शनिवार, 6 जुलाई 2019

रिश्ते आज

दो पल के,आकर्षण में
कुछ रिश्ते बनते है।
जीवनपर्यंत, साथ चलने को
मगर कितने रिश्ते,चल पाते है?
और कितने ठहर जाते हैं?
कुछ परिस्थितियों के
बोझ से,
तो कुछ,दूसरे की सोच से
दब जाते हैं।
नहीं स्वीकार कर पाते वो,
आधिपत्य किसी और का।
बस यहीं,रिश्ते दम तोड़ जाते हैं
नाज़ुक से धागे,टूट जाते हैं।
एक तरफ़ उम्मीद हो
और दूसरी तरफ़ तिरस्कार,
इसी खींचतानी में,
बातों के,
सिलसिले रूठ जाते है।
ना वो हमें समझ पाते,
ना हम उन्हें समझ पाते,
तब दौर सिर्फ,
दोषारोपण के रह जाते है।
ना वो थम पाते हैं,
ना हम रुक पाते है
फिर भी नाजाने,किस उम्मीद में
निभाते हैं।
बार- बार लौट आते हैं।
फिर क्या? वहीं घृणा!
वहीं तिरस्कार?
अब लगता है शायद
थमेगा ये कारवां भी
ना दोष रहेंगे,
ना दोषारोपण,
ना कोई अपेक्षा
ना बदले में उपेक्षा
रहेंगी तो बस
दो
दिशाएं।
एक में तुम
और एक में हम।
देखो अब ना कोई गिले,
ना कोई भरम,
ना कोई शिकवे,
ना कोई ग़म।

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