मंगलवार, 20 जुलाई 2021

kavita in hindi/hindi best poem/ये उम्र ढलती नहीं/ पोएम इन हिंदीkavita in hindi/hindi best poem/


 ये उम्र ढलती नहीं
ढल जाता ये शरीर है
खता शरीर की है
मात खा जाती उम्र है।
जिम्मेदारी के थपेडों में
टेढ़े मेंढे मोड़ों में
न जाने कब सिलवटें पड़ी
नाजुक कपोलों के कोरों में
ये उम्र ढलती नहीं
ढल जाता  ये शरीर है

संघर्ष की राहों मे
जीवन को रगड़ते रागड़ते
उम्मीदों की चक्की में पिसते पिसते
न जाने कब उदासी छा गई
अधरों पर भी हँसते हँसते
ये उम्र ढलती नहीं
ढल जाता ये शरीर है

सभी को मनाते जाते
रिश्तों को बचाते जाते
पुराने घाव मिटाते जाते
नए घाव सहलाते जाते
कठोर शब्द दिल में दफ़नाते 
फिर भी  नैन डबडबाए ही पाते।
ये उम्र ढलती नहीं
ढल जाता ये शरीर है

दुनिया की कठिन राहों में
सम्भावनाओ की बाहों में
काल चक्र की निग़ाहों में
तपिश की पनाहों में
ठोकरें खा खा कर भी
मन लगा है असीमित चाहों में
ये उम्र ढलती नहीं
ढल जाता ये शरीर है।


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