गुरुवार, 26 अगस्त 2021

Hindi poem/हर रिश्ता कमज़ोर पड़ता है/ poem in hindi

हर रिश्ता
 कमज़ोर पड़ता है
हर आस्था
 एक दिन टूटती है
हर चमक  
धूमिल पड़ती है।
हर मुस्कान
 कुम्हलाती है।


इंतज़ार भी कभी कभी
 चिरकाल के हो जाते हैं।
अपनत्व के पंछी भी
 घोसला छोड़ उड़ जाते हैं।

कोई टकटकी लगाए 
द्वार पर बैठा है।
मगर आगंतुक 
किसी और 
 सफ़र की तैयारी में जुटा है।

कहीं नवजीवन का 
सुरमयी संगीत है
कोई पुराने ताने बानो 
में ही उलझा है।
कोई खुद के ही
 विचारों से लड़ता है
कोई अपनी ही
ज़िद में अड़ता है।


 

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