सोमवार, 10 अप्रैल 2023

मां...


 मां तो मां होती है, ममतामई,निष्कपट,निष्पक्ष, निश्चल। मगर अपवाद हो सकते हैं उन्हें मां की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए जिन्हें सिर्फ जन्म देना हो या जन्म न देना हो,उसके बाद उनकी सारी रिस्पांसिबिलिटी खत्म,वो मां नहीं।

 मैं मां की बात कर रही हूं जिस शब्द को बोलने मात्र से आप उस निश्चल प्रेम से स्वयं ही सराबोर हो जाते हैं।

वो भी मां ही तो थी ममतामई जिसने अपने दोनो बेटो की परवरिश में कोई कोर कसर न छोड़ी,क्योंकि पति दिन रात शराब पीकर होश हवास गवाए रहता था, इसलिए उससे किसी भी तरह की सहायता की उम्मीद निरर्थक थी। 

उसने कभी अपनी किसी भी शारीरिक तकलीफ को अपनी संतान के पालन पोषण में बाधक न बनने दिया,उसने हर सुख सुविधा अपने बच्चों को दी। उनको पढ़ाया लिखाया लायक बनाया। 

पति की दिनचर्या जारी ही रही,जी भर कर शराब पीना और फिर हाथापाई गाली गलौच,लड़के बड़े हो चुके थे ज़ाहिर सी बात है पिता का रवैया उनसे बर्दाश्त न होता,मगर एक उधर बड़ा बेटा भी पिता के नक्शे कदम पर ही  था,घर से बाहर नौकरी थी इसलिए मां को इस बात की जानकारी न थी,अच्छी खासी नौकरी थी मां ने बड़े बेटे की शादी करवा दी।

कुछ ही समय में बहु मायके वापस चली आई,लड़ाई झगड़े का  कारण मां को तब जाकर पता लगा,उसका दिल बैठ गया,इतने बड़े बेटे को क्या समझाए,फिर भी कोशिश की मगर बात न बनी,कुछ दिन बहु बेटे के साथ रहती फिर लड़ झगड़ कर वापस आ जाती। मां जानती थी गलती बेटे की ही है,मगर क्या कर सकती थी। क्रोधी झगड़ालू व्यक्ति को भी समझाया जा सकता है,मगर शराबी कबाबी को समझा पाना भी बूते से बाहर था।

दूसरा बेटा भी अच्छी खासी जॉब में लग गया था,घर के लड़ाई झगड़े कलह की वजह से घर कम ही आता था मगर वो कुछ समझदार जरूर था उसने खुद को शराब से दूर ही रखा,मां ने अच्छी लडकी देखकर उसकी भी शादी करवा दी।पति के कलह से बहु को दूर रखने के लिए बहु को बेटे के साथ ही भेज दिया। 

ख़ुद बस शराबी के साथ रो धोकर दिन काट रही थी,उसे लगता अपनी जिम्मेदारी तो उसने निभा ली,इतनी जिंदगी तो कट ही गई इसी तरह और कट जाएगी।

बड़े बेटे बहु में सुलह नही हुई,दोनो अलग अलग ही जीवन बीता रहे थे। बहु के साथ न रहने पर बेटे पर अंकुश पूरी तरह खत्म हो गया,वो और ज्यादा पीने लगा इतना कि वो बिस्तर से उठ भी न सकता था, ऑफिस जाना उसने बंद कर दिया ऑफिस से कंप्लेंट लेटर घर पहुंचा मां क्या करती क्योंकि यहां बाप बेहोश,छोटा बेटा अपनी फैमिली के साथ अलग ही रहता घर आना जाना भी उसका कम ही था,पति के व्यवहार की वजह से मां इस बेटे पर भी अपना ज़ोर न समझती। किसको कहती, बड़े बेटे का कुछ करे, कोई समाधान नहीं किया गया,उसकी नौकरी चली गई।  

न वो घर छोड़ सकती थी न पति को क्योंकि उसके पीछे वो घर को आग भी लगा दे इसका भरोसा न था।

कुछ महीने ऐसे ही बीते, अचानक एक दिन बड़े बेटे की न्यूज़ मिली,"वो अपने कमरे में मृत पाया गया" पिता को आज थोड़े पल के लिए होश आया, दुःख ग्लानि हुई,"कहीं न कहीं मेरा रवैया इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार है,वो छोटे बेटे के साथ बड़े बेटे के मृत शरीर को लेने निकल पड़ा,रास्ते भर रोता खुद को कोसता, पर इन सब बातों से होना क्या था,जो होना था वो तो हो ही चुका था,बाप ने खुद बेटे के शव को मुखाग्नि दी, धूं धूं करके जल कर देखते ही देखते शरीर भस्म हो गया,मां के मन से पीड़ा न गई न किसी को कह सकती थी अपना दर्द किसको कहती। इस घटना से पति कुछ दिन तक सकते में रहा, अपराध बोध में जलता रहा। मगर कुत्ते की दुम कहां सीधी होती,कुछ दिन शोक मना कर शराबी आदमी फिर ट्रैक पर लौट आया वही दारू सुबह शाम। उसका मैखाना फिर गुलज़ार हुआ।

छोटी बहु बेटे घर न लौटे,पति का सुबह सूर्योदय के साथ ही गाली गलौच शुरू होता,पत्नी से मार पीट शोर शराबा उनका पूरा मोहल्ला सुनता,रात जब तक वो सोता न था तब तक थोड़े थोड़े अंतराल में शोर आता रहता। लोगो को भी आदत हो चुकी थी शोर शराबा सुनने की। शराबी तो शर्म बेचकर शराब खरीदता था,एक दिन की बात होती तो शायद शर्म की बात होती ये तो रोजमर्रा का काम हो गया था।

उस औरत के भी क्या कर्म रहे जिसे कभी पारिवारिक सुख न मिला। एक बेटा चला गया था जो था उससे भी अब मिलना न होता।

इसी तरह कई साल बीते पोता पोती भी अब बड़े हो गए थे,मगर उनका दारूबाज दादा न बदला।

एक दिन मां सुबह काफी देर तक जब पति की आवाज न आई तो समझ नही पाई आज गाली नहीं सुनाई पड़ी।

पति के कमरे में पहुंची, दारूबाज जगा भी न था,बेड से नीचे सिर लटकाए,अब भी गहरी नींद में था,मां धीरे से बड़बड़ाई "इतना पी ता है की सुधबुध ही खो बैठता हैं"

देखती है गौर से सोया है..मगर शरीर में कोई हलचल नहीं..करीब जाकर उसके सिर को दोनो हाथो से सहारा दे कर बेड पे रखती है,जैसे ही उसके चेहरे पे नज़र गई वो सन्न रह गई,चेहरा नीला पड़ गया था, होठ के एक किनारे से सफेद झाग सा निकल कर सूख चुका था। उसने उसकी नब्ज टटोली और समझ गई कि अब उसकी भी कहानी खतम हो गई। 

देखते ही देखते दारू उसके घर के दो सदस्यों को लील  गई,उसने बड़ी गहरी सांस ली और धम्म..से पास में पड़ी कुर्सी पे बैठ गई।

आज उसकी आंख में एक आंसू न था..

 दिल में कोई दर्द न था...

मानो उसे लग रहा था, जैसे अपराधी को उसके किए की आज सजा मिल गई।

-मनुप्रियश्री 

https://youtu.be/pPJ0yvehyEI

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