कुछ नहीं रहता
मगर रह जाते हैं
ये शब्द
साथ हमारे जीवनपर्यंत।
कभी मरहम की तरह
सहला जाते हैं।
तो कभी तीर की तरह
चुभ जाते है।
अवश्य ही क्रोध में,
या घृणा में,
जो हम कह जाते हैं,
किसी निर्दोष से,
किसी मासूम से,
भले ही राहत मिलती हो, हमें
पल भर को,
इस कृत्य से,
मगर भूल जाते हैं हम।
या सोचते ही नहीं।
कितने गहरे,
किसी के अंतर्मन में,
जा चुभे,वह विष बुझे तीर।
क्रोध में,घृणा में
जो हम बोल गए, और
कुछ ही पलों में भूल गए
वहीं शब्द,
किसी के हृदय में,
जीवाश्म बने,दबे हैं,कई परतों में
जो हर खुदाई में, बार-बार
बाहर निकलते हैं,और
देते हैं परिचय,
आपके दुर्व्यवहार का।
आज हमें निभाना किससे है?
या किसे फुरसत है,
व्यस्त ज़िंदगी में
किसी से मिलने की,
या साथ बैठने की,
हां यही शब्द हैं,
जो निभा रहे है,
इस दौर में,सारे रिश्ते और
सारे नाते।
बस इन्हीं को ही तो ,
हमें सम्हालना है।
मिठास ना बन सके,
ना सही।
मगर ज़हर बन के,
किसी की ज़िंदगी में,
कभी ना घुलें।