शनिवार, 29 जून 2024

ख़ून की होली

उर्वशी के पिता कई चक्कर बाहर दरवाज़े तक लगा आए,बड़े बेचैन कभी हाथ मलते कभी सिर पकड़ते उनकी माथे पर पड़े हुए बल उनकी परेशानी को साफ साफ़ बयां कर रहे थे।
बड़बड़ाते जाते थे"बड़ी दुष्ट लड़की है,बाप को कितनी चिंता होगी क्या हाल होगा कोई परवाह नहीं"
उर्वशी आज सुबह तड़के ही अपनी सहेली की शादी में शामिल होने गई थी, मगर अब शाम हो आई थी उसका दूर दूर तक पता नहीं था।
पिता चहल कदमी करते करते बड़बड़ाते जाते,"कैसी शादी है ना जाने इतनी देर तक,अब तक तो हो चुकी होगी,और नही भी हुई हो तो इस दुष्ट लड़की का इतनी देर तक क्या काम है वहां भगवान जाने"
द्वार के कई चक्कर लगा कर जब वो हार गए तो, घर भीतर आकर तख्त पर धम्म से  बैठ गए,सिर पकड़ लिया। 
तभी दरवाज़े पर आहट हुई, आहट सुनकर उनके दिल को राहत सी हुई मगर गुस्सा तो भरा हुआ था अंदर, उर्वशी पर फूट पड़ा 
"क्या हो गया उर्वशी,क्या हो गया है तुझे?"
उर्वशी भोचकी सी रह गई। 
"क्या हो गया मतलब पिता जी?"
"क्या हो गया? तुझे अपने बाप का ज़रा भी खयाल है?"
"अरे लेकिन आप ऐसा कह क्यों रहे हो?"
"ऐसा के क्यों कह रहा हूं? तू सुबह की घर से निकली अब पहुंच रही है घर...और पूछ रही है...
"अरे तो पिताजी,अभी तो बारात विदा हुई,आई ही लेट थी बारात,फिर सारे रस्मो रिवाज खाना पीना"
अच्छा तू ही थी न वहां पंडित तुझे ही तो सात फेरे करवाने थे...
ओह्ह्हो पिता जी कैसी बाते करने लगे हों आज
कैसी बात करूं बता रात होने को है तू अब घर पहुंच रही है,
पर पिता जी आभा मेरे बचपन की सहेली है,उसकी शादी में मेरा होना ज़रूरी था।
पिता का इतना चिंतित होना लाज़मी था, उर्वशी जब महज़,7साल की थी उसकी मां का  निधन हो गया था। उर्वशि के दो छोटे भाई भी थे,मां की छत्रछाया खत्म होने पर नन्ही सी उर्वशी के हाथो घर की बहुत सी ज़िमेदारी आ गई। पिता ने दूसरी शादी नहीं की अपने बच्चों को बड़े प्यार से पाला, मगर कुछ समय से उनके गांव में कुछ दबंग लोगों का दबदबा हो गया था,वो लोग किसी के बगीचे फल किसी की सब्ज़ीयां चुराते खेतो को भी फसल को भी नुकसान पहुंचा देते,आती जाती लड़कियों को छेड़ देते, मगर किसी की मजाल थी जो चूं भी करता।
सारे गांव के लोग उनकी दबंगई को सहने को मजबूर थे। कोई विरोध की कोशिश करता तो चैन सुकून से हाथ धो बैठता
बस यही वजह थी की उर्वशी के पिता उसके घर न आने पर घबरा गए थे।
पिता के चिंतित भावों को पढ़कर,उर्वशी ने पिता से कहा छोड़िए ना  पिता जी, इतनी चिंता ठीक नहीं, मैं सुरक्षित  तो आ गई ना, बड़े आराम से आई हूं, और आप निश्चिंत रहिए कोई अनहोनी नहीं होगी भरोसा रखिए।
पिता :- तुझे गांव का माहौल पता नहीं,लोग कितनी दहशत में है तू जानती नहीं 
जानती तो हूं पिताजी मगर क्या करती है बीच में आ नहीं सकती ना ।
अरे बेटी समय की नज़ाकत को समझनी चाहिए।
ठीक है पिता जी,आज से न होगा ऐसा अब तो शांत हो जाइए।
5मिनट रुकिए,मै आपके लिए गरम कड़क जायकेदार चाय बना कर लाती हूं,जिसे पीते ही आपकी चिंता पल में छू मंतर हो जाएगी 
पिता अभी चिंतित भाव में ही बोले हां बातें बनाना तो कोई तुझ से सीखे।
उर्वशी चाय बनाने चली गई,पिता खुद से ही बोल रहे थे.. काश आज तेरी मां जिंदा होती तो शायद मेरी चिंता कुछ कम होती, अकेले ही जवान बेटी की ज़िम्मेदारी सम्हाल पाना बड़ा कठिन लगने  लगा है।

शुक्रवार, 28 जून 2024

प्रेयसी हिन्दी कहानी


 लगभग आधी रात गुज़र गई थी,  आज नींद रोहिणी की आंखों से कोसों दूर थी,एक टूटा हुआ अकेला मन ही रात की भयावहता को बेहतर ढंग से महसूस कर सकता

 है,जैसे जैसे रात का अंधेरा गहराता है वैसे वैसे विचारों की

 कालिमा भी बढ़ती जाती है,दिन उजाले में जो बात सामान्य सी लगती है वही बात रात के अंधेरेमें विक्षिप्त होने लगती है,तब जबआप कुछ ऐसी परि स्थिति में हो।

13साल का रिश्ता साल दर साल भावनाओं का वो 

बंधन ऐसा मजबूत होता गया कि लगा शायद मौत

 भी इस रिश्ते को तोड़ने में असमर्थ होगी। 

आज दिन में रोहन की वो 25मिनटकी  कॉल,उस कॉल ने रोहिणी के

 अंदर उथल पुथल मचा दी थी..ना जाने क्या क्या सोचती जाती,रह रह कर रोहन के शब्द उसके जेहन में गूंज रहे थे,"घर वालो का मेरे ऊपर शादी का दबाव बढ़ता जा रहा है,अब तक तो मैं उन्हें रोकता आया था,मगर अब रोकने की कोई वजह भी नहीं" रोहिणी :- तुम कहना क्या चाह रहे हो मुझसे?"

शायद तुम अच्छे से समझती हो ओह मतलब ये 13सालों की कोई कीमत नहीं?

वक्त के साथ बहुत कुछ बदलता है रोहिणी सालों की कीमत अपनी जगह है मगर...

मगर...?ये कहो की तुम ये रिश्ता निभाने में असमर्थ हो...

उफ्फ यही वजह है मैं तुमसे कोई बात नहीं कहता। 2साल से घरवाले चाचा ताऊ बुआ फूफा न जाने कितनो के सवालों का जवाब देता फिर रहा हूं मैं...

तो कर लो शादी...जाओ मेरी तरफ़ से तुम मुक्त हो ..मैं कोई बाधा नहीं..

ओह रोहिणी.. मैं मुक्त नहीं होना चाहता मैं तुम्हें छोड़ने की सोच भी नहीं सकता..

तुम चाहते क्या हों रोहन..एक मयान में दो तलवार ?? मैं तो आज से पहले कल्पना भी नहीं कर सकती थी तुम ऐसा सोच भी सकते हो..

मै परिस्थितियों के हिसाब से सोच रहा हूं...एक तरफ़ मेरा पूरा खानदान है एक तरफ़ तुम..

हां ये कहो तुम मेरा चुनाव नहीं कर सकते खानदान ज्यादा अहमियत रखता है।

रोहिणी... उफ्फ समझ नही आता की तुम्हे कैसे समझाऊं।

मत समझाओ रोहन..ये बात 13साल पहले ही समझा देते तो, शायद तुम्हारी मुझ पर मेहरबानी होती... समझाने में बड़ी देर की तुमने

रोहिणी प्लीज़,हम जीवन भर जुड़े रहेंगे,तुम भी शादी कर लेना,हम सब साथ में रहेंगे...मैं सब ठीक कर दूंगा..

प्लीज़ प्लीज़ एक और शब्द मत बोलना..अब सब ठीक कर दिया तुमने, काश मैं इतनी मूर्ख न होती रोहन काश..आई रियली हेट माइसेल्फ .. तुम्हारी कोई गलती नहीं..गलती मेरी है..

उफ्फ उफ्फ उफ्फ काश तुम थोड़ा तो समझदार होती,तुम समझ पाती कि मैं किन हालातों से आए दिन गुजरता हूं कितना प्रेशर है मेरे ऊपर, तुम्हें मुझ पर ज़रा भी तरस नहीं आता, यही तुम्हारा प्यार है स्वार्थी प्यार।

रोहिणी की आंखे भर आई.. हां रोहन स्वार्थी तो मैं हूं ही, दुनियां की हर प्रेमिका सालों के रिलेशनशिप के बाद अपने प्रेमी से खुशी खुशी कहती होगी, जाओ किसी और से शादी कर लो मुझे कोई फरक नहीं पड़ेगा। है ना कितनी म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग होती,इससे तो सब कुछ आसान हो जाता, मोहब्बत के लिए जितनी जंग छिड़ी हैं सब खत्म हो जाती...

रोहिणी यार...थोड़ा प्रैक्टिकल बनो, मैं घर में इकलौता बेटा हूं,मेरे मां बाप की बहुत एक्सपेक्टेशन हैं मुझसे, ज़रा इन भावनाओं से बाहर निकल कर सोचो...

इन भावनाओं को इतना उछाल देने से पहले सोच लेते ये सब।

देखो तुमसे शादी तो मैं किसी भी हाल में कर नहीं सकता हमारे बीच की असमानताएं,जाती धर्म का बंधन क्या जवाब दूंगा मैं घर वालों को?

जिस दिन तुमने इस रिश्ते की नींव डाली क्या उस दिन ये जात धर्म का बंधन नहीं था?

था मगर उस दिन..किसने सोचा था की इतना चलेगा,ये रिश्ता..

ओह तो ये रिश्ता तुमने टाइम पास के लिए बनाया था.

कैसी बात करती हो? किसे पता होता है रिश्ते की शुरुआत में...

ओह... क्या कहूं मैं.. आज सबकुछ कितना फेक लग रहा है. ये तेरह साल कितने फेक थे? रिश्ते की नीव डालने वाले को विश्वास था कि रिश्ता टूटेगा ही..और नही भी टूटा तो क्या हुआ एक न एक दिन अपनी ज़रूरत के हिसाब से वो तोड़ ही देगा।

बस हो गया रोहिणी अब बस करो.. तुम्हारी ये ताने मारने की आदत मुझे बिल्कुल पसंद नहीं।

तुम्हें मैं ही कहां पसंद हूं रोहन,कितनी आसानी से तुम खुद शादी कर लोगे और अपनी प्रेमिका की भी शादी करवा दोगे, उफ्फ ये सोच कर भी मेरे अंदर क्या हो रहा है मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती।

हाय... भगवान मुझे इस पीड़ा को सहने की शक्ति दो,मुझे जीने की शक्ति दो,रोहिणी बिलबिला कर रो पड़ी।

रो ओ मत रोहिणी,pls रो ओ मत सबकुछ तुम्हारे हाथ में, जितनी सरलता से इस बात को स्वीकार कर लोगी उतना हमारा जीवन आसान होगा,मेरी शादी ज़रूर होगी,मगर में ऐसा ही रहूंगा, तुम्हें कभी लगेगा भी नही मैं तुमसे अलग हो गया, निर्णय तुम्हारा है,जो डिसाइड करोगी मुझे स्वीकार है।

रोहिणी कुछ न बोली.. उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया। और तब से अब तक तक उसका दिमाग लगातार विचारों के जाल बुन रहा है,कभी उलझा रहा है कभी रूला रहा है, कभी रोहन को गलत ठहरा रहा है कभी खुद को गलत ठहरा रहा है।

उसको रोहन के किए तमाम कसमें वादे सपने फ्यूचर प्लानिंग याद आती थी,और आज वो खुद को ठगा हुआ सा लूटा हुआ सा महसूस कर रही थी।

हाय इसे कहते हैं मोहब्बत?काश मुझे ऐसा पता होता तो मैं क्यों गिरती इस गड्ढे में।

उसके अंदर जो टीस उठती थी वो उसका जैसा हीं कोई बेहतर समझ पाता। मगर प्यार एक तरफा नहीं चलता,इस भावना को सहारा दो तरफा चाहिए। रोहिणी रोहन से बेइंतहा मोहब्बत करती थी, लेकिन आज रोहन की बातों ने उस भावना पर एक सवालिया निशान लगा दिया। जिस पौधे को सालों सींचा पेड़ बना दिया आज उसकी ऐसी दुर्दशा?

अक्सर समाज मे देखा गया है लड़कियों की बड़ी मजबूरी होती है,घर परिवार समाज,कई बार वो उनके खिलाफ़ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाती।

यहां रोहिणी अपने रिश्ते के लिए हर किसी के खिलाफ़ जाने को दुनियां से लड़ने को तैयार थी... मगर रोहन...

उसे समझ नहीं आया लड़की के जीवन में मजबूरियां तो हैं ही क्या लड़के के जीवन में भी? क्या लड़के इतने सक्षम नहीं होते कि वो समाज को जवाब दे सकें? रोहन की कही हुई वो बात बस ये ही है तुम्हारा प्यार जो मेरी शादी के साथ खतम हो जाएगा?

इस बात का रोहिणी के पास कोई जवाब नहीं था.. वो समझ भी नहीं पा रही थी आख़िर क्या जवाब होगा इस बात का?

पीड़ा क्रोध न जाने कितनी ही भावनाओं का उबाल जो रोहिनी के अंदर उथा,उस आवेश में उसने रोहन का नंबर अपने फोन से डिलीट कर दिया। 

पर नंबर डिलीट करने से यादें तो डिलीट नहीं होती? सुबह से शाम,शाम से सुबह हो जाती लेकिन विचारों को उलझाव बढ़ता ही गया, रोहिणी के दिल में उदासी घर कर गई, रातों को नींद आंखों से विदा हो गई खाना खाने की इच्छा मर गई।

स्त्री एक शक्ति

स्त्री हूं👧

स्री हूं, पाबंदियों की बली चढ़ी हूं, मर्यादा में बंधी हूं, इसलिए चुप हूं, लाखों राज दिल में दबाए, और छुपाएं बैठी हूं, म...

नई सोच