प्रियतम
देखो ना ये मौसम
तुम्हारी यादों की तरह
सुहावना हो गया।
देखो ना, बादल घिर आए
अंधेरा छा गया!
फिज़ा में सुकून भरी
खामोशी पसर गई।
मेरे मन के किसी कोने में,
मीठी सी हलचल कर गई।
देखो ना ये एहसास,मुझे ही क्यों?
क्या तुम्हें ये मौसम,
कुछ याद नहीं दिलाता?
क्या तुम्हारा ध्यान ,
प्रकृति की ओर नहीं जाता?
क्या वो यादों की पुस्तक के ,
पन्नों को नहीं पलट पाता?
क्या तुम इतने मसरूफ़ हो?
अपने हालातों में ?
जो तुम्हे दिख कर भी
कुछ दिख नहीं पाता.
क्या तुम्हारा तन मन,
कभी नहीं भीग पाता?
इस प्रेम की मंद-मंद बारिश में
बताओ ना?
क्या तुम उदासीन हो?
हर परिवर्तन से,
हर हलचल से,
हर उत्कंठा से।
हां अगर ऐसा है,
तो बताओ ना?
ये मुझ में क्या है?
जो हर पल हर क्षण
बहता है?
देखो ना ये क्या है?
जो मुझमें है!
तुममें नहीं।
छू सकूँ किसी के दिल को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। अहसास कर सकूं हर किसी के दर्द को अपनी कविता कहानी से तो क्या बात है। जीते जी किसी के काम आ सकूँ तो क्या बात है। kavita in hindi, hindi kavita on life, hindi poems, kavita hindi mein on maa
गुरुवार, 4 जुलाई 2019
प्रियतम देखो ना
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