कुछ नहीं रहता
मगर रह जाते हैं
ये शब्द,
साथ हमारे,जीवनपर्यंत।
कभी मरहम की तरह
सहला जाते हैं।
तो कभी तीर की तरह
चुभ जाते है।
अवश्य ही क्रोध में,
या घृणा में,
जो हम कह जाते हैं,
किसी निर्दोष से,
किसी मासूम से,
भले ही राहत मिलती हो, हमें
पल भर को,
इस कृत्य से,
मगर भूल जाते हैं हम।
या सोचते ही नहीं।
कितने गहरे,
किसी के अंतर्मन में,
जा चुभे,वह विष बुझे तीर।
क्रोध में,घृणा में
जो हम बोल गए, और
कुछ ही पलों में भूल गए
वहीं शब्द,
किसी के हृदय में,
जीवाश्म बने,दबे हैं,कई परतों में
जो हर खुदाई में, बार-बार
बाहर निकलते हैं,और
देते हैं परिचय,
आपके दुर्व्यवहार का।
आज हमें निभाना किससे है?
या किसे फुरसत है,
व्यस्त ज़िंदगी में,
किसी से मिलने की,
या साथ बैठने की,
हां यही शब्द हैं,
जो निभा रहे है,
इस दौर में,सारे रिश्ते और
सारे नाते।
बस इन्हीं को ही तो ,
हमें सम्हालना है।
मिठास ना बन सके,
ना सही।
मगर ज़हर बन के,
किसी की ज़िंदगी में,
कभी ना घुलें।
छू सकूँ किसी के दिल को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। अहसास कर सकूं हर किसी के दर्द को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। जीते जी किसी के काम आ सकूँ तो क्या बात है। kavita in hindi, hindi kavita on life, hindi poems, kavita hindi mein on maa
रविवार, 7 जुलाई 2019
शब्द
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
स्त्री एक शक्ति
स्त्री हूं👧
स्री हूं, पाबंदियों की बली चढ़ी हूं, मर्यादा में बंधी हूं, इसलिए चुप हूं, लाखों राज दिल में दबाए, और छुपाएं बैठी हूं, म...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpqVZeeQlTHic1PIw3RVB1OpNuOO4udSaG-tQQtvjV8kL5tdQIbKtVS4t9YydHRVqvs7IubT0gcbKaWqkAVEeSBId_cz0OiVywRVjDRkzxvAE2MGa0MPCyONjuermfRdv1-dgVHk3EdJz8/s1600/1624182545498693-0.png)
नई सोच
-
क्यों मन तुम्हारा भटक गया है? उस अदृश्य और कल्पित के चारों ओर, सिर्फ भ्रमित ही जो करता हो, उद्गम भी नहीं जिसका, नहीं कोई छोर। क्या...
-
गली में उछलते कूदते बच्चे से न जाने कब मैं बड़ा हो गया। आज आईने में खुद को देखा तो पता लगा मैं बूढ़ा हो गया। मुझे तो सिर्फ और सिर्फ वो बचपन य...
-
स्री हूं, पाबंदियों की बली चढ़ी हूं, मर्यादा में बंधी हूं, इसलिए चुप हूं, लाखों राज दिल में दबाए, और छुपाएं बैठी हूं, म...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें