आइए आज कुछ चर्चा करें। कुछ गहरी नहीं कुछ गम्भीर नहीं,बस सीधी सी बात करें, इंटरनेट के रंग में हम सभी रंगे हैं,आज कहीं भी जाओ लोग स्क्रीन में घुसे है। आपको नहीं लगता ये समस्या कितनी आम है,बड़े बुजुर्ग,जवान बच्चे सभी एक अजीब सी दुनियां में व्यस्त है,आज हमें अपनो से बात करने की उनके साथ समय बिताने की फुरसत नहीं है,मगर किसी भी सोशल साइट को डेली कई बार विजिट करना, लोगों के फ़ालतू के पोस्ट देखना,अनावश्यक पोस्ट पर लाइक करना हमारी दिनचर्या बन गई है चाहे लाइक ना करें चाहे पोस्ट भी ना करें मगर स्क्रॉल करते रहना एक अजीब सा अभ्यास बन गया है,सच तो ये है इंटरनेट की दुनिया में जो बेवजह के शौक हमने पाल लिए हैं अजनबी लोगों से बातचीत करना,दोस्ती करना ये सब कितना ज्यादा फायदेमंद है। क्या हमारे अपनो को हमारी ज़रूरत नहीं कहीं हमारे लोग हमसे बात करने को तरसते है वो हमसे चाहते हैं हम उनके साथ कुछ समय बिताए,मगर दूसरी तरफ़ हम ऐसी दुनियां में समाते जा रहे हैं जहां लाइक करने वाले कई हाथ मिल जाएंगे मगर ज़रूरत में कोई साथ देने वाला नहीं मिलेगा,कहीं ना कहीं जो इंटरनेट प्रेम है वो हमें हमारे अपनो से अलग कर रहा है,जो समय हमें किसी सही काम में लगाना चाहिए,अपनी ग्रोथ में लगाना चाहिए या कुछ नया कर गुजरने में लगाना चाहिए,वो समय हमारा व्यर्थ की बातों में चला जाता है और परिणाम स्वरूप हमें मिल क्या रहा है? इंटरनेट बिगड़ने वालो को बिगाड़ देगा और सुधरने वालों को सुधार देगा,ज्ञान का असीमित सागर है इंटरनेट,हम चाहे तो अपने जीवन को अच्छी दिशा दे सकते है इंटरनेट के माध्यम से,जितना चाहे उतना अपने ज्ञान के भंडार को बड़ा सकते है मगर ज्यादातर लोगों का समय सोशल मीडिया पर चैटिंग स्क्रॉलिंग या कमेंटिंग में बीत जाता है,यहीं खत्म हो जाता है ज़िंदगी का उत्साह,हम चाहें तो क्या नहीं कर सकते,क्या नामुमकिन है मगर किसी भी बात को मुमकिन करने के लिए उसमें अपनी रुचि होना ज़रूरी है। मगर अजीब बात है ज़िंदगी में करना हम बहुत कुछ चाहते है,सिर्फ मेंहनत करना नहीं चाहते। किसी मित्र,किसी सगे संबंधी से आज मिलने चले जाओ और देखो महसूस करो लोग कितनी रुचि लेते है इस मुलाक़ात में,कितनी वो आपकी बात सुनते हैं,हो सकता है आप बात कर रहे हैं और वो अपने फ़ोन की स्क्रीन में घुसे हुए है,आपका साथ देने को बीच बीच में हां हूं ज़रूर कर देंगे,बड़ा अफ़सोस होता है ऐसी हालत देखकर,सोशल साइट इस्तेमाल करते हुए लोग,अपने रिश्तों की मर्यादा तक भूलते जा रहे हैं,किसको क्या सन्देश फॉरवर्ड करना चाहिए किसको क्या बोलना चाहिए ये भी लोग सोच नहीं पा रहे हैं,पता नहीं क्यों मगर एक तरह की निर्लज्जता बेशर्मी समाज में फैलती जा रही है, रिश्तों का हनन होता जा रहा है,आजकल गुडमॉर्निंग के संदेश ही देख लीजिए कितने तानो और तंजो से भरे हैं,किसी को आपको बात सुनानी हो तो वो आधी रात को भी गुडमॉर्निंग संदेश भेज देगा अगर उसमें आपने लायक सटीक ताने हों, ये ही बातें कहीं हमें मानसिक अशांति देती हैं,तो यही, कहीं हमें अपनो से दूर करती हैं,हम अपने रिश्तों को अहमियत नहीं दे पाते,हम अपनो के साथ का आंनद नहीं ले पाते सच तो ये है हम अपनो के बिना आराम से रह लेंगे मगर आज की तारीख में मोबाइल फोन के बिना नहीं रह पाएंगे इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या है और सबसे अजीब बात तो ये है मातृ दिवस वैसे तो ना ये हमारी संस्कृति में है, नहीं ऐसा कोई दिवस मनाया जाता था,मगर जब से ग्लोबलाज़ेशन का ज़माना आया,तब से हमने भी बहुत कुछ ग्लोबल स्तर पर किया है,कुछ बातें अच्छी है करनी भी चाहिए,मगर हर बात क्या गृहण के योग्य है? हमारे संस्कारों में हर दिन मातृ दिवस ही है,मगर साेशल मीडिया के लती लोग,चलो लोगों की देखा देखी ही सही मातृ दिवस पर पोस्ट डाल देते हैं,इस बहाने अपनी मां को याद भी कर लेते हैं,एक सीधी सादी मां बेचारी जो अब तक सोशल मीडिया से दूर है, उसे तो ये भी पता नहीं कि उसके लिए एफबी पर कोई पोस्ट डाली है,या वॉट्सएप पर कोई स्टेटस सेट किया है,वो मां जिसे ये तक पता नहीं कि आज मातृ दिवस जैसा कोई दिवस भी है,क्या बेहतर नहीं हो कि जितना समय पोस्ट और स्टेटस सेट करने में लगता है उतना समय हम अपनी मां के लिए निकाल लें,मां के हाल चाल जान लें, दुनियां भर को ना भी दिखाएं तो क्या फ़र्क पड़ेगा,ये शो ऑफ करके क्या मिलेगा,ये वहीं बात है आज सेल्फ़ी के लिए और सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए लोग सिर्फ अच्छे काम का दिखावा करने लगे हैं,हमें जानना चाहिए हमारे कामों में कितनी सच्चाई कितनी ईमानदारी है,अपने अच्छाई का ढोल ना पीटे तब भी,हमारे अंदर अच्छाई है तो वो खुद ही सबके सामने आ जाती है,क्या हमारा व्यक्त्तिव कॉपी पेस्ट नहीं है क्या हमारे सेलिब्रेशन अब सिर्फ पोस्ट डालने के लिए नहीं बचे? ये हम कौन सी प्रतिस्पर्धा में उतरे हैं? जिससे हमारा कोई नाम नहीं होना,ना हमारा कोई काम होना,क्या ये ज़रूरी नहीं कि हम इन सब बातों को समझें,अपने स्वभाव को ना छोड़ें,ना अपनाएं ऐसा कुछ जो हमारे व्यक्तित्व को फेक बनाता है,क्या ये सच में ज़रूरी नहीं?
छू सकूँ किसी के दिल को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। अहसास कर सकूं हर किसी के दर्द को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। जीते जी किसी के काम आ सकूँ तो क्या बात है। kavita in hindi, hindi kavita on life, hindi poems, kavita hindi mein on maa
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