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ये उस समय की बात है जब बात करने के लिए टेलीफोन बूथ हुआ करते थे,कम ही लोगों ने टेलीफोन कनेक्शन लिया था,अगर किसी को बहुत ज़रूरी काम होता था तो वो टेलीफोन बूथ पर जा कर फोन कर लिया करता था,कौन भूला होगा वो पीसीओ,एसटीडी,आईएसडी,अरे भैया उस समय बूथ वालों ने भी लोगों को बड़ा लूटा ये समझ लीजिए अंधी कमाई की होगी,बेचारी आम जनता कॉल चार्जेज क्या जानती जितना बिल बना, देना मजबूरी होती थी क्योंकि वो थमा देते से मीटर से निकला बिल फिर कोई भला कैसे नानुकुर करता?इससे तो वो एक रुपया डालने वाला फोन सही था,एक रुपए की बात खत्म होने पे कट जाता था,सच तो ये था कि वो मीटर ही तेज भागने वाला होता था,वो सुकून की बात कहां होती थी,फोन करने वाले की बात अगर दूसरी तरफ़ वाला लंबी खींचता तो उस बेचारे की रोनी सूरत मीटर पे टिकी होती थी,उस समय कौन कल्पना कर रहा था कि आने वाला समय इतना रिवॉल्यूशनरी हो जाएगा? तब तो मोबाइल फोन इंटरनेट ये सब तो काल्पनिक दुनिया की ही बातें थी,मगर एक बात सच है तब सुविधाएं नहीं थी,रिश्तेदार मित्र जो बहुत दूर रहते थे उनका हालचाल जानने का सहारा चिट्ठी ही हुआ करती जो लगभग पन्द्रह दिन आने जाने में लेती थी,ऐसा नहीं है कहीं दूरी कम होती तो दस दिन में भी जवाब मिल जाया करता था,अरे जब वो चिट्ठी का जवाब आता था वो पल भी कम आनंददाई ना होता,वो दादी का अपने पोते पोतियों से चिट्ठी पढ़वाना और घर के सभी सदस्यों का बड़े चाव से एक एक शब्द सुनना कहीं मेरा भी ज़िक्र हो,क्योंकि चिट्ठी में हर किसी का हाल पूछा होता,छोटे बच्चों के लेख की तारीफ होती जो भी चिट्ठी का जवाब लिखता था, बच्चे भी बड़े लालायित रहते अपनी तारीफ सुनने को,ये वो दिन थे जहां सच में रिश्तों में प्रेम आदर था किसी तरह की औपचारिकता नहीं थी,अच्छा है ना यहां हम कह सकते हैं,दूरियां और देरी दोनों ही अच्छे थे,कम से कम रिश्ते तो ज़िन्दा थे,तब कौन किसको क्या देता था वो सिर्फ प्रेम था,आपको नहीं लगता ग्लोबलाइजेशन क्या हुआ, इंटरनेट की धूम क्या मची रिश्ते नाते सब धूल में उड़ गए,अब वैसा कोई उत्साह बचा ही कहां हैै,अब कौन कलम उठाएगा चिट्ठी लिखने को,अगर लिखने भी बैठेगा कोई,तो कितने शब्द लिख पाएगा? यही सच है,तब आदमी हर काम खुद करता था,तब भी उसके पास बहुत समय था और आज हर काम मशीन से हो जाता है तब भी आदमी बहुत व्यस्त है या खुद को व्यस्त दिखाता है जो सही लगे वो ही समझ लीजिए,तब कोई होड़ नहीं थी,कोई दिखावा नहीं था,अब बिना दिखावे के काम भी कहां चलता है,आधे से ज्यादा समय लोगो का सेल्फ़ी लेने में निकल रहा है,बाकी समय सोशल मीडिया है ना,वॉट्सएप फेसबुक इंस्टाग्राम ट्विटर स्काइप रही सही जो कसर थी वो आजकल टिक टोक पब जी ने पूरी कर दी,बच्चे बेचारों को होमवर्क करने की फुर्सत नहीं है,कहां जा रहे है हम? धीरे- धीरे सब कुछ भूलते जा रहे हैं,रिश्ते,नाते,संस्कृति, संस्कार, यहां तक कि अगर आपने महसूस किया है तो रिश्तों की मर्यादा भी ख़तम होती जा रही है,धीरे धीरे लोगों की शर्म खत्म हो चुकी है किसी को को क्या फॉरवर्ड कर रहे हैं इसका भी कोई ध्यान नहीं रखता, तो क्या ये बेहयाई अच्छी है,हां समय के साथ तालमेल बिठाने के लिए हमें भी बदलना है मगर ये बदलाव कितना अच्छा हैै
छू सकूँ किसी के दिल को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। अहसास कर सकूं हर किसी के दर्द को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। जीते जी किसी के काम आ सकूँ तो क्या बात है। kavita in hindi, hindi kavita on life, hindi poems, kavita hindi mein on maa
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019
क्या ऐसा नहीं है
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स्त्री हूं👧
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