सम्मान करें राखी सिर्फ धागा नहीं होता,उसमें बहन की भावनाएं,अरमान और प्यार छुपा है।किसी भी परिस्थिति में उस भावना को नजंदाज ना करें,समय मिले और संभव हो सके तो रक्षा बंधन पर अपने बहन के हाथों राखी ज़रूर बंधवाए,क्योंकि गिले शिकवे सब एक तरफ़ और रक्षा बंधन एक तरफ़।
छू सकूँ किसी के दिल को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। अहसास कर सकूं हर किसी के दर्द को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। जीते जी किसी के काम आ सकूँ तो क्या बात है। kavita in hindi, hindi kavita on life, hindi poems, kavita hindi mein on maa
शनिवार, 17 अगस्त 2019
रक्षा बंधन🎊♥
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