
"तेरह साल और एक कॉल" — रोहिणी की कहानी
लगभग आधी रात गुज़र चुकी थी।
नींद आज रोहिणी की आँखों से कोसों दूर थी।
टूटे हुए मन की गहराई को सिर्फ वही जानता है जो कभी सिसकियों से सोया हो।
रात की स्याही जैसे-जैसे गहराती है, वैसे-वैसे सोचों की कालिमा और भी तेज़ हो जाती है।
दिन में जो बातें सामान्य लगती हैं, वही रात में बवंडर बन जाती हैं।
और जब दिल टूटा हो… तब तो हर साया भी डराने लगता है।
तेरह साल का साथ…
तेरह साल की हँसी, आँसू, उम्मीदें और कसमें…
वो रिश्ता इतना गाढ़ा लगने लगा था,
जैसे अब मौत ही उसे जुदा कर सकती थी।
लेकिन आज दोपहर की वो पच्चीस मिनट की कॉल…
जिसने रोहिणी की दुनिया को झकझोर दिया।
📞 रोहन की आवाज़ — गूंजती रही मन में...
"घरवालों का मुझ पर शादी का दबाव बढ़ता जा रहा है।
अब तक तो रोकता आया था,
मगर अब रोकने की वजह भी नहीं रही…"
रोहिणी — (भीतर से कांपती हुई)
"मतलब...?
तेरह साल... बस एक वजह थे तुम्हारे पास?"
📞
"वक़्त के साथ बहुत कुछ बदलता है रोहिणी।
सालों की कीमत अपनी जगह है, लेकिन…"
"लेकिन...?
ये कह दो ना कि अब इस रिश्ते को निभाना मुमकिन नहीं।"
📞 "उफ्फ, यही वजह है कि मैं तुमसे बातें नहीं करता।
पिछले दो सालों से घरवालों के सवालों से जूझ रहा हूँ…"
"तो कर लो शादी…
मुझे मत रोको।
मैं कोई बाधा नहीं… आज से मुक्त हो तुम मेरी तरफ़ से।"
📞 "नहीं रोहिणी…
मैं मुक्त नहीं होना चाहता।
मैं तुम्हें छोड़ने की सोच भी नहीं सकता…"
"तो फिर चाहते क्या हो रोहन?
एक म्यान में दो तलवार?
आज तक मैंने ये सोचा भी नहीं था कि तुम इस तरह सोच सकते हो…"
📞 "मैं परिस्थिति के अनुसार सोच रहा हूँ…
एक तरफ मेरा पूरा खानदान… और दूसरी तरफ़ तुम…"
"अरे, ये साफ़ कहो ना कि तुम मेरा चुनाव नहीं कर सकते।
तुम्हारे लिए तुम्हारा खानदान ज़्यादा अहमियत रखता है।"
📞 "रोहिणी... समझ नहीं आता तुम्हें कैसे समझाऊं…"
"मत समझाओ,
अगर यही बात तेरह साल पहले समझा देते…
तो शायद मैं तुम्हारी इस 'मेहरबानी' से बच जाती।"
📞 "हम जुड़े रहेंगे… ज़िंदगी भर…
तुम भी शादी कर लेना…
मैं सब ठीक कर दूंगा…"
"प्लीज़…
एक और शब्द मत बोलना।
अब तुमने सब ठीक कर ही दिया है।
काश मैं इतनी मूर्ख न होती…
काश…
I really hate myself…
गलती तुम्हारी नहीं है,
गलती मेरी है कि मैंने तुम पर यकीन किया।"
📞 "काश तुम थोड़ा समझदारी दिखाती…
तुम्हें नहीं दिखता कि मैं कितने प्रेशर में जी रहा हूँ?
कभी तो मेरे हालात समझो…
तुम्हारा प्यार... ये स्वार्थी प्यार…"
(आँखें भर आती हैं)
"हाँ रोहन…
स्वार्थी तो मैं ही हूँ…
दुनिया की हर लड़की अपने प्रेमी से खुशी-खुशी कहती होगी —
'जाओ, शादी कर लो… मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।'
है ना?
म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग वाली वो परीकथाएं…
काश मुझे भी आती…"
📞 "रोहिणी यार… थोड़ा प्रैक्टिकल बनो…
मैं इकलौता बेटा हूँ,
माँ-बाप की उम्मीदें…"
"तो इन भावनाओं की खेती पहले ही क्यों कर ली?
जब बोना नहीं था, तो बीज ही क्यों डाला?"
📞 "देखो, मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता।
हमारे बीच की असमानताएं…
जाति, धर्म…
क्या जवाब दूंगा मैं घरवालों को?"
"तो जिस दिन ये रिश्ता शुरू किया,
उस दिन जाति धर्म नहीं थे?
या तब सोचा था — चलो थोड़ा टाइम पास कर लेते हैं?"
📞 "ऐसी बात नहीं है…
शुरुआत में कौन जानता है कि रिश्ता कितना चलेगा…"
"तो ये रिश्ता...
तेरह साल का धोखा था?
या जरूरत पूरी होने तक की मोहब्बत?"
📞 "बस रोहिणी… अब और ताने मत मारो…
मुझे ये आदत तुम्हारी बिल्कुल पसंद नहीं…"
"तुम्हें मैं कब पसंद थी रोहन?
अगर होती…
तो आज ये दिन नहीं आता।
इतनी आसानी से तुम खुद की शादी तय कर लोगे…
और अपनी प्रेमिका को भी ‘किसी से भी शादी कर लो’ कह दोगे?
हाय भगवान…
मुझे इस पीड़ा को सहने की शक्ति दो…"
(रोहिणी बिलख पड़ती है…)
📞 "रो मत रोहिणी…
सब तुम्हारे हाथ में है…
तुम जितनी जल्दी इसे एक्सेप्ट करोगी,
उतना ही सब आसान होगा…
मैं शादी ज़रूर करूंगा,
लेकिन मैं हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा…
फर्क सिर्फ़ नाम का होगा।
निर्णय तुम्हारा है…"
(फोन कट गया)
अब न आवाज़ थी, न सफाई…
बस ख़ामोशी थी।
पिछले कई घंटों से रोहिणी बस सोच रही थी।
कभी खुद को दोष देती, कभी रोहन को।
कभी पुरानी बातें याद आतीं,
कभी उसकी वो कसमें, वो सपने…
तेरह साल के रिश्ते की इतनी सस्ती कीमत?
"काश मोहब्बत करने से पहले ये मालूम होता…
कि अंत में सिर्फ एक कॉल मिलेगी…
और उसके बाद — ख़ामोशी।"
उसने आवेश में रोहन का नंबर डिलीट कर दिया।
पर नंबर डिलीट करने से यादें थोड़ी मिटती हैं?
सुबह-शाम...
शाम-सुबह…
हर वक़्त उसका मन एक ही सवाल पूछता रहा:
"क्या मैं ही गलत थी?"
मोहब्बत एकतरफा नहीं चलती…
इसे सहारा चाहिए — दोनों तरफ़ से।
रोहन की कही एक बात
अब भी कानों में गूंज रही थी:
"मेरा प्यार मेरी शादी के साथ ख़त्म नहीं होगा…"
लेकिन रोहिणी जानती थी —
शायद वही पल था, जब प्यार मर गया।
"जिस पौधे को तेरह साल सींचा…
वो एक दिन खुद ही अपनी जड़ें काट गया।"