क्या निभा पाओगे?
बताओ
कितना दूर चल पाओगे?
साथ मेरे ।
इस रवैये से
इस अंदाज़ से
तुम संवेदनहीन
एक चट्टान की तरह।
कितना दूर चल पाओगे
साथ मेरे।
न मुस्कुराहट में साथ हो
न आंसुओ में पास।
न दर्द की दवा हो
न सहारे की दुआ हो
कितना दूर चल पाओगे
साथ मेरे।
अंतर्द्वंद्व में अकेला
झुझता है मन
खुद सवाल करता
खुद जवाब बनता
कितना दूर चल पाओगे
साथ मेरे।
तुम बस कहने को
साथ हो।
हकीकत में तुम कहाँ हो?
इतना उदासीन
बाहरी दुनिया मे विलीन
शब्द हीन, भाव विहीन
कितना निभा पाओगे
कितना दूर चल पाओगे?
साथ मेरे ।
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