जैसे जैसे हम ग्लोबलाइजेशन, मॉडर्नाइजेशन, सोशलाइजेशन की गिरफ्त में आए,यकीन मानिए हम अपनी मूल प्रकृति खो बैठे,बहुत बार तो हमने मनुष्य जैसा बर्ताव करना ही छोड़ दिया। कहाँ गए भाव भावना दया प्रेम कहाँ गए?
सबकुछ दिखावे की होड़ तक सिमट कर रह गया।हर रिश्ते में औपचारिकता रह गई। गुड मॉर्निंग गुड इवनिंग गुड नाईट दुआ सलाम सब कुछ कॉपी फॉरवर्ड हो गया, वो दिन अब नही रहे जब हम अपने परिजनों को पत्र भेजते थे कितना सोच समझ कर हर वाक्य लिखते थे पत्र की भाषा मे सामने वाले के सम्मान का पूरा ध्यान रखा जाता था।
मगर आज आपको किसी को ताने देने हैं गुस्सा ज़ाहिर करना है तो व्हाट्सअप मैसेज से अच्छा क्या तरीका होगा कुछ सेकंड में आपकी नफ़रत भरी सोच दूसरे के मोबाइल स्क्रीन पर फ़्लैश हो जाती है चाहे टैग उसमें गुड मॉर्निंग का लगा हो।
हम बार बार क्या कैरी फॉरवर्ड करते हैं?
इन दिनों बहुत कुछ बदला है,बहुत ही आसानी से पूरा ब्रम्हांड मोबाइल स्क्रीन पर जो आ गया है।रिश्तों में मर्यादा का हनन हो चुका है,कोई भी किसी को भी कुछ भी मैसेज फॉरवर्ड कर देता है,रिश्तों में लिहाज नहीं रहा।
कौन सा सवाल है अब जिसका जवाब हम नहीं पा सकते,हमारे पास असीमित ज्ञान का भंडार है, हम अपने जीवन को सही दिशा भी दे सकते हैं और हम अपने जीवन की दशा भी बिगाड़ सकते हैं।अपने आस पास आप देख सकते हैं जीवन को दिशा मिल रही है या जीवन की दशा खराब हो रही है।
हर ऐज ग्रुप के लोग अपने अपने इंटरेस्ट मे व्यस्त,किशोरावस्था मोबाइल गेम्स की एडिक्ट हो रही है, अपने दिन का एक बहुत बड़ा हिस्सा वो स्क्रीन पर आंखें टिकाए बिता रहे है,युवाओं और प्रौढ़ों में अश्लिलता बढ़ रही है।
सब इतना आसानी से उपलब्ध है तो भला लोग भजन कीर्तन क्यों करेंगे,जिसमें मन को ज़बरदस्ती केंद्रित करना पड़े।
जिस काम में उन्हें आनन्द आ रहा हो,जो काम लेटे लेटे हो जाता हो तो बैठने की तकलीफ़ कौन करे।
सदियों गुलाम रहे हम,तब ग़ुलामी के कारण दूसरे थे आज हम फिर से गुलाम हो गये तब अंग्रेजी हुकूमत के गुलाम थे आज अंग्रेजी तकनीक के गुलाम हैंU,तब शारीरिक तौर पर गुलाम थे आज मानसिक रूप से गुलाम हैं। तब लोगों को कैद भले ही किया हो मगर सोच में उनकी ताकत थी,तभी हम स्वतंत्र हो पाए।
आज सोच हमारी हर दूसरे पल में बदल जाती है,जो देखा जो सुना वही सोच बन गई,जिसमें आनन्द आए वही आदत बन गई,हमारे दिमाग को पूरी तरह से गुलाम बना दिया गया है।
हमारे शरीर को चला रहा है मन और वह मन ही हमारे वश में नहीं तो शरीर खुद ब खुद गुलाम बन गया। मानसिक बीमारियों के लिए हम बहुत ज्यादा संवेदनशील हो गए हैं।
क्योंकि हमारा शरीर आराम कर रहा है दिमाग काम कर रहा है काम भी ऐसे जिससे पल भर की खुशी जीवन भर की त्रासदी है।
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