गुरुवार, 4 जुलाई 2019

कर्तव्य

( राजा हरिश्चंद्र मूवी देखने के बाद जो मुझे महसूस हुआ ये वो विचार हैं) आज बड़े गौर से सोचा तो समझ आया जीवन कर्तव्यों के निर्वाह के अतिरिक्त है क्या? हर दिन हमें अपने कर्तव्यों को ही तो निभाना है। किसी से चाहे कितना ही अटूट प्रेम हो किसी में कितनी ही आसक्ति हो मगर अपने कर्तव्यों में बंधें होने के कारण हम उसके साथ जीवन निर्वाह ना कर पाने को बाध्य होते हैं और भी अटल सत्य है जन्म और मृत्यु जिससे कोई अपरिचित तो नहीं और  किसी प्रियजन की मृत्यु पर चाहें हम कितने ही अधिक दुःख या शोक में निमग्न हो और वह समय ऐसा होता है जब व्यक्ति एक कोने में पड़ा रहे हिले भी नहीं,मगर कर्तव्य देखो घोर दुःख में आंसुओं में उसे उठना पड़ता है लोगों को एकत्रित करना पड़ता है,अपने प्रियजन की अंत्येष्टि की सामग्री उसे जुटानी पड़ती है जो उसका परम कर्त्तव्य है मगर हृदय तो कुछ और ही कहता है पड़े रहो एक कोने में आकुल रहो,अश्रु बहाते रहो मगर क्या ये संभव है कर्तव्य सर्वोपरि है, कर्तव्य का आपके दुख पीड़ा से कोई सम्बन्ध नहीं वो आपके साथ रियायत कभी नहीं बरतेगा। आपको अपनी भावनाओं को एक किनारे रख कर सबसे पहले अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना ही है। यही सत्य है।

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