उर्वशी के पिता कई चक्कर बाहर दरवाज़े तक लगा आए,बड़े बेचैन कभी हाथ मलते कभी सिर पकड़ते उनकी माथे पर पड़े हुए बल उनकी परेशानी को साफ साफ़ बयां कर रहे थे।
बड़बड़ाते जाते थे"बड़ी दुष्ट लड़की है,बाप को कितनी चिंता होगी क्या हाल होगा कोई परवाह नहीं"
उर्वशी आज सुबह तड़के ही अपनी सहेली की शादी में शामिल होने गई थी, मगर अब शाम हो आई थी उसका दूर दूर तक पता नहीं था।
पिता चहल कदमी करते करते बड़बड़ाते जाते,"कैसी शादी है ना जाने इतनी देर तक,अब तक तो हो चुकी होगी,और नही भी हुई हो तो इस दुष्ट लड़की का इतनी देर तक क्या काम है वहां भगवान जाने"
द्वार के कई चक्कर लगा कर जब वो हार गए तो, घर भीतर आकर तख्त पर धम्म से बैठ गए,सिर पकड़ लिया।
तभी दरवाज़े पर आहट हुई, आहट सुनकर उनके दिल को राहत सी हुई मगर गुस्सा तो भरा हुआ था अंदर, उर्वशी पर फूट पड़ा
"क्या हो गया उर्वशी,क्या हो गया है तुझे?"
उर्वशी भोचकी सी रह गई।
"क्या हो गया मतलब पिता जी?"
"क्या हो गया? तुझे अपने बाप का ज़रा भी खयाल है?"
"अरे लेकिन आप ऐसा कह क्यों रहे हो?"
"ऐसा के क्यों कह रहा हूं? तू सुबह की घर से निकली अब पहुंच रही है घर...और पूछ रही है...
"अरे तो पिताजी,अभी तो बारात विदा हुई,आई ही लेट थी बारात,फिर सारे रस्मो रिवाज खाना पीना"
अच्छा तू ही थी न वहां पंडित तुझे ही तो सात फेरे करवाने थे...
ओह्ह्हो पिता जी कैसी बाते करने लगे हों आज
कैसी बात करूं बता रात होने को है तू अब घर पहुंच रही है,
पर पिता जी आभा मेरे बचपन की सहेली है,उसकी शादी में मेरा होना ज़रूरी था।
पिता का इतना चिंतित होना लाज़मी था, उर्वशी जब महज़,7साल की थी उसकी मां का निधन हो गया था। उर्वशि के दो छोटे भाई भी थे,मां की छत्रछाया खत्म होने पर नन्ही सी उर्वशी के हाथो घर की बहुत सी ज़िमेदारी आ गई। पिता ने दूसरी शादी नहीं की अपने बच्चों को बड़े प्यार से पाला, मगर कुछ समय से उनके गांव में कुछ दबंग लोगों का दबदबा हो गया था,वो लोग किसी के बगीचे फल किसी की सब्ज़ीयां चुराते खेतो को भी फसल को भी नुकसान पहुंचा देते,आती जाती लड़कियों को छेड़ देते, मगर किसी की मजाल थी जो चूं भी करता।
सारे गांव के लोग उनकी दबंगई को सहने को मजबूर थे। कोई विरोध की कोशिश करता तो चैन सुकून से हाथ धो बैठता
बस यही वजह थी की उर्वशी के पिता उसके घर न आने पर घबरा गए थे।
पिता के चिंतित भावों को पढ़कर,उर्वशी ने पिता से कहा छोड़िए ना पिता जी, इतनी चिंता ठीक नहीं, मैं सुरक्षित तो आ गई ना, बड़े आराम से आई हूं, और आप निश्चिंत रहिए कोई अनहोनी नहीं होगी भरोसा रखिए।
पिता :- तुझे गांव का माहौल पता नहीं,लोग कितनी दहशत में है तू जानती नहीं
जानती तो हूं पिताजी मगर क्या करती है बीच में आ नहीं सकती ना ।
अरे बेटी समय की नज़ाकत को समझनी चाहिए।
ठीक है पिता जी,आज से न होगा ऐसा अब तो शांत हो जाइए।
5मिनट रुकिए,मै आपके लिए गरम कड़क जायकेदार चाय बना कर लाती हूं,जिसे पीते ही आपकी चिंता पल में छू मंतर हो जाएगी
पिता अभी चिंतित भाव में ही बोले हां बातें बनाना तो कोई तुझ से सीखे।
उर्वशी चाय बनाने चली गई,पिता खुद से ही बोल रहे थे.. काश आज तेरी मां जिंदा होती तो शायद मेरी चिंता कुछ कम होती, अकेले ही जवान बेटी की ज़िम्मेदारी सम्हाल पाना बड़ा कठिन लगने लगा है।
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